छत्तीसगढ

खेल एवं युवा कल्याण के नाम पर कवि सम्मेलन या राजनीतिक शक्ति-प्रदर्शन? उठते गंभीर सवाल


रायपुर/बिलासपुर(छत्तीसगढ़ उजाला)
खेल एवं युवा कल्याण के उद्देश्य से आयोजित कवि सम्मेलन को लेकर अब कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। यह आयोजन वास्तव में युवाओं के लिए साहित्यिक ऊर्जा का माध्यम है या फिर रायपुर में हुए पिछले बड़े मैच की तरह राजनीतिक वर्चस्व और शक्ति-प्रदर्शन का मंच—इस पर बहस तेज हो गई है।
कार्यक्रम स्थल तक लगाए गए विशाल होर्डिंग्स ने सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता पैदा कर दी है। सीपत चौक–सरकंडा क्षेत्र में महाराणा प्रताप चौक से लेकर पुलिस ग्राउंड तक महज 5 से 7 फीट की दूरी पर इस तरह होर्डिंग्स लगाए गए हैं कि कोई भी राहगीर सहसा दुर्घटना का शिकार हो सकता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इससे पहले भी कुछ लोग चोटिल हुए हैं, लेकिन जिम्मेदारों ने कोई संज्ञान नहीं लिया। ऐसे में इन्हें “एक्सीडेंट मेकर” कहना गलत नहीं होगा।


कवि सम्मेलन में आमंत्रित कविराज भी भलीभांति समझते हैं कि साहित्य के मंच पर इस तरह की राजनीतिक नूराकुश्ती कितनी असहज प्रतीत होती है। सरकारी संसाधनों का खुलेआम उपयोग, भव्य सजावट और प्रचार यह संकेत देता है कि आयोजन का मूल उद्देश्य कहीं न कहीं भटक गया है।
यदि यह कवि सम्मेलन वास्तव में युवाओं के लिए है, तो फिर सामान्य, वीआईपी और वीवीआईपी पास की व्यवस्था क्यों? महानगरों में होने वाले साहित्यिक आयोजनों की तरह इसे पूरी तरह खुला और समान रूप से सुलभ बनाया जाना चाहिए था। विशिष्ट कार्यकर्ताओं की टोली के साथ राजसी दरबार सजा कर आखिर किन युवाओं को प्रेरणा और ऊर्जा दी जा रही है—यह समझ से परे है।


विडंबना यह भी है कि मंत्री जी अपने ही गृह नगर के गौरव पथ क्षेत्र में वर्षों से लोगों को परेशान कर रही शराब दुकान को हटवाने में असमर्थ दिखते हैं। कॉलोनीवासी लगातार प्रताड़ना झेल रहे हैं, जबकि राजस्व का हवाला देकर समस्या को अनदेखा किया जा रहा है। ऐसे में भव्य आयोजनों पर करोड़ों का खर्च आम जनता को और अधिक पीड़ा देने जैसा प्रतीत होता है।
कुल मिलाकर, खेल एवं युवा कल्याण के नाम पर हो रहे इस आयोजन ने अपने स्वरूप और उद्देश्य दोनों पर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। जनता अब यह जानना चाहती है कि प्राथमिकता युवाओं और नागरिकों की सुरक्षा व सुविधाएं हैं या फिर सत्ता का प्रदर्शन।

प्रशांत गौतम

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