गौरेला पेंड्रा मरवाही

“भुतहा तालाब को दुर्गा सरोवर बनाने वाले हर्ष अब जनपद संवारने निकले”



जनपद मुख्यालय की सफाई व्यवस्था वर्षों से अव्यवस्थित रही है। जिम्मेदार विभागों के लाख दावों के बावजूद शहर की गलियां, मुख्य बाजार और सार्वजनिक स्थल गंदगी से पटे रहते हैं। पिछले 10 साल से अकेले सफाई का जिम्मा उठाने वाले हर्ष ने खुद अपने स्तर पर अभियान छेड़ दिया।

हर्ष छाबरिया लंबे समय से शहर की गंदगी और अव्यवस्था के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। अपने निजी खर्च और प्रयास से उन्होंने कई मोहल्लों और वार्डों की गलियों को साफ-सुथरा बनाए रखा। शहर के कई हिस्सों में लोग उन्हें “स्वच्छता दूत” कहकर पुकारते हैं।

भुतहा तालाब बना दुर्गा सरोवर

कभी शहर के बीचोंबीच स्थित तालाब, जहाँ दुर्गा-गणेश विसर्जन हुआ करता था, लोगों की नजर में “भुतहा तालाब” कहलाता था। चारों ओर गंदगी, दुर्गंध और उपेक्षा का अंबार था। लोग उस ओर जाना भी पसंद नहीं करते थे।
लेकिन हर्ष की लगातार मेहनत और जिद ने इस तालाब को नया जीवन दिया। दिन-रात की सफाई और लोगों को जागरूक करने के अभियान से आज यही तालाब “दुर्गा सरोवर” के नाम से जाना जाता है और धार्मिक-सांस्कृतिक आस्था का केंद्र बन चुका है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि अफसर-जनप्रतिनिधि बैठकों और योजनाओं में व्यस्त रहते हैं, लेकिन धरातल पर काम नदारद है।

अब हर्ष ने केवल शहर ही नहीं बल्कि जनपद मुख्यालय की गंदगी पर भी झाड़ू चलाना शुरू कर दिया है। उनका कहना है –

> “गंदगी देखना अब बर्दाश्त के बाहर हो चुका है। अगर जिम्मेदार सोए रहेंगे, तो जनता को खुद आगे आना होगा। शहर हमारा है, तो जिम्मेदारी भी हमारी है।”



स्थानीय व्यापारियों और युवाओं ने भी हर्ष के इस अभियान को समर्थन देना शुरू कर दिया है। लोग उनके साथ जुड़कर जगह-जगह सफाई कर रहे हैं और आम नागरिकों को भी गंदगी न फैलाने का संदेश दे रहे हैं।

सवाल यह है कि जब एक आम नागरिक 10 साल तक अकेले अपने दम पर शहर और तालाब को चमकाने का प्रयास कर सकता है, तो फिर भारी बजट और संसाधन रखने वाले अफसर-जनप्रतिनिधि आखिर क्यों नाकाम साबित हो रहे हैं?

अगर प्रशासन ने अब भी सबक नहीं लिया, तो हर्ष जैसे आम लोग ही आने वाले समय में बदलाव की असली तस्वीर लिखेंगे

प्रशांत गौतम

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