
छत्तीसगढ़ का नया जिला गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (GPM) लगभग हर लिहाज़ से प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। यह इलाका विंध्य और सतपुड़ा की पहाड़ियों से घिरा हुआ है, चारों ओर हरियाली और आदिवासी संस्कृति की झलक लोगों को आकर्षित करती है। लेकिन इस खूबसूरत ज़िले की एक गंभीर समस्या इन दिनों हर आम नागरिक के लिए चिंता का विषय बनी हुई है—जर्जर सड़कें और उनसे बढ़ती परेशानियाँ।
लगातार बिगड़ती सड़क व्यवस्था
जिले के विभिन्न हिस्सों, खासकर गौरेला से पेंड्रा मार्ग, पेंड्रा से मरवाही मार्ग, और इससे जुड़े ग्रामीण संपर्क मार्गों की हालत इतनी खराब है कि चलना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। जगह-जगह बड़े-बड़े गड्ढे बन चुके हैं। कई हिस्सों में सड़क की परत पूरी तरह से उखड़ चुकी है। बरसात के चलते इन गड्ढों में पानी भर गया है, जिससे यह अंदाज़ लगाना मुश्किल हो जाता है कि गड्ढा कितना गहरा है। नतीजा यह कि आए दिन वाहन चालक दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं।
स्थानीय निवासी कहते हैं कि सड़कें अब “सड़क” कम और “तालाब” ज़्यादा नज़र आती हैं। दोपहिया वाहन चालकों के लिए यह स्थिति बेहद खतरनाक बनी हुई है।
जनता की परेशानी
ग्रामीण अंचलों से आने-जाने वाले लोग बताते हैं कि हर रोज़ यह रास्ता तय करना उनके लिए मजबूरी है। विशेषकर छात्रों और किसानों को सबसे अधिक दिक्कत झेलनी पड़ रही है। कई छात्र रोज़ाना साइकिल या मोटरसाइकिल से पेंड्रा और गौरेला आकर स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई करते हैं, लेकिन सड़क की हालत इतनी खराब है कि हर सफर जोखिम भरा होता है।
मरीजों के लिए स्थिति और भी गंभीर है। जिला अस्पताल तक पहुँचना जर्जर सड़कों की वजह से बेहद मुश्किल हो गया है। एम्बुलेंस भी अक्सर गड्ढों और कीचड़ में फँस जाती है। कई बार देरी के कारण मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता और उनकी जान जोखिम में पड़ जाती है।
दुर्घटनाओं का खतरा
स्थानीय समाजसेवियों के अनुसार, अब तक जिले में सड़क की बदहाली के कारण सैकड़ों छोटे-बड़े हादसे हो चुके हैं। खासकर मोटरबाइक से चलने वाले युवा बार-बार फिसलकर चोट खा रहे हैं। वहीं बड़े वाहनों के लिए यह गड्ढे और कीचड़ बहुत बड़ी समस्या बन चुके हैं। कई बार बस और ट्रक बीच रास्ते में ही फँस जाते हैं, जिससे यातायात घंटों तक बाधित रहता है।
एक पीड़ित परिवार का कहना है कि हाल ही में उनके परिचित स्कूटर से पेंड्रा बाज़ार जा रहे थे लेकिन अचानक सड़क पर पानी भरे गड्ढे ने उन्हें गिरा दिया। गंभीर चोटें आने के बाद उन्हें बिलासपुर रेफ़र करना पड़ा।
लोगों का आक्रोश
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार जनपद परिषद और जिला प्रशासन से शिकायत की है। कई ज्ञापन भी सौंपे गए हैं। लेकिन अब तक केवल आश्वासन ही मिले हैं, धरातल पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। ग्रामीण अंचलों में तो हालात इतने खराब हैं कि बारात या शवयात्रा जैसी ज़रूरी यात्राओं के दौरान भी रास्ते बेहद कठिन हो जाते हैं।
कई जगहों पर युवाओं और सामाजिक संगठनों ने स्वयं सड़क मरम्मत के अस्थायी प्रयास किए हैं। हालांकि गड्ढों में मिट्टी या कंकड़ डालने से कुछ दिनों तक राहत मिलती है, लेकिन बारिश होते ही सारी मेहनत बेकार चली जाती है।
प्रशासन और अधिकारियों की प्रतिक्रिया
इस समस्या पर जब लोक निर्माण विभाग (PWD) और जिला प्रशासन के अधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने स्वीकार किया कि सड़कों की स्थिति नाजुक हो चुकी है। एक अधिकारी ने कहा, “यह इलाका अत्यधिक वर्षा प्रभावित है। भारी बारिश की वजह से पिछले साल बनी सड़कें भी जल्दी खराब हो गई हैं। हमने उच्चाधिकारियों को इसकी विस्तृत रिपोर्ट भेज दी है। टेंडर प्रक्रिया पूरी होते ही मरम्मत कार्य शुरू किया जाएगा।”
हालांकि यह बयान लोगों के लिए कोई नई बात नहीं है। ग्रामीण कहते हैं कि हर साल यही बहाना सुनने को मिलता है लेकिन जमीनी स्तर पर सुधार बहुत धीमी गति से होता है।
जनप्रतिनिधियों ने भी जताई चिंता
स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने भी सड़क की बदहाली को गंभीर माना है। जिला पंचायत सदस्यों का कहना है कि उन्होंने विधानसभा तक यह मामला उठाया है। विधायक और सांसद को भी समस्या से अवगत कराया गया है। उनका कहना है कि विकास के वादों के बावजूद ज़िले की सड़कें अपने हाल पर छोड़ दी गई हैं।
कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के नेताओं ने एक-दूसरे की सरकारों पर आरोप लगाते हुए कहा है कि जनता के साथ छलावा हो रहा है। विपक्ष का कहना है कि योजनाएँ सिर्फ़ कागज़ों पर बन रही हैं जबकि ज़मीन पर सड़कों की मरम्मत का काम शुरू ही नहीं हो रहा।
पर्यटन और अर्थव्यवस्था पर असर
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही को अमरकंटक और कान्हा राष्ट्रीय उद्यान जैसे पर्यटन स्थलों के लिए भी जाना जाता है। यह इलाका नक्सल प्रभावित नहीं है और यहां पर्यटन की अपार संभावनाएँ हैं। लेकिन जर्जर सड़कों के कारण बाहर से आने वाले पर्यटकों को गंभीर असुविधा होती है।
होटल व्यवसायियों और व्यापारी संगठनों का कहना है कि सड़क की बदहाली का सीधा असर उनके कारोबार पर पड़ रहा है। पर्यटक यहाँ आने से कतराने लगे हैं। इससे स्थानीय युवाओं के रोज़गार पर भी संकट गहराता जा रहा है।
बच्चो और महिलाओं की समस्या
गांव से स्कूल जाने वाले बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए यह स्थिति सबसे दर्दनाक है। कई बार प्रसव के लिए अस्पताल पहुँचते-पहुँचते ज़्यादा समय लग जाने के कारण गंभीर हालत बन चुकी है। पंचायत स्तर पर भी बार-बार यह मुद्दा उठाया गया है, लेकिन सहयोग और संसाधनों की कमी बताकर जिम्मेदार इससे पल्ला झाड़ लेते हैं।
जनता की मांग
लोगों की मांग है कि जिला प्रशासन और राज्य सरकार जल्द से जल्द स्थायी समाधान निकाले। स्थानीय नागरिक यह भी कहते हैं कि अब केवल गड्ढा-भराई से काम नहीं चलेगा, बल्कि पूरी सड़क का नया निर्माण होना चाहिए।


ग्रामीण संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र कार्यवाही नहीं हुई तो वे आंदोलन करेंगे और सड़क पर उतरकर चक्का जाम करेंगे।
निष्कर्ष
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में सड़क की खस्ता हालत केवल सुविधा की कमी नहीं, बल्कि आम जनता की ज़िंदगी और मौत से जुड़ा सवाल बन चुकी है। अनुमति, टेंडर और तकनीकी प्रक्रियाओं की आड़ में अगर हालात को लंबे समय तक टाला गया, तो जिले की आम जनता का विश्वास शासन-प्रशासन से पूरी तरह उठ सकता है।
अब ज़रूरी है कि जिला प्रशासन और लोक निर्माण विभाग युद्धस्तर पर सड़क मरम्मत और निर्माण का काम शुरू करें, ताकि इस जिले के लोगों को राहत मिले और विकास की राह में यह बड़ी अड़चन दूर हो सके।