*कानून की अनदेखी: जून में दायर आरटीआई का शिक्षा विभाग ने अबतक नहीं दिया जवाब, फर्जी दस्तावेज से नौकरी कर रहे शिक्षक को बचाने एड़ी- चोटी एक, आवेदक को दी गई लालच भरी धमकियां*
छत्तीसगढ उजाला
कोरबा/पोड़ी उपरोड़ा (छत्तीसगढ उजाला)। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 एक मौलिक अधिकार है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1) क में आता है और जिसके तहत नागरिकों को सरकार की गतिविधियों के बारे में जानकारी देना सुनिश्चित किया गया है। यह अधिकार नागरिकों को सशक्त बनाने और सरकारी कार्यशैली में पारदर्शिता व जवाबदेही के लिए लागू किया गया है। लेकिन जिले के शिक्षा विभाग के अधिकारी लोक सूचना का अधिकार अधिनियम को नहीं मानते हैं। इस विभाग के अधिकारी लोक सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन करने वाले आवेदक को न तो निर्धारित समय में वांछित सूचना उपलब्ध कराते हैं और न ही प्रथम अपील दायर करने पर प्रथम अपीलीय प्राधिकार सह जिला शिक्षा पदाधिकारी अपीलीय वाद की सुनवाई करना ही उचित समझते हैं। जिसके कारण आवेदक को वांछित सूचना नहीं मिल पाती है और न ही विभागीय स्तर पर होने वाली मनमानी ही सामने आ पाती है। विगत माह 12 जून 2024 को आरटीआई कार्यकर्ता एवं आवेदक बादल दुबे (विजय) ने जनसूचना पदाधिकारी सह पोड़ी उपरोड़ा बीईओ से इस विकासखण्ड के एक हायर सेकेण्डरी स्कूल में पदस्थ शिक्षक के सेवा पुस्तिका में संलग्न दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतिलिपि उपलब्ध कराने की मांग की थी। लेकिन आवेदक को 30 दिवस का समय सीमा बीत जाने के बाद भी वांछित जानकारी उपलब्ध नही कराया गया, लिहाजा आवेदक बादल दुबे ने प्रथम अपीलीय प्राधिकार सह डीईओ कार्यालय में 21 जुलाई को प्रथम अपील दायर किया। जिसकी प्रथम अपील सुनवाई 08 अगस्त निर्धारित की गई लेकिन बाद में बिना कारण सुनवाई निरस्त कर 16 सितंबर की तिथि दी गई और जिस तिथि को भी निरस्त करते हुए 19 सितंबर सुनवाई की तिथि बढ़ाई गई। इस तिथि में आवेदक कार्यालय में उपस्थित हुआ तो पुनः सुनवाई तिथि बढ़ाई जा रही थी किंतु आवेदक के विरोध के बाद सुनवाई शुरू हुई जिसमें आवेदक ने माननीय उच्चतम न्यायालय, केंद्रीय सूचना आयोग के जजमेंट सहित सूचना का अधिकार अधिनियम से संबंधित अन्य तथ्यों को रखते हुए जानकारी प्रदान करने की बात कही। लेकिन प्रथम अपीलीय अधिकारी सह डीईओ ने आवेदक के सारे बातों को नजर अंदाज करते हुए कहा कि जरूरी नही की हर जजमेंट और आदेशों को माना जाए, जानकारी चाहिए तो आयोग जा सकते हो… या जहां तुम जाओ। ऐसे में यह पता चलता है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी लोक सूचना का अधिकार को लेकर कितने संजीदा हैं। ऐसे में इस विभाग में पसरे अव्यवस्था से जिम्मेदार अधिकारियों की कोई भूमिका नजर नही आती। आरटीआई कार्यकर्ता एवं आवेदक बादल दुबे का आरोप है कि जिस शिक्षक के सेवा पुस्तिका से संबंधित जानकारी मांगी गई है उन्होंने फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत कर नौकरी प्राप्त की है। पर फर्जी तरीके से शिक्षक की भूमिका निभाने वाले से सांठगांठ के कारण शिक्षा विभाग द्वारा उसकी जानकारी देने में आनाकानी की जा रही है। यहां तक कि खण्डशिक्षा कार्यालय पोड़ी उपरोड़ा में प्रथम आवेदन देने पश्चात यहां पदस्थ अधिकारी एबीओ द्वारा अपने ऊंचे पहुँच और दबदबा होने की बात करते हुए जानकारी देने से साफ मना कर दिया गया और अन्य से लालच भरी धमकियां भी दिलवाई गई। फर्जी दस्तावेजों के सहारे वर्षों से नौकरी कर रहे एक शिक्षक को बचाने खण्ड शिक्षाधिकारी कार्यालय से जिला शिक्षाधिकारी कार्यालय तक एड़ी- चोटी एक कर दी गई है। इसकी शिकायत आवेदक ने राज्य सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त, लोक शिक्षण संचनालय के संचालक एवं संयुक्त संचालक शिक्षा संभाग बिलासपुर से करने की बात कही है। इस मामले में जिला शिक्षाधिकारी टी.पी. उपाध्याय से उनका पक्ष जानने के लिए उनके मोबाइल पर संपर्क साधा गया लेकिन उनसे संपर्क नही हो पाया।
सूचना का अधिकार का सामान्य प्रदर्शन स्कूलों में नही, अधिनियम से अनजान विद्यार्थी
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 राज्य में लागू किया गया अर्से बीत गया है। लेकिन अब भी हाई व हायर सेकेण्डरी स्कूल के विद्यार्थी इस अधिनियम से अनजान है। विद्यार्थियों से पूछने पर उनका जवाब एक- दो लाइन से अधिक नही होता। विद्यार्थी यही बताते है कि इससे लोगों को सूचना मिलती है, लेकिन अधिनियम के सामान्य तौर तरीके विद्यार्थियों को मालूम नही है। शिक्षा गुणवत्ता वर्ष में स्कूल में कई तरह के ज्ञानवर्धक स्लोगन, सामान्य जानकारी आदि प्रदर्शित की जा रही है, किंतु आरटीआई की जानकारी का सामान्य प्रदर्शन स्कूलों में नही हो रहा है। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले के शिक्षा विभाग में सूचना का अधिकार कानून की क्या स्थिति है।