रोहिंग्या विवाद: CJI की टिप्पणी पर उठे सवालों का 44 पूर्व जजों ने दिया करारा जवाब, कहा—“न्यायपालिका पर हमला अस्वीकार्य, SIT बनकर हो जांच”

रोहिंग्या घुसपैठिए विवाद पर देश में बढ़ी बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणियों को लेकर नया मोड़ आ गया है। 2 दिसंबर को रोहिंग्या शरणार्थियों पर हुई सुनवाई के दौरान CJI द्वारा पूछे गए सवाल— “क्या भारत सरकार ने रोहिंग्याओं को शरणार्थी घोषित किया है?”— पर कुछ दिनों पहले पूर्व हाई कोर्ट जजों, वरिष्ठ वकीलों और कानूनी विशेषज्ञों ने आपत्ति जताई थी और एक ओपन लेटर में टिप्पणी को “अविवेकपूर्ण” बताया था।
अब इस पत्र का जवाब देते हुए देश के 44 पूर्व जजों ने संयुक्त बयान जारी कर CJI सूर्यकांत के पक्ष में मजबूत समर्थन जताया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और उसके मुखिया पर हमला करना “अनुचित” और “संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ” है।
“रोहिंग्या शरणार्थी नहीं, अवैध घुसपैठिए—फिर दस्तावेज कैसे?”
पूर्व जजों ने साफ कहा कि रोहिंग्या भारतीय कानून के तहत शरणार्थी के रूप में भारत नहीं आए, और अधिकतर मामलों में उनकी देश में प्रवेश अवैध है। उन्होंने गंभीर सवाल उठाया कि—
अवैध घुसपैठ के बावजूद रोहिंग्याओं के पास
आधार कार्ड, राशन कार्ड और अन्य भारतीय पहचान पत्र कैसे बने?इन दस्तावेजों के पीछे कौन-सी स्थानीय या बाहरी नेटवर्किंग सक्रिय है?
पूर्व जजों ने यह भी याद दिलाया कि भारत ने 1951 के UN Refugee Convention और 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इसलिए “शरणार्थी” की अंतरराष्ट्रीय परिभाषा भारत पर बाध्यकारी नहीं है।
SIT गठित कर जांच की मांग
CJI के समर्थन में आए पूर्व जजों ने सुझाव दिया कि—
“सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक विशेष जांच दल (SIT) बनाई जाए, जो रोहिंग्याओं को भारतीय दस्तावेज जारी होने की संपूर्ण जांच करे।”
“न्यायपालिका ने शपथ के अनुरूप काम किया”
पूर्व जजों ने स्पष्ट कहा कि CJI सूर्यकांत ने अपने संवैधानिक दायित्व के तहत, मानवता और राष्ट्रीय सुरक्षा—दोनों संतुलित रखने की बात कही। ऐसे में उन पर व्यक्तिगत हमले या टिप्पणी को “दुर्व्यवहार” बताया गया।
म्यांमार और रोहिंग्या मुद्दे की जटिलता
समर्थन देने वाले जजों ने स्वीकार किया कि—
म्यांमार में रोहिंग्याओं की स्थिति अत्यंत संवेदनशील है,
उन्हें दशकों से बांग्लादेश मूल के अवैध प्रवासी माना जाता रहा है,और वहां उन्हें नागरिकता तक से वंचित किया जाता है।
इसके बावजूद भारत को अपनी सुरक्षा, जनसंख्या संतुलन, वैधता और संवैधानिक मर्यादाओं के अनुसार निर्णय लेने का अधिकार है।
“सुप्रीम कोर्ट का अपमान लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ”
पूर्व जजों ने स्पष्ट कहा कि—
“न्यायपालिका पर अनुचित टिप्पणी न सिर्फ अस्वीकार्य है, बल्कि यह संस्थागत गरिमा को चोट पहुंचाने वाला कदम है। न्यायालय ने अपना कर्तव्य निभाया है और इस पर संदेह जताना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।”




