सत्ता का अहंकार या प्रशासनिक भूल? मुख्यमंत्री के मंच पर पूर्व मंत्री का अपमान: कलेक्टर संजय अग्रवाल की भूमिका पर सवाल, अरुण साव से जुड़ी गुटबाजी उजागर”

(छत्तीसगढ़ उजाला)-साय सरकार में सत्ता का नशा अब दबे स्वर में नहीं, बल्कि सार्वजनिक मंचों पर दिखाई देने लगा है। मुख्यमंत्री की उपस्थिति में आयोजित एक सरकारी कार्यक्रम के दौरान छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री और वरिष्ठ भाजपा विधायक अमर अग्रवाल को पीछे की पंक्ति में बैठाया जाना प्रदेश की राजनीति में भूचाल लेकर आया है। यह मामला सिर्फ एक बैठने की व्यवस्था का नहीं, बल्कि सत्ता, सम्मान और संगठन के भीतर चल रही खींचतान का प्रतीक बन गया है।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, कार्यक्रम में प्रोटोकॉल और वरिष्ठता को दरकिनार कर अमर अग्रवाल को जानबूझकर पीछे बैठाया गया। मामला तब और गंभीर हो गया जब मुख्यमंत्री को इसकी जानकारी मिली और उनके निर्देश पर आनन-फानन में अमर अग्रवाल को आगे की पंक्ति में स्थान दिया गया।
अब सवाल उठता है—
अगर यह भूल थी, तो इतनी बड़ी चूक कैसे हुई?
और अगर भूल नहीं थी, तो यह संदेश किसके लिए था?
कलेक्टर संजय अग्रवाल की भूमिका पर सियासी सवाल
इस पूरे घटनाक्रम के बाद बिलासपुर कलेक्टर संजय अग्रवाल की भूमिका को लेकर राजनीतिक गलियारों में तीखी चर्चा शुरू हो गई है। यह महज संयोग नहीं माना जा रहा कि जिस दौर में अमर अग्रवाल प्रदेश के प्रभावशाली मंत्री थे, उसी समय संजय अग्रवाल बिलासपुर में एसडीएम के पद पर पदस्थ थे।
आज वही अधिकारी एक वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री की अनदेखी करता नजर आया—जिससे प्रशासनिक निष्पक्षता और विवेक पर गंभीर प्रश्नचिह्न लग गया है।
अरुण साव से मतभेद और अंदरूनी सियासत
भाजपा के भीतर यह कोई छिपा तथ्य नहीं कि अमर अग्रवाल और उपमुख्यमंत्री अरुण साव के बीच लंबे समय से राजनीतिक मतभेद रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम को उसी अंदरूनी खींचतान से जोड़कर देखा जा रहा है।
पार्टी के भीतर यह चर्चा आम है कि अमर अग्रवाल के राजनीतिक कद को सीमित करने की कोशिशें अब प्रशासनिक फैसलों के जरिए की जा रही हैं, और जिला प्रशासन को ढाल बनाया जा रहा है।
वरिष्ठता का अपमान, संगठन के लिए चेतावनी
भाजपा खुद को अनुशासन और वरिष्ठ नेताओं के सम्मान की पार्टी बताती रही है, लेकिन सत्ता में आने के बाद यदि वरिष्ठ विधायकों को ही सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाए, तो यह संगठन की जड़ों को कमजोर करने वाला संकेत है।
कार्यकर्ताओं के बीच यह सवाल तेजी से उठ रहा है कि आज यदि एक पूर्व मंत्री सुरक्षित नहीं है, तो कल आम कार्यकर्ता का क्या होगा?
कलेक्टर हटाने की मांग की चर्चा
घटना के बाद बिलासपुर और आसपास के क्षेत्रों में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि इतनी बड़ी प्रशासनिक या प्रोटोकॉल चूक पर कलेक्टर को हटाया जाना चाहिए।
कार्यकर्ताओं का मानना है कि यदि ऐसे मामलों में सख्त संदेश नहीं दिया गया, तो भविष्य में सत्ता और प्रशासन का अहंकार और बेलगाम होगा।अब निगाहें मुख्यमंत्री पर
अब सबसे बड़ा सवाल यही है—
• क्या यह केवल प्रशासनिक चूक थी?
• या सत्ता के अहंकार में लिया गया सोचा-समझा फैसला?
• और क्या मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इस मामले में सख्त कदम उठाते हुए कलेक्टर पर कार्रवाई करेंगे?
फिलहाल, इस एक घटना ने साय सरकार, जिला प्रशासन और भाजपा संगठन—तीनों को कठघरे में खड़ा कर दिया है।
अब देखना यह है कि यह मामला सिर्फ चर्चाओं तक सीमित रहता है, या फिर सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग इससे कोई ठोस सबक लेते हैं।


