गौरेला पेंड्रा मरवाही

सेखवा पंचायत में फर्जीवाड़े का खेल! सचिव चैन मार्केटिंग में मस्त, सरपंच संग हार्डवेयर दुकान से ‘सेव-बूँदी’ का बिल पास — पंचायत के भ्रष्टाचार की खुली पोल

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही(छत्तीसगढ़ उजाला)
ग्राम पंचायत सेखवा में भ्रष्टाचार और लापरवाही का चौंकाने वाला मामला उजागर हुआ है। पंचायत सचिव जहाँ सरकारी कामकाज की जगह हर्बल लाइफ चैन मार्केटिंग जैसे निजी कारोबार में मशगूल हैं, वहीं सरपंच के साथ उनकी मिलीभगत से सरकारी राशि के दुरुपयोग का खुला खेल चल रहा है।


हार्डवेयर दुकान से खरीदी गई ‘सेव-बूँदी’!

मामला तब सामने आया जब ग्राम पंचायत सेखवा के नाम पर साहू हार्डवेयर, कोटमी की एक संदिग्ध बिल कॉपी सामने आई।
बिल की तिथि 18 अगस्त 2025 दर्ज है, जिसमें पंचायत के लिए सेव (60 किलो @ ₹200 = ₹12,000) और बूँदी (48 किलो @ ₹180 = ₹8,640) की आपूर्ति दर्शाई गई है।
कुल ₹20,640 के इस बिल पर सरपंच और सचिव दोनों के हस्ताक्षर मौजूद हैं।

लेकिन हैरानी की बात यह है कि साहू हार्डवेयर एक ऐसी दुकान है जो सीमेंट, रेत, गिट्टी, लोहे की छड़ और मशीनी पार्ट्स बेचती है — खाद्य सामग्री नहीं। फिर भी उसी दुकान से ‘सेव-बूँदी’ का बिल पास किया गया। यह अपने आप में भ्रष्टाचार की एक खुली मिसाल है।

गांव के विकास कार्य ठप, सचिव मार्केटिंग में व्यस्त

ग्रामीणों के मुताबिक पंचायत सचिव का ध्यान गांव के कार्यों पर नहीं, बल्कि निजी व्यापार पर है।
वे हर्बल लाइफ उत्पादों की बिक्री और नए सदस्यों को जोड़ने में दिनभर व्यस्त रहते हैं।
इस वजह से पंचायत के प्रशासनिक कामकाज भगवान भरोसे चल रहे हैं।

ग्राम पंचायत में कई विकास कार्य अधूरे पड़े हैं, परंतु उनका भुगतान पहले ही कर दिया गया है।
ग्रामीणों का आरोप है कि “सेव-बूँदी वाला बिल” तो केवल एक उदाहरण है — ऐसे कई और फर्जी भुगतान पंचायत में नियमित रूप से किए जा रहे हैं।

शिकायतों के बावजूद अधिकारियों की चुप्पी

ग्रामीणों ने बताया कि सचिव और सरपंच के खिलाफ कई बार शिकायतें दी गईं, लेकिन उच्च अधिकारी कार्रवाई से बचते रहे।
इससे पंचायत में भ्रष्टाचार को और बढ़ावा मिला है।
स्थानीय निवासियों ने जिला प्रशासन और जनपद अधिकारियों से मांग की है कि पंचायत के सभी वित्तीय लेन-देन का ऑडिट कराया जाए और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।

ग्राम स्तर पर भ्रष्टाचार की पोल खोलता मामला

सेखवा पंचायत का यह मामला सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि पूरे पंचायती तंत्र में व्याप्त लापरवाही और भ्रष्टाचार की तस्वीर दिखाता है।
जब अधिकारी और कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी छोड़कर निजी लाभ के पीछे भागने लगें, तो गांवों का विकास कैसे संभव होगा?

ग्रामीणों का कहना है

> “अब वक्त आ गया है कि प्रशासन ऐसे मामलों पर सख्त कदम उठाए, ताकि भविष्य में कोई भी जनसेवक जनता के पैसे से खिलवाड़ करने की हिम्मत न कर सके।”

प्रशांत गौतम

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