*राज्य स्थापना के रजत जयंती पर विशेष आलेख : छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण सहकारिता के लिए वरदान सिद्ध हुआ – अशोक बजाज*
छत्तीसगढ़ उजाला

रायपुर (छत्तीसगढ़ उजाला)। आत्मनिर्भर भारत के लिए सहकारिता सबसे महत्वपूर्ण विधा है। इसके माध्यम से समाज के कमजोर वर्ग के लोगों का आर्थिक उत्थान होता है। सहकारिता से जुड़ कर लोग सामूहिक प्रयास एवं परस्पर सहयोग से अपनी आर्थिक गतिविधियों का संचालन करते हैं तथा उचित लाभार्जन करते हैं। ग्रामीण भारत के लिए सहकारिता वरदान से कम नहीं है। सहकारिता के माध्यम से ना केवल वित्तीय प्रबन्धन बल्कि उत्पादन, उत्खनन, प्रसंस्करण, परिवहन एवं विपणन के कार्य भली भांति संपादित हो रहे हैं। सहकारी समितियाँ अपने सदस्यों को किफायती एवं प्रमाणित वस्तुयें उपलब्ध कराती है। सहकारी संगठनों एवं संस्थाओं के कार्यों में पूरी तरह पारदर्शिता होती है। सहकारी संस्थायें रोजगार सृजन भी करती है। छत्तीसगढ़ जैसे कृषि प्रधान राज्य में किसानों के उत्थान के लिए सहकारी संस्थाओं की उपयोगिता काफी महत्वपूर्ण है।
छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के पूर्व यानी सन् 2000 से पूर्व अविभाजित मध्यप्रदेश का यह भू-भाग आर्थिक रूप से पिछड़ा माना जाता था। लगातार अकाल व दुर्भिक्ष के कारण लाखों परिवारों को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती थी । फलस्वरूप हर साल पलायन की स्थिति निर्मित होती थी । छत्तीसगढ़ में सहकारी क्षेत्र भी उस दौर में उपेक्षित था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी जी की दृढ़ इच्छा शक्ति का परिणाम है कि वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया। उसके बाद ही कृषि एवं सहकारी क्षेत्र के नए दौर की शुरुवात हुई l जबकि राज्य गठन के समय छत्तीसगढ़ में सहकारी आंदोलन की स्थिति बहुत ही कमजोर थी । सहकारी संस्थायें एवं सहकारी समितियां बीमारू हालत में थी। अनुसूचित क्षेत्र की अधिकांश सहकारी समितियाँ एन.पी.ए. बढ़ने के कारण कालातीत (डिफाल्टर) हो चुकी थी । उस वक्त सहकारी आदोलन के प्रति लोगों की रूचि कम हो चुकी थी ।
छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना के समय कृषि वित्त के क्षेत्र में एक शीर्ष बैंक के अलावा 7 केन्द्रीय बैंक थे जो कि 1333 सहकारी समितियों (पैक्स एवं लैम्प) के माध्यम से वित्त पोषण करते थे । समूचे छतीसगढ़ में सहकारी बैंकों की मात्र 213 शाखायें थी जो बढ़कर अब 345 हो गई है । यह सन् 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद कृषि सहकारिता के उन्नयन के लिए गंभीरता से हुये प्रयास का परिणाम है । इसी प्रकार लगातार सुविधाओं व सेवाओं का विस्तार हुआ जिससे लघु व सीमांत कृषक भी सहकारी संस्थाओं की तरफ आकर्षित हुये । यहाँ पर यह उल्लेख करना लाजिमी होगा की राज्य गठन के प्रथम तीन वर्ष में केन्द्रीय सहकारी बैंक रायगढ़ के डिफाल्टर हो जाने से रिजर्व बैंक ने उसका लाइसेंस निरस्त कर दिया । फलस्वरूप राज्य में केन्द्रीय सहकारी बैंकों की संख्या 7 से घट कर 6 हो गई । यह सहकारी आंदोलन से जुड़े लोगों के लिए बहुत बड़ा सदमा था । अविभाजित मध्यप्रदेश में सहकारी आन्दोलन को एक बड़ा झटका पहले भी लग चुका था जब दिग्विजय सिंह सरकार ने पी.डी.एस. का काम सहकारी समितियों से छीन कर निजी हाथों में सौंप दिया था, जिससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ गरीबों को सही रूप से नहीं मिल रहा था l डॉ रमन सिंह सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत खाद्यान्न एवं अन्य वस्तुओं के वितरण का काम सहकारी समितियो को पुनः सौंपा । जिससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली दुरुस्त हुई साथ ही साथ आम लोगों की सहकारी समितियों के वितरण केन्द्र में आवाजाही शुरु हुई। डॉ. रमन सरकार ने सहकारी संस्थाओं के उन्नयन के लिए केन्द्र सरकार द्वारा बनाई गई प्रो. वैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू किया। सितम्बर 2007 में राज्य सरकार, नाबार्ड एवं क्रियान्वयन एजेन्सियों के मध्य एम.ओ.यू. हुआ। इसके तहत सहकारी समितियों को कुल 225 करोड रुपये की सहायता राशि प्रदान की गई जिससे मृतप्राय सहकारी समितियों को जीवन दान मिल गया।
किसानों के बारे में कहा जाता है कि किसान ऋण में पैदा होता है, ऋण लेकर जीता है तथा ऋण छोड़कर मर जाता है। इसकी मूल वजह यह थी कि कृषि ऋण पर भारी भरकम ब्याज वसूला जाता था। साहूकारी प्रथा के समय तीन प्रतिशत मासिक यानी 36 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर भी मुश्किल से ऋण उपलब्ध हो पाता था। खेती कोई इतना लाभकारी धंधा तो था नहीं कि इतना भारी-भरकम ब्याज लोग अदा कर सके । अत: किसान कर्ज के बोझ तले साहूकारों की गुलामी करने पर मजबूर हो जाते थे। कालांतर में सहकारी आंदोलन का विस्तार हुआ। किसानों की वित्तीय आवश्यकताओं की आपूर्ति एवं किफायती दर पर खाद-बीज उपलब्ध कराने के उद्देश्य से प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों का गठन हुआ। जिसे सामान्य क्षेत्र में पैक्स तथा अनुसूचित क्षेत्र में लैम्स कहा जाता है। सहकारी समितियां अपने सदस्य कृषकों को ऋण सुविधा प्रदान कराने लगी परन्तु इस पर ब्याज दर 16 प्रतिशत से कम नहीं था। समितियां भी समय सीमा पर ऋण अदायगी नहीं करने वाले सदस्यों से चक्रवृद्धि ब्याज वसूल कर रही थी। समय पर किसानों द्वारा ऋण अदा ना करने के अनेक कारण हो सकते हैं लेकिन उसमें से एक प्रमुख कारण मौसम की अनिश्चिता भी है । चाहे अतिवृष्टि हो, चाहे अनावृर्ष्टि अथवा समय पर वृष्टि ना हो तो कृषि-उत्पाद पर प्रतिकूल असर पड़ता ही है, फसल खराब होने के बाद किसान ऋण अदा करने में अक्षम हो जाते है। ऐसे किसान समितियों के डिफाल्फर की श्रेणी में आ जाते हैं । इनकी कृषि भूमि नीलाम हो जाती है। डॉ. रमन सरकार ने किसानों की इस दशा पर चिन्ता करते हुये कृषि ऋण पर ब्याज दर शून्य प्रतिशत कर दिया, जो किसानों के लिए वरदान सिद्ध हुआl यानी किसानों को अब केवल मूलधन ही अदा करना होता है, ब्याज की राशि समितियों को ब्याज अनुदान के रुप में सरकार अदा करती है। साल दर साल अकाल से जुझ रहे किसानों के लिए यह बहुत ही राहत भरा फैसला था। इसका परिणाम यह हुआ कि छत्तीसगढ़ निर्माण के प्रथम वर्ष में सहकारी संस्थाओं के माध्यम से 152 करोड़ रूपये का कृषि ऋण वितरित किया था जो वर्ष 2024-25 में बढ़कर लगभग 6800 करोड़ रूपये तक पहुँच गया है l ऋण लेने वाले किसानों की संख्या भी 4 लाख से बढ़कर साढ़े पंद्रह लाख हो गई है l इस बीच राष्ट्रीय फमल बीमा योजना लागू हुई, जो प्रतिकूल परिस्थितियों में किसानों के लिए आर्थिक रक्षा कवच बन गई है। डॉ. रमन सरकार ने छत्तीसगढ़ में कृषि के मानसून पर निर्भरता को कम करने के लिए एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया उन्होंने सिंचाई की सुविधा बढ़ाई । जल श्रोतों की उपलब्धता के आधार पर नाला बंधान, चेक डैम एवं एनीकट का निर्माण किया जिससे छत्तीसगढ़ में सिंचित रकबा में अप्रत्याशित बढ़ौतरी हुई। इसके अलावा शाकम्भरी योजना, किसान समृद्धि योजना एवं सौर सुजला योजना लागू किया । इससे किसान सिंचाई जल के मामले में आत्मनिर्भर होने लगे। फलस्वरूप कृषि उत्पाद में अपेक्षाकृत बढ़ौतरी हुई, साथ ही साथ किसानों की आय भी बढ़ने लगी।
छत्तीसगढ़ में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी सहकारी समितियों के माध्यम से होती है। छत्तीसगढ राज्य निर्माण के प्रथम वर्ष सन् 2000-2001 में न्यूनतम् समर्थन मूल्य पर मात्र 4.63 लाख मेट्रिक टन धान की खरीदी की गई थी । जो 2024-25 में बढ़कर लगभग 150 लाख मेट्रिक टन हो गई है। वर्तमान में 2058 सहकारी समितियां द्वारा 2739 उपार्जन केन्द्रों के माध्यम से धान खरीदी की व्यवस्था की गई है। सभी उपार्जन केंद्रों में धान की खरीदी एवं भुगतान की व्यवस्था ऑनलाइन है । सभी समितियों में माइक्रो ए.टी.एम. की भी व्यवस्था की गई है तथा किसानों को रुपे के.सी.सी. कार्ड भी उपलब्ध कराया गया है । इसीलिए छत्तीसगढ़ की धान खरीदी व्यवस्था को पूरे देश में एक आदर्श व्यवस्था के रूप में माना जाता है ।
केन्द्र की मोदी सरकार भी सहकारी आन्दोलन के लिए प्रति काफी गंभीर है। इसीलिए केन्द्र में सहकारिता मंत्रालय की स्थापना कर कद्दावर मंत्री श्री अमित शाह जी को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है। श्री शाह दृढ़ निश्चयी है तथा इरादे के पक्के हैं, सहकारिता के क्षेत्र में नई सोच के साथ नित्य नये कदम उठा रहें है। पैक्स के लिए आदर्श बायलॉज एवं सहकारी समितियों के विस्तार की उनकी योजना का लाभ देश के साथ साथ छत्तीसगढ़ को भी मिल रहा है । प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की कल्पना के अनुरूप किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय जी सहकारी आन्दोलन को लगातार गति प्रदान कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद 25 वर्षों का सफर सहकारिता के क्षेत्र में काफी उत्साह जनक रहा है । फलस्वरूप छत्तीसगढ़ की सहकारिता आज ऐसे मुकाम तक पहुंच गई है जिसे देखकर विकसित राज्य भी आश्चर्य करते है। परन्तु सहकारिता को परस्पर सहयोग एवं समन्वय के साथ आगे और भी लम्बा सफर तय करना है।
छत्तीसगढ़ निर्माण के रजत जयंती वर्ष में यह उम्मीद जागी है कि मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय जी कृषि सहकारिता के विकास तथा सहकारी आन्दोलन के विस्तार के लिए अपने इरादें और संकल्प के अनुरूप नई आधारशीला रखेंगे ।




