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सरकारी योजनाओं की समीक्षा: जन समस्या निवारण शिविरों की हकीकत.?

छत्तीसगढ़ उजाला

 

अंबिकापुर/सरगुजा (छत्तीसगढ़ उजाला)। सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम 2005 के तहत प्राप्त जानकारी से यह स्पष्ट हुआ है कि पिछले पाँच वर्षों में प्रदेश में जिला स्तरीय जन समस्या निवारण शिविरों का आयोजन किया गया। लेकिन प्रशासन से प्राप्त जवाब से यह सवाल उठता है कि इन शिविरों की पारदर्शिता और प्रभावशीलता कितनी रही?

पत्रकार आशीष सिन्हा द्वारा दायर आरटीआई के जवाब में यह सामने आया कि शिविरों का आयोजन तो हुआ, लेकिन प्रशासन ने विस्तृत आंकड़ों और दस्तावेजों की प्रतिलिपि उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया। जनसूचना अधिकारी का कहना है कि वे सूचना का सृजन करने के लिए बाध्य नहीं हैं, जबकि अधिनियम स्पष्ट करता है कि यदि सूचना किसी अन्य विभाग से संबंधित हो, तो उसे हस्तांतरित किया जाना चाहिए।

जन समस्या निवारण शिविर: सिर्फ दिखावा या असली समाधान?

आरटीआई के तहत प्रशासन से पूछा गया था:

1. पिछले पाँच वर्षों में जन समस्या निवारण शिविरों की तिथि और संख्या।

2. इन शिविरों में प्राप्त शिकायतों और उनके समाधान की संख्या।

3. शिविरों के आयोजन का तरीका – क्या वे सरकारी स्तर पर हुए या किसी निजी एजेंसी को ठेका दिया गया?

4. यदि टेंडर हुआ तो किस अधिकारी ने इसे जारी किया और ठेका किस कंपनी को मिला?

5. शिविरों में हुई अनियमितताओं पर कार्रवाई की जानकारी।

लेकिन प्रशासन ने इन सभी सवालों पर अस्पष्ट जवाब दिए। यह स्पष्ट नहीं किया गया कि कितने नागरिकों की समस्याओं का समाधान हुआ और यदि ठेका दिया गया तो उसकी प्रक्रिया क्या थी।

प्रशासन की चुप्पी और जवाबदेही का सवाल

सरगुजा जिला प्रशासन और महिला एवं बाल विकास विभाग के बीच पत्राचार से यह जाहिर हुआ कि सूचना को एक-दूसरे के विभागों में स्थानांतरित किया जा रहा है, लेकिन कोई स्पष्ट उत्तर देने को तैयार नहीं। इससे सरकारी योजनाओं की पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं।

यदि ये शिविर वास्तव में सफल रहे, तो प्रशासन को उनके बारे में जानकारी साझा करने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन दस्तावेज़ों की अनुपलब्धता और गोलमोल जवाब इस ओर इशारा करते हैं कि कहीं न कहीं कुछ छिपाया जा रहा है।

सूचना के अधिकार अधिनियम का सही क्रियान्वयन आवश्यक

इस मामले से यह भी स्पष्ट होता है कि सूचना का अधिकार अधिनियम का सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हो रहा। अगर प्रशासन पारदर्शी होता, तो वे स्पष्ट दस्तावेज़ और जानकारी देते। लेकिन इसके बजाय, सूचना न देने के बहाने खोजे जा रहे हैं।

पत्रकार आशीष सिन्हा का कहना है कि वे इस मामले को लेकर सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 19 (1) के तहत प्रथम अपील दायर करेंगे। अगर अपील में भी स्पष्ट जानकारी नहीं दी जाती, तो सूचना आयोग तक मामला ले जाने का विकल्प खुला रहेगा।

जनता को पारदर्शिता की जरूरत
जन समस्या निवारण शिविरों का उद्देश्य आम जनता की समस्याओं का समाधान करना होता है। लेकिन जब इन्हीं शिविरों से जुड़ी जानकारी को छुपाने की कोशिश की जाती है, तो यह सवाल उठता है कि क्या ये केवल कागज़ी खानापूर्ति के लिए आयोजित किए गए थे?

सरकार को चाहिए कि वह सूचना के अधिकार अधिनियम को गंभीरता से लागू करे और जनता को सही एवं संपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराए। अन्यथा, सरकारी योजनाओं पर जनता का विश्वास धीरे-धीरे खत्म होता जाएगा।

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