*पुरातात्विक शिवमंदिर के निषिद्ध क्षेत्र के भीतर बिना अनुमति धड़ल्ले से चल रहा राखड़ डंप कार्य, उड़ते राखड़ से प्राचीन मंदिर को पहुँच रहा नुकसान, पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का ध्यान नही*
छत्तीसगढ़ उजाला

कोरबा/पाली (छत्तीसगढ़ उजाला)। राजकीय सुरक्षित घोषित क्षेत्र, पुरास्थल, स्मारक, पुरावशेष स्थल के निर्धारित दायरे के भीतर पुरातत्व संरक्षण विभाग के बिना अनुमति किसी भी प्रकार के निर्माण अथवा अन्य निजी कार्य निषिद्ध है। इसका मुख्य उद्देश्य राज्य में स्थित प्राचीन स्मारकों, पुरातत्व स्थलों और अवशेषों का बचाव करना है। उक्त अधिनियम के अनुसार ऐसे पुरातात्विक स्थलों को किसी भी प्रकार से नुकसान पहुँचाना दंडनीय अपराध है। जिसमे पाली का ऐतिहासिक शिवमंदिर भी समाहित है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से देखने मे आ रहा है कि बिना पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से अनुमति प्राप्त किये ही विभिन्न सरकारी योजनाओं के अंतर्गत सुरक्षित घोषित पुरास्थल के दायरे में निर्माण कार्य के तहत राखड़ डंप का कार्य कराया जा रहा है। जिसके उड़ने से प्राचीन मंदिर को नुकसान पहुँच रहा है। जिस पर रोक लगाने विभाग गंभीर दिखाई नही दे रहा है।
बिलासपुर- कटघोरा के मध्य स्थित पाली का प्राचीन महादेव मंदिर 12 ज्योर्तिलिंग के मध्य भाग का माना जाता है, जो नौकोनिया तालाब के पश्चिम तट पर पूर्वाभिमुख नागर शैली में बना सप्तरथ शिवमंदिर है। इसका निर्माण 870 से 900 ईसवी के मध्य वाणवंशी प्रथम विक्रमादित्य ने कराया था। बाद में कल्चुरी राजवंश के जाजल्वदेव प्रथम ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इस मंदिर का किवंदंति है उसके अनुसार 9वीं शताब्दी के अंत मे त्रिपुरी के कल्चुरी प्रथम कोकल्ल के द्वितीय पुत्र शंकरण अर्थात मुग्धतुंग प्रसिद्ध धवल ने तत्कालीन कौशल नरेश पाली प्रदेश जीत लिया था। वह अपने छोटे भाई को इस प्रदेश का शासक नियुक्त कर त्रिपुरी लौट गया। लेकिन स्वर्णपूर्ण (सोनपुर उड़ीसा) के सोमवंशी राजा ने सन 950 में कलिंग कल्चुरियों को यहां से भगा दिया। त्रिपुरी के कल्चुरी इस हार को भूल नही पाए। 100 वर्ष बाद पुनः द्वितीय कोकल्लदेव के पुत्र कलिंगराज ने विजय अभियान शुरू किया। आगे चलकर कल्चुरी राजवंश ने ही शिवमंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इस दौरान जाजल्वदेव ने पुराने मंदिर में उत्कीर्ण विक्रमादित्य का नाम नए निर्माण के दौरान दबा दिया और मंडप में कई जगह श्री मज्जालयदेवस्य कीर्ति खुदवाया। पाली का यह शिवमंदिर सोमवंशी, वाणवंशी व कल्चुरी राजाओं के लिए विजय का प्रतीक बना रहा और इनमें से किसी ने भी नुकसान पहुँचाने का प्रयास नही किया। यही वजह है कि 11वी शताब्दी का शिवमंदिर जो कि प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहर में से एक है। साथ ही यह पुरातात्विक धरोहर ही नही, अपितु धार्मिक, तीर्थाटन व पर्यटन का जीवंत केंद्र भी है। यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण में होने और मंदिर के पुरातत्व स्वरूप को कोई क्षति न हो इसके लिए 100 मीटर के निषिद्ध क्षेत्र के भीतर किसी भी प्रकार के निजी निर्माण की अनुमति नही है, बावजूद इसके बीते कुछ दिनों से पुरास्थल से महज 20 मीटर के दायरे में निजी निर्माण कार्य के तहत राखड़ डंप का कार्य कराते हुए नियमों का घोर उल्लंघन किया जा रहा है। जहां डंप राखड़ के उड़ने से मंदिर को नुकसान पहुँच रहा है और इसके आस्तित्व पर खतरा पैदा हो गया है। जिस ओर विभाग का ध्यान नही जा पाना आश्चर्य की बात है। मापदंडों का घोर उल्लंघन कर मंदिर के लिए खतरा पैदा करने वाले कार्य को तत्काल रोके जाने की मांग पुरातात्विक पसंद लोगों ने की है।