“कानफोड़ू डीजे, बहरा कानून — और रसूखदारों की मस्ती!-✍️ चंद्र शेखर शर्मा (पत्रकार)

डीजे वाले बाबू… मेरा कान तो छोड़ दे!
“रसगुल्ला गाल दिखे लाल टुरा अलबेला”,
“रानो मुंबई की रानो” —
जैसे फूहड़ गीतों की धुन पर देर रात तक गूंजते कानफोड़ू डीजे और धुमाल ने सोशल मीडिया पर हंगामा मचा दिया है। अब जब जनता ने नींद हराम कर दी, तो पुलिस भी नींद से जागने लगी है। वरना यह VVIP जिला तो वैसे भी “सब मस्त, सब व्यस्त” वाले अंदाज़ में चलता है।
कहावत है — “कानून अंधा होता है”, लेकिन यहां तो लगता है कि अब बहरा भी हो गया है!
कोतवाली के सामने फूटते पटाखे और डीजे की गड़गड़ाहट किसी को सुनाई नहीं देती। पर जैसे ही किसी खास की नींद या “शांति” में खलल पड़ जाए, तब याद आता है कोलाहल अधिनियम का कानून! फिर सोशल मीडिया के वीडियो से गुनहगारों की तलाश होती है और एकाध दिखावटी कार्रवाई शुरू हो जाती है।
कानफोड़ू डीजे और रसूखदारों की मस्ती
न्यायालय के आदेश हवा में उड़ रहे हैं।
रातभर बजते डीजे, नशे में धुत्त भक्त, और अश्लील गानों की ताल पर थिरकते युवाओं ने माहौल को बेहाल कर दिया है। अब युवाओं में वर्दी का खौफ नाम की चीज ही नहीं बची। पुलिस अगर रोकने जाए तो जवाब मिलता है —
“हमारे बाप का रसूख है, कौन क्या बिगाड़ लेगा!”
क्योंकि हर टुरा का कोई न कोई “नेता अंकल” जरूर निकल आता है, जो उनके कानूनी पापों को राजनीतिक संरक्षण का कवच पहना देता है।
लपरहा टुरा की दलील
लपरहा टुरा कहता है —
“महाराज, लोग तो बेवजह नाराज़ होते हैं। देश की बदहाल हालत, महंगाई, लुटती बेटियां, नशे में डूबता समाज, बैंकों की हालत — इन सब पर तो किसी को गुस्सा नहीं आता। लेकिन डीजे बज गया तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा!”
बात में कुछ दम भी है। दिवाली के कानफोड़ू पटाखों से जैसे-तैसे छुटकारा मिला ही था कि अब डीजे की धुनों से मुक्ति का बवाल शुरू हो गया।
गोबरहीन टुरी का तर्क
इतने में गोबरहीन टुरी भी आ धमकी। बोली —
“महाराज, अब काबर टेंशन लेथस? नवा-नवा जवान लइका हावंय, थोड़े बहुत नाच-गा लिहिन, मजा कर लिहिन। तोर एकाध रात की नींद खराब हो जाही त कउनसा पहाड़ टूट जाही! अरे, हार्ट अटैक आ जाही त सरकार आयुष्मान भारत योजना दे हे ना! पांच लाख तक मुफ़्त इलाज अउ 1000 रुपया महतारी वंदन में! काठी-माटी के चिंता सरकार करथे, आदमी ल का चाही भला बताओ?”
गोबरहीन की बातों में तुक तो है।
क्योंकि यही देश है जहां कानून किताबों में बंद है — जब तक कि किसी “बड़े साहब” की बत्ती उस पर न पड़ जाए।
कानून और रसूख का गठजोड़
गुटखा पाउच से लेकर सार्वजनिक जगहों पर शराब पीना — सब कानूनन अपराध है, पर कोई रुकता है क्या?
रात दस के बाद डीजे और धुमाल पर रोक है, मगर कौन मानता है?
कानून की धाराएं यहां “वसूली अभियान” और “जेब गर्म करने” का जरिया बन चुकी हैं।
खाकी को VVIP ड्यूटी और जुआ पकड़ने से फुर्सत नहीं, ऊपर से कानों में ईयरफोन ठुसे रहते हैं — तो भला डीजे की चीख कहां सुनाई देगी?
यह ऐसा शहर है, जहां गूंगे से कहा जाता है बहरों को पुकारो!
यहां वही दमदार है जो कानून को जेब में रखकर घूमता है।
चलते-चलते सवाल
1️⃣ कबीरधाम में जल जीवन मिशन को भ्रष्टाचार मिशन बनाने वालों पर कार्रवाई होगी या मिठाई के डिब्बे के बोझ तले फाइलें फिर दब जाएंगी?
2️⃣ चिल्फी बैरियर के साहब की मोबाइल लोकेशन अगर जांची जाए तो कितने दिन बैरियर पर रहे, पोल खुल जाएगी — पर रिश्वत के दौर में जांच करेगा कौन?
और आखिर में…
> “बोलने वाले की ही इज़्ज़त निगल जाती है,
जब जीभ तमीज़ से आगे निकल जाती है।”




