*पत्नी के नाम ठेका, रेंजर का संरक्षण, डीएफओ की ढाल मरवाही वनमंडल में करोड़ों का खेल*
छत्तीसगढ़ उजाला

गौरेला–पेंड्रा–मरवाही (छत्तीसगढ़ उजाला)। मरवाही वनमंडल एक बार फिर ठेकेदारी अनियमितताओं और विभागीय संरक्षण के आरोपों को लेकर सुर्खियों में है। आरोप है कि पूर्व में गंभीर मामलों में घिरे एक विवादित ठेकेदार को नियमों की अनदेखी करते हुए दोबारा वन विभाग के ठेके सौंप दिए गए हैं। यह पूरा मामला अब भाजपा सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति पर भी सवाल खड़े कर रहा है। पुराने आरोप, लेकिन फिर मिली एंट्री सूत्रों के अनुसार, प्रोप्राइटर बॉबी शर्मा पर पूर्व में मनरेगा योजना के तहत सामग्री आपूर्ति में भारी अनियमितताओं के आरोप लग चुके हैं। आरोप है कि बिना सामग्री सप्लाई किए ही विभागीय कर्मचारियों से मिलीभगत कर करोड़ों रुपये का भुगतान करा लिया गया। इस मामले की शिकायतें उच्च स्तर तक पहुँची थीं और विधानसभा में भी सवाल उठे थे। कार्रवाई हुई, लेकिन ठेकेदार पर नहीं तत्कालीन सरकार के दौरान दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई हुई। कुछ कर्मचारियों को निलंबित किया गया, वसूली के आदेश दिए गए और तत्कालीन एसडीओ को पदावनत किया गया। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि संबंधित ठेकेदार के खिलाफ आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई।
नाम बदला, नियम तोड़े और टेंडर फिर हासिल
अब आरोप है कि उसी ठेकेदार ने फर्म का नाम बदलकर दोबारा वन विभाग से सामग्री आपूर्ति का टेंडर हासिल कर लिया। यही नहीं, टेंडर की आड़ में मुनारा निर्माण, भवन निर्माण और सीसी रोड जैसे कार्य भी कराए जा रहे हैं, जो नियमों के दायरे से बाहर बताए जा रहे हैं।
घटिया निर्माण और तकनीकी अनदेखी के आरोप –
स्थानीय सूत्रों का कहना है कि इन निर्माण कार्यों में गुणवत्ता और तकनीकी मानकों की खुलेआम अनदेखी की जा रही है। मुनारा निर्माण से लेकर सीसी रोड तक घटिया सामग्री उपयोग के आरोप सामने आए हैं, जिसको लेकर शिकायतें भी की गई हैं। 3 दिन की जांच, 30 दिन में भी शुरू नहीं हो पाई मुनारा निर्माण में कथित अनियमितताओं को लेकर सोशल मीडिया पर शिकायत सामने आने के बाद वन विभाग ने आदेश जारी कर तीन दिवस में जांच रिपोर्ट देने के निर्देश दिए थे। लेकिन एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद जांच शुरू तक नहीं हो पाई है।
जब इस संबंध में डीएफओ मरवाही से सवाल किया गया, तो उन्होंने यह कहकर जिम्मेदारी टाल दी कि जांच एसडीओ को सौंपी गई है। जांच कब होगी, कौन करेगा और अब तक क्यों नहीं हुई इन सवालों पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया।
रेंजर के संरक्षण में फल-फूल रहा ठेकेदार? –
स्थानीय सूत्रों का आरोप है कि जिस क्षेत्र में यह पूरा मामला सामने आया है, वहाँ पदस्थ वनपरिक्षेत्राधिकारी प्रबल दुबे का ठेकेदार बॉबी शर्मा को खुला संरक्षण प्राप्त है। आरोप हैं कि ठेकेदार विभाग का चहेता बन चुका है और रेंजर की कुर्सी से लेकर डीएफओ कार्यालय तक उसकी बेरोकटोक आवाजाही है। सूत्रों का दावा है कि रेंजर से लेकर उच्च स्तर तक एक मैनेजमेंट सिस्टम खड़ा किया गया है, जिसके चलते जांच आगे नहीं बढ़ पा रही है।
तबादला रोकने के लिए रायपुर में सेटिंग? – विभाग के ही एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि संबंधित रेंजर ने अपना तबादला रुकवाने के लिए रायपुर स्तर पर प्रयास किए। चर्चा है कि इसमें लगभग 3 लाख रुपये खर्च किए गए, ताकि कुर्सी सुरक्षित रहे। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि कुर्सी बचाने में ही लाखों खर्च हुए, तो करोड़ों के मुनारा निर्माण में कितना बड़ा खेल हुआ होगा।
पत्नी के नाम पर फर्म, ठेके की असली कहानी –
जांच के दौरान यह तथ्य भी सामने आया है कि ठेकेदार बॉबी शर्मा अपनी पत्नी के नाम से AR इंटरप्राइजेस नामक फर्म संचालित कर रहा है। इस बात की पुष्टि स्वयं डीएफओ द्वारा की गई है। इसके बावजूद ठेका प्रक्रिया, सामग्री की रॉयल्टी जमा, स्थल निरीक्षण और गुणवत्ता परीक्षण को लेकर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
सवालों के घेरे में पूरा वन विभाग –
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जांच के स्पष्ट आदेश के बावजूद रिपोर्ट क्यों नहीं आई? क्या करोड़ों के घोटाले को जानबूझकर दबाया जा रहा है? क्या रेंजर–ठेकेदार–अफसरों की सांठगांठ ने जांच को बंधक बना लिया है?
यदि समय रहते निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच नहीं हुई, तो यह मामला केवल मुनारा निर्माण तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे मरवाही वनमंडल की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करेगा।




