सरकारी जमीन की हेराफेरी का संगठित खेल: कोरबा, सरगुजा और जी.पी.एम. जिलों में प्रशासनिक तंत्र पर उठे सवाल

जी. पी. एम. (छत्तीसगढ़ उजाला)-छत्तीसगढ़ के कोरबा, सरगुजा और गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिलों में सरकारी भूमि की फर्जीवाड़ा और हेराफेरी के मामलों ने शासन और प्रशासन की साख पर गहरा प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
कोरबा जिले के पोंडी उपरोड़ा क्षेत्र के लालपुर और घुचांपुर गांवों में 13.629 हेक्टेयर सरकारी भूमि को पटवारी और उसके साथियों ने अपने निजी नामों पर दर्ज करा लिया। इतना ही नहीं, इन फर्जी नामांतरणों के आधार पर बैंक से करोड़ों रुपये का ऋण भी ले लिया गया। मामले के उजागर होने पर कलेक्टर ने FIR दर्ज करने और कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
वहीं, सरगुजा जिले के कुसमी तहसील में शिक्षिका सरस्वती गुप्ता, उनके पुत्र अंबिकेश गुप्ता और पटवारी बिहारी कुजूर पर सरकारी भूमि को जालसाजी से अपने कब्जे में लेने का आरोप साबित हुआ है। जांच में दोष सिद्ध होने पर तीनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।
सबसे चौंकाने वाला मामला गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले का है , जहां पटवारी रवि जोगी कुजूर ने अपने सहायकों तोमर प्रसाद और इंदल प्रसाद के साथ मिलकर कोटखर्रा, मेढुका, पिपरिया और पड़खुरी गांवों की सरकारी जंगल और मद भूमि को फर्जी नामांतरण के माध्यम से अपने नाम दर्ज करा लिया। इसके बाद इन जमीनों पर बैंक से लाखों रुपये का कर्ज उठाया गया। हाल ही में मरवाही तहसील के चगेरी गांव में भी 4.56 एकड़ सरकारी भूमि को निजी संपत्ति दिखाकर रजिस्ट्री करा दी गई, जबकि रिकार्ड में यह भूमि स्पष्ट रूप से सरकारी थी।
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे गंभीर बात यह है कि इतने बड़े आर्थिक अपराध के बावजूद FIR दर्ज नहीं की गई। तत्कालीन कलेक्टर ने मामले को दबाने का प्रयास किया और आरोपी पटवारी रवि जोगी कुजूर को सिर्फ औपचारिक निलंबन देकर कुछ समय बाद फिर बहाल कर दिया गया। यह साफ दर्शाता है कि प्रशासनिक संरक्षण और राजनीतिक प्रभाव ने पूरे मामले को ढकने की कोशिश की।
विशेषज्ञों के मुताबिक यह सिर्फ स्थानीय भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि राजस्व रिकॉर्ड और सरकारी जमीन की सुरक्षा तंत्र में जड़े जमाए संगठित अपराध का हिस्सा है। यह स्थिति बताती है कि न केवल जमीन हड़पने वाले बच निकले, बल्कि प्रशासनिक तंत्र ने भी उनकी ढाल का काम किया।
अब जरूरी है कि राज्य सरकार आर्थिक अपराध शाखा (EOW) या विशेष जांच दल (SIT) का गठन कर पूरे नेटवर्क की गहराई से जांच कराए, FIR दर्ज कर दोषियों को निलंबित और जेल भेजे, तथा राजस्व अभिलेखों को सुरक्षित और पारदर्शी बनाए।
सरकारी जमीनों की इस हेराफेरी और प्रशासनिक लापरवाही ने जनता के मन में न्याय और शासन के प्रति अविश्वास पैदा कर दिया है। पटवारी रवि जोगी कुजूर और तत्कालीन कलेक्टर की भूमिका इस बात का प्रतीक है कि कानून अब भी रसूखदारों के इशारे पर झुक जाता है।




