●सियासत●
रायपुर छत्तीसगढ़ उजाला। छत्तीसगढ़ में 15 साल राज करने वाली भाजपा को पिछले चुनाव में 15 सीटों पर सिमट जाने की याद दिलाते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कह रहे हैं कि 3 दिसंबर आने दो। देख लेंगे कि 15 से आगे बढ़ते हैं कि नहीं। मतलब यह कि कांग्रेस को लग रहा है कि भाजपा 2023 में भी 2018 जैसी ही रहेगी। जबकि भाजपा में हर कोई सत्ता में आने का भरोसा पाले हुए है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव दावा कर चुके हैं कि भाजपा सरकार में आ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तो पहले दौर के मतदान के फौरन बाद से ही भाजपा की ताजपोशी का दावा ठोंक रहे हैं। पहले वे स्पष्ट बहुमत की उम्मीद कर रहे थे। फिर 50 से 52 पर आए। अब 55 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं। उनके दावे पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि वे कार्यकर्ताओं को ढाढस बंधा रहे हैं। जब रमन सिंह की लोकप्रियता चरम पर थी, तब भी 52 से आगे नहीं बढ़े। अब 55 कहां से ले आएंगे। परिणाम में देखेंगे कि 15 से आगे बढ़ पाते हैं कि नहीं। इधर, भाजपा का उत्साह हिलोरें मारने से पीछे हटने तैयार नहीं है। भाजपा को पूरी उम्मीद है कि वह 5 साल में ही अपना वनवास खत्म करने में सफल होगी। सब्र कहीं भी नहीं है। कांग्रेस में भी हर कोई जीत का दावा कर रहा है। स्थिति यह है कि आंकड़े के बारे में भाजपा में सबसे आश्वस्त पूर्व मुख्यमंत्री हैं तो कांग्रेस में मुख्यमंत्री के बताए आंकड़े पार्टी के भीतर ही मेल नहीं खा रहे। तब भी कांग्रेस के सभी बड़े नेता सत्ता सलामत रहने के भरोसे मुख्यमंत्री पद के लिए अपने अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं।
जो दिग्गज बड़ी कुर्सी की दौड़ में शामिल हैं, वे जाहिर कर रहे हैं कि भूपेश बघेल का राजतिलक गारंटेड नहीं है। यह बात मतदान के पहले से सामने आ रही है। यह किस रणनीति के तहत हुआ, यह कांग्रेस जाने। लेकिन इसका क्या असर पड़ा, यह चुनावी नतीजे सामने आने पर मालूम होगा। मुख्यमंत्री पद को लेकर कांग्रेस में बिखराव मतदान के पहले उजागर होने के दो असर हो सकते हैं। नकारात्मक और सकारात्मक असर के बीच जो ज्यादा प्रभावी रहा होगा, 3 दिसंबर को कांग्रेस की वैसी सेहत सामने आएगी। कांग्रेस ने अपनी सरकार के काम पर चुनाव लड़ा है तो सरकार के नेतृत्व के प्रति सौ फीसदी भरोसा व्यक्त किया जाना चाहिए था लेकिन कांग्रेस ने भूपेश है तो भरोसा है, को बदलकर कांग्रेस है तो भरोसा है, का सोच परिवर्तन किया।
क्या यह संदेश दिया गया है कि जिन्हें भूपेश पर भरोसा नहीं है, उन्हें भी कांग्रेस पर भरोसा है? बेशक, जनता ने पिछले चुनाव में भूपेश पर नहीं, कांग्रेस पर भरोसा किया था। कांग्रेस ने सिंहदेव, महंत, ताम्रध्वज की बजाय भूपेश पर भरोसा किया और उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। कांग्रेस के राहुल, प्रियंका, मल्लिकार्जुन जैसे बड़े नेता जब देश भर में भूपेश बघेल का छत्तीसगढ़ मॉडल दिखाकर वोट मांगते हैं तो छत्तीसगढ़ में उन्हें प्रोजेक्ट करने की जगह सामूहिक नेतृत्व की बात क्यों? जनता के मन में यह सवाल स्वाभाविक रूप से रहा। एक सवाल यह भी है कि जिन्हें भूपेश बघेल पर भरोसा है, क्या वे इस उलझन में नहीं होंगे कि जब भूपेश की ही गारंटी कांग्रेस ने नहीं दी है तो भूपेश बघेल की गारंटियों पर कितना भरोसा किया जाए? क्या ऐसे लोग कांग्रेस के प्रति निराश नहीं हुए हैं?
कांग्रेस ने डबल दांव खेला है। भूपेश बघेल को आगे तो रखा है लेकिन पूरी तरह नहीं। कांग्रेस ने बीच का रास्ता इसलिए निकाला कि दिग्गज मिलकर कांग्रेस को जिताएं। यदि जीत गए तो फैसला आलाकमान को ही करना है। कोई चूं भी नहीं कर पाएगा। दूसरी तरफ भाजपा जीत के दावे करते हुए कह रही है कि पार्टी नेतृत्व जिसे चाहे, नेतृत्व सौंप दे, मकसद मोदी गारंटी पूरी करना ही होगा। भाजपा विपक्ष में है तो उसका सामूहिक नेतृत्व समझ में आता है लेकिन कांग्रेस में यह सामूहिक नेतृत्व सही असर दे गया, इसकी उम्मीद ज्यादा नहीं है। अब भाजपा की ओर से नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल का भी यही मत सामने आया है कि विधायक दल के साथ भाजपा संगठन मुख्यमंत्री का चेहरा तय करेगा।
भाजपा में किसी भी कार्यकर्ता को जिम्मेदारी मिलेगी, वह मुख्यमंत्री बनेगा। चंदेल कह रहे हैं कि जनता का आशीर्वाद भाजपा को प्राप्त होगा। स्पष्ट बहुमत के साथ भाजपा की सरकार बनेगी। सबका सहयोग मिला है।खास तौर पर माता और बहनों का विशेष समर्थन मिला है। शराब के कारण अपराध बढ़े, जिसका सीधा असर माता और बहनों पर पड़ा। महिलाओं का रुझान भाजपा की तरफ देखने मिला। 3 दिसंबर को मतगणना में कमल खिलेगा। सीटों को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन द्वारा किए गए दावे पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बयान पर चंदेल कह रहे हैं कि हमारा विश्वास बहुमत के लायक सीट होती है। वह भाजपा को प्राप्त होगी। अब यह तो झलक रहा है कि सीटें चाहे बहुत ज्यादा न मिलें, मगर भाजपा का अनुमान है कि उसे बहुमत मिल रहा है। कांग्रेस में भी यही भरोसा है लेकिन वहां मुख्यमंत्री बढ़ चढ़ कर दावे कर रहे हैं। घबराहट दोनों तरफ है। यह तो नतीजा बताएगा कि कका बड़े दावे के साथ ढाढस बंधा रहे थे कि मुकाबले में उतरे भतीजे की भाजपा।