गौरेला पेंड्रा मरवाही

11 महीने से नहीं मिली छात्रवृत्ति, भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई जनजाति आवासीय विद्यालय योजना

छत्तीसगढ़ उजाला

 

गौरेला पेण्ड्रा मरवाही (छत्तीसगढ़ उजाला)। केंद्र और राज्य सरकार की अति पिछड़े जनजातियों को मुख्य धारा में लाने की विशेष पिछड़ी जनजाति आवासीय विद्यालय योजना अव्यवस्था, अनदेखी और भ्रष्टाचार की भेँट चढ़ गई है। आवासीय विद्यालय में रहने वाले छात्रों को पिछले 11 महीना से छात्रवृत्ति नहीं मिली है। जिससे छात्रावास से लेकर विद्यालय तक पूरी तरह अव्यवस्था है, वहीं आवासीय विद्यालय और छात्रावास में हुए गुणवत्ताहीन काम से बिल्डिंग 4 वर्षों में ही पूरी तरह जर्जर हो गई है। जिम्मेदार अधिकारी पूरे मामले का ठीकरा राज्य सरकार पर फोड़ते नजर आ रहे हैं।

छत्तीसगढ़ की विशेष पिछली जनजाति पहाड़ी कोरवा, कमार, बैगा, अबूझमाड़ीया जैसी जनजातियों के आधुनिक समाज से साथ आगे बढ़ाने एवं कंधेंसे कंधा मिला कर चलने के लिए केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ में 10 आवासीय विद्यालय छात्रावासों के साथ निर्माण कराए जिसमें पहाड़ी कोरवा के लिए बलरामपुर में भेलवाडीह , अंबिकापुर में घंघरी, कमार जनजाति के लिए धमतरी के मुकुंदपुर, गरियाबंद में केशोडोर, बैगा जनजाति के लिए कबीरधाम के पंडरिया के पोलमी एवं बोड़ला में चौरा , कोरिया भरतपुर में नोढिया, गौरेला पेण्ड्रा मरवाही जिले में धनोली, अबुझमाड़िया जनजाति के लिए नारायणपुर के ओरछा में वर्ष 2019-20 में बनाए गए।

इन विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए भी शासन ने विशेष व्यवस्था की जिसमें विद्यार्थियों पर सिर्फ रहवास , भोजन एवं शिक्षण शामिल है ₹25500 रुपये प्रति शैक्षणिक सत्र मतलब 10 माह के लिए प्रावधान किया, इसके अलावा कार्यालय कर्मचारियों के वेतन सहित , कोचिंग एवं अन्य मिलाकर प्रति छात्र, प्रति शैक्षणिक सत्र 85000 का प्रावधान किया, इतनी भारी भरकम व्यवस्था के बाद से विद्यालय लगातार पूरी व्यवस्था के साथ चल रहा था पर पिछले शैक्षणिक सत्र अगस्त 2023 के बाद से अब तक विद्यालय को एक भी रुपए प्राप्त नहीं हुए हैं ना तो छात्रवृत्ति के रूप में ना ही अन्य व्यय के रूप में, जिससे छात्रावास में रहने वाले छात्रों और उनके व्यवस्थापकों की हालत खराब है , छात्रावास अधीक्षक और प्रधान पाठक साफ कह रहे हैं कि 11 महीने से पैसे नहीं आने से व्यवस्था चरमरा गई है , राशन उधारी में आ रहा है अब दुकानदार भी उधारी देने में आनाकानी कर रहा है।

वही शैक्षणिक व्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित है, हालांकि गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले का बैगा विद्यालय शुरू से ही अव्यवस्था का शिकार रहा है बात अगर नए बने बिल्डिंग की की जाए तो 2020 में बनकर तैयार हुई बिल्डिंग 4 वर्षों में बुरी तरह जर्जर हो गई है जगह-जगह से प्लास्टर झड़ रहा है , इतनी घटिया दर्जे का निर्माण किया गया है की बिल्डिंग में जगह-जगह बड़े-बड़े क्रैक नजर आ रहे हैं जिस कंक्रीट में आसानी से कील भी ठोकी नहीं जा सकनी चाहिए थी उसका प्लास्टर साधारण हाथों से मसलने पर धूल में परिवर्तित हो जा रहा है, स्थानी नागरिक भी घटिया निर्माण के लिए ठेकेदारों के साथ अधिकारियों मिली भगत की बात कह रहे हैं , बात शिक्षण व्यवस्था की करें तो कक्षा एक से नवमी तक की स्कूल में प्रधान पाठक सहित कुल चार शिक्षक ही मिले ज्यादातर कक्षाएं खाली थी चक्की शासन द्वारा स्वीकृत सेटअप के अनुसार कक्षा पहली से दसवीं तक प्रति कक्षा 20 सीट के अनुसार कम से कम 11 शिक्षकों की नियुक्ति आवश्यक है।
इस तरह गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले का यह विशेष पिछड़ी जनजाति विद्यालय शासन की मनसा के बिल्कुल विपरीत काम कर रहा है इस आदिवासी बाहुल्य जिले में निवास करने वाले राष्ट्रपति के गोद पुत्र का दर्जा प्राप्त होगा आदिवासियों के विकास एवं संवर्धन के लिए बनाए गए इस विद्यालय में व्याप्त अव्यवस्थाओं के लिए जब आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त से बात की गई तो उनका जवाब भी काम चौंकाने वाला नहीं था शिक्षक की व्यवस्था न होने पर उन्होंने कहा कि तो अधीक्षकों को वहां पढ़ने की जिम्मेदारी दी गई है पर जिस अधीक्षक कोमेश बैगा की बात की गई वो बैगा विद्यालय से कुछ ही दूरी पर एक शासकीय विद्यालय पकरीकछार में शासकीय शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं देते हुए और वहाँ के छात्रों को पढ़ाते हुए भी मिले, वही 11 माह से विद्यालय का पैसा ना आने पर जब उनसे बात की गई तो उन्होंने इसका ठीकरा राज्य सरकार पर फोड़ते हुए कहा कि सभी 11 विशेष पिछली जनजाति विद्यालयों में फंड नहीं आया हैं बजट का इशू है , वही 11 महीने से उधारी में चल रहे छात्रावास के राशन व्यवस्था पर कोई वैकल्पिक व्यवस्था या बजट या राशि देने से भी इंकार कर दिया।

85000 प्रति शैक्षणिक सत्र प्रति छात्र पर खर्च करना एक बड़ा बजट है पर यदि 11 महीने से बजट नहीं आ रहा है तो यह पूरी व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगता है वही शैक्षणिक व्यवस्था के प्रति भी उच्च अधिकारियों का यह रवैया बैगा बच्चों के भविष्य और पूरी योजना की मंशा को खराब करने वाला हो सकता है।

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