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*आरटीआई में बड़ा खुलासा या दबाने की कोशिश? अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज ने दवा खरीद और निर्माण की जानकारी देने से किया इनकार*

छत्तीसगढ़ उजाला

 

अंबिकापुर/सरगुजा (छत्तीसगढ़ उजाला)। सूचना का अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी को लेकर राजमाता श्रीमती देवेन्द्र कुमारी सिंहदेव गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, अंबिकापुर विवादों में घिर गया है। पत्रकार आशीष सिन्हा द्वारा वित्तीय वर्ष 2024-25 में की गई दवा, इंजेक्शन और उपकरण खरीद एवं निर्माण कार्य से जुड़ी जानकारी मांगी गई थी, लेकिन कॉलेज प्रशासन ने इसे “काल्पनिक और प्रश्नात्मक श्रेणी” में डालते हुए जानकारी देने से इनकार कर दिया।

आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी

पत्रकार आशीष सिन्हा ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत निम्नलिखित जानकारी मांगी थी:

1. क्या मेडिकल कॉलेज में दवा, इंजेक्शन और उपकरण खरीदी गई?

2. अगर हां, तो किन कंपनियों से खरीदी की गई और आदेश की प्रतिलिपि प्रदान करें।

3. निर्माण कार्य से जुड़े आदेशों की प्रतिलिपि उपलब्ध कराएं।

4. खरीद एवं निर्माण कार्य का टेंडर किस अधिकारी द्वारा जारी किया गया?

5. इस कार्य में अनियमितता पाए जाने पर कर्मचारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई होगी और इसकी जानकारी किस अधिकारी से ली जा सकती है?

प्रशासन का जवाब: जानकारी नहीं दी जा सकती!

जनसूचना अधिकारी डॉ. बी. आर. सिंह ने जवाब में कहा कि मांगी गई अधिकांश जानकारी भारत सरकार, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के परिपत्रों के अनुसार “काल्पनिक और प्रश्नात्मक श्रेणी” में आती है, इसलिए इसे साझा नहीं किया जा सकता।

सूचना छिपाने की कोशिश या नियमों का पालन?

सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) का उद्देश्य सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है। लेकिन जब दवा खरीद और निर्माण कार्य जैसे महत्वपूर्ण मामलों में जानकारी नहीं दी जाती, तो यह संदेह पैदा करता है। सवाल उठता है कि आखिर प्रशासन कौन-सी जानकारी छुपाना चाहता है?

संभावित अनियमितताओं की ओर इशारा

मेडिकल कॉलेज में हुई खरीद और निर्माण कार्य में गड़बड़ियों की आशंका इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि प्रशासन ने न सिर्फ टेंडर से जुड़ी जानकारी देने से इनकार किया, बल्कि यह भी नहीं बताया कि किसी अनियमितता की स्थिति में कौन अधिकारी जिम्मेदार होगा। इससे सवाल खड़ा होता है कि क्या इसमें किसी बड़े घोटाले की बू आ रही है?

क्या होगी अगली कार्रवाई?

पत्रकार आशीष सिन्हा अब इस मामले को आगे ले जाने के लिए राज्य सूचना आयोग (SIC) और केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) में अपील दायर करेंगे। इसके अलावा, यदि जानकारी छिपाने की पुष्टि होती है, तो वे उच्च न्यायालय में भी याचिका दायर कर सकते हैं।

इसके साथ ही, वे मेडिकल कॉलेज में हुई संभावित वित्तीय अनियमितताओं को उजागर करने के लिए विभिन्न सरकारी एजेंसियों और सतर्कता विभाग से संपर्क करेंगे, ताकि इस मामले की विस्तृत जांच कराई जा सके।

यदि इसमें किसी अधिकारी या ठेकेदार की संलिप्तता पाई जाती है, तो यह राज्य सरकार के लिए भी एक गंभीर मुद्दा बन सकता है और मामले में आर्थिक अपराध शाखा (EOW) या भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) की जांच भी हो सकती है।

यह मामला सिर्फ एक मेडिकल कॉलेज तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सरकारी संस्थानों में पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है। अगर प्रशासन के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है, तो उसे पूरी जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए। अन्यथा, यह सवाल उठता रहेगा कि क्या मेडिकल कॉलेज में वित्तीय अनियमितताएं हुई हैं? यदि हां, तो इनका पर्दाफाश कब होगा?

अब देखना होगा कि सूचना आयोग और उच्च न्यायालय इस पर क्या निर्णय लेते हैं और क्या प्रशासन को सच्चाई सामने लाने के लिए मजबूर किया जा सकता है या नहीं?

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