भारतीय राजनीति में उपनामों की परंपरा: छवि, व्यक्तित्व और जनसंपर्क का अनोखा प्रतीक – डॉ. अतुल मलिकराम (राजनीतिक रणनीतिकार)

भारत ही नहीं, दुनिया के हर लोकतांत्रिक समाज में नेताओं को उपनाम दिए जाने की परंपरा पुरानी है। ये केवल संबोधन के शब्द नहीं होते, बल्कि वे किसी नेता के व्यक्तित्व, कार्यशैली, संघर्ष और जनता के मन में उनकी छवि का सार प्रस्तुत करते हैं। भारतीय राजनीति में यह परंपरा आज़ादी के पहले से लेकर आज तक उतनी ही जीवंत और प्रभावशाली बनी हुई है।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू बच्चों के दिलों में ‘चाचा नेहरू’ के रूप में बस गए। यह उपनाम उनके बच्चों के प्रति विशेष स्नेह और मानवीय संवेदनशीलता की पहचान बन गया। वहीं देश को एक सूत्र में पिरोने वाले लौह-इच्छाशक्ति के धनी सरदार वल्लभभाई पटेल को ‘लौह पुरुष’ कहा गया — यह उनके कठोर निर्णयों, अटल नेतृत्व और सैकड़ों रियासतों के एकीकरण में निभाई ऐतिहासिक भूमिका का सम्मान था।
महिला नेतृत्व के संदर्भ में भी उपनामों ने ताकत और लोकप्रियता दोनों को परिभाषित किया। भारत की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके निर्णायक फैसलों और सख्त नेतृत्व शैली ने ‘आयरन लेडी’ की पहचान दिलाई। तमिलनाडु में जनता की लाड़ली नेता जे. जयललिता को ‘अम्मा’ कहकर पुकारा जाता था, क्योंकि वे राज्य की जनकल्याणकारी योजनाओं को सीधे आम लोगों तक पहुंचाने में सबसे आगे रहीं। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का उपनाम ‘दीदी’ उनकी सरलता, संघर्ष और जनसरोकारों से सीधे जुड़ाव का प्रतीक है।
बहुजन और सामाजिक न्याय की राजनीति में उपनामों का महत्व और भी अधिक देखने को मिलता है। दलित आंदोलन के सबसे सम्मानित नेताओं में शामिल जगजीवन राम को ‘बाबूजी’ के सम्मानजनक संबोधन से पुकारा जाता था। वहीं बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती को उनका पूरा राजनीतिक आधार ‘बहनजी’ के रूप में स्वीकार करता है—एक संरक्षक, मार्गदर्शक और संघर्षशील नेता के रूप में। इसी सिलसिले में डॉ. सोनेलाल पटेल के लिए प्रचलित ‘दूसरी आज़ादी के महानायक’ जैसा उपनाम यह सिद्ध करता है कि क्षेत्रीय राजनीति में भी विचारधारा और संघर्ष जनता के दिलों में स्थायी पहचान बना देते हैं।
समाजवादी राजनीति में भी यह संस्कृति स्पष्ट रूप से दिखती है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को उनके अनुयायियों ने ‘नेताजी’ का दर्जा दिया—एक ऐसे जननायक के रूप में, जिन्होंने साधारण कार्यकर्ता से राष्ट्रीय स्तर तक अपनी अलग पहचान बनाई। वर्तमान में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का उपनाम ‘बुलडोजर बाबा’ उनकी जीरो-टॉलरेंस नीति और माफिया–अपराध के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का पर्याय बन चुका है।
इन सभी उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि भारतीय राजनीति में उपनाम केवल नामभर नहीं, बल्कि नेताओं की विचारधारा, कार्यशैली और उनकी सार्वजनिक छवि का परिचय होते हैं। कई उपनाम जनता देती है, कुछ मीडिया से जन्म लेते हैं, और कभी-कभी विरोधी भी व्यंग्य में फेंकू या पप्पू जैसे संबोधन गढ़ देते हैं, जो बाद में लोकप्रिय हो जाते हैं।
कुल मिलाकर, उपनाम भारतीय राजनीतिक संस्कृति का वह जीवंत पक्ष हैं, जो यह बताता है कि जनता अपने नेताओं को केवल पदों से नहीं पहचानती, बल्कि उनके व्यवहार, काम और प्रभाव से उन्हें एक विशिष्ट रूप प्रदान करती है।




