केंदा से रतनपुर रोड – टेंडर के बावजूद सड़क नहीं बनी, ठेकेदार की मनमानी और जनता की जान जोखिम में

केंदा से रतनपुर तक की सड़क, जिसे क्षेत्र की जीवनरेखा कहा जाता है, अब मौत का रास्ता बन चुकी है। करोड़ों की लागत से बन रही यह सड़क अभी तक पूरी तरह नहीं बनी है, लेकिन सरकारी टेंडर पहले ही जारी कर दिया गया था।
स्थानीय लोगों का कहना है कि ठेकेदार ने केवल पार्ट-पार्ट में काम करके छोड़ दिया और उसी आधार पर बिल निकाल लिया। सड़क का जो हिस्सा बना है, वह भी उखड़ा और खतरनाक है।
टेंडर – जनता की सुविधा या ठेकेदार का फायदा?
सड़क का निर्माण सरकारी टेंडर के तहत हुआ था, लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह टेंडर ठेकेदार को फायदा पहुँचाने के लिए दिया गया, आम जनता की सुविधा के लिए नहीं। करोड़ों की लागत केवल ठेकेदार के बिल निकालने में खर्च की जा रही है।
ठेकेदार की मनमानी – “मैं अपने हिसाब से काम करूंगा”
ग्रामीणों का कहना है कि ठेकेदार लगातार मनमानी कर रहा है। जब भी अधूरे काम या सड़क की खराब हालत पर सवाल उठाया जाता है, वह कहता है –
“जिससे बात करनी है कर लो, मैं अपने हिसाब से काम करूंगा।”
स्थानीय लोग बताते हैं कि ठेकेदार अपनी पहचान और मंत्री स्तर तक पकड़ दिखाकर अधिकारियों और जनता दोनों पर दबंगई करता है।
केंदा घाट – हादसों का अड्डा
केंदा घाट की स्थिति सबसे भयावह है। गहरे गड्ढे और अधूरी सड़क रोज़ाना छोटे और बड़े वाहनों के लिए जानलेवा खतरा बन चुके हैं। बरसात में गड्ढों में पानी भर जाता है और मार्ग पूरी तरह दलदल और कीचड़ में बदल जाता है।
सड़क पर जाम और मरीजों की जान खतरे में
पहले घाट में आए दिन जाम लगता था। अब सडक निर्माड जबसे चालू हुवा तबसे जाम की स्थिति और बढ़ गई है जिला अस्पताल मे दूर गाओं से आए मरीजों को प्राथमिक उपपचार के बाद तुरत बिलासपुर रेफेर कर दिया जाता है ऐसे मे मरीज इतने गंदे रोड से बिलापुर पहोचने से पहले ही अपनी जान गवा देता है
ग्रामीणों का आरोप है कि जिला अस्पताल के डॉक्टर केवल चेहरा दिखाने आते हैं, शासन से मोटी सैलरी लेते हैं, लेकिन असली ध्यान अपने पर्सनल क्लिनिक पर रहता है। वे मरीजों का इलाज करने में देर करते हैं और मरीजों को दूर बिलासपुर रेफर करते हैं।
“बिलासपुर 100 किलोमीटर दूर है और यह सफर मरीजों के लिए जानलेवा है, लेकिन डॉक्टरों का ध्यान केवल अपने पैसे वाले क्लिनिक मरीजों पर रहता है।”
जनता की रोज़मर्रा की परेशानियाँ
मरीजों को अस्पताल ले जाना मुश्किल।
ट्रक और बसें गड्ढों और अधूरे काम के कारण फँस जाती हैं।
सड़क पर जाम के कारण यात्रा में घंटों लगते हैं।
बरसात में सड़क पूरी तरह दलदल और कीचड़ में बदल जाती है।
अधिकारियों की चुप्पी और मिलीभगत
ग्रामीणों का आरोप है कि ठेकेदार की ऊँची पकड़ और मंत्री स्तर तक पहुंच के कारण अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे। जनता का खून-पसीना और मरीजों की जान दांव पर होने के बावजूद काम की गुणवत्ता पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
ग्रामीणों का गुस्सा और चेतावनी
लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि इस सड़क निर्माण और अस्पताल व्यवस्था की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए। दोषी ठेकेदार, अस्पताल प्रशासन और संबंधित अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है –
“अगर हमारी आवाज़ नहीं सुनी गई, तो हम सड़क पर उतरकर प्रदर्शन करेंगे और जिम्मेदारों का घेराव करेंगे।”
ठेकेदार का बयान – लेन-देन का खेल
स्थानीय लोगों का आरोप है कि ठेकेदार ने अपने लेन-देन का खुला बयान दे दिया है। उनका कहना है –
“मैंने ऊपर से नीचे तक पैसे देके रखा है, मेरा कौन बिगाड़ लेगा। पैसा दिया हूँ, मैं अपने हिसाब से काम करूंगा।”
यह बयान साफ करता है कि ठेकेदार केवल अपने बिल और लेन-देन में फंसा है, जनता की सुरक्षा, सड़क की गुणवत्ता और मरीजों की जान उसके लिए कोई मायने नहीं रखती