गौरेला पेंड्रा मरवाहीछत्तीसगढ

मरवाही के जंगलों में संचालित जुआ, कार्रवाई शून्य—आख़िर किसके संरक्षण में फल-फूल रहा है अवैध खेल?


मरवाही(छत्तीसगढ़ उजाला)
मरवाही के जंगलों में लंबे समय से कथित तौर पर अवैध जुए का संचालन किया जा रहा है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि अब तक किसी ठोस कार्रवाई का सामने न आना कई गंभीर सवाल खड़े करता है। जंगल के भीतर खुलेआम चल रहे इस जुए में न केवल स्थानीय लोग, बल्कि मध्यप्रदेश व आसपास के क्षेत्रों से भी खिलाड़ी पहुँच रहे हैं, जो प्रशासनिक निष्क्रियता की ओर इशारा करता है।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार जुआ खिलाने वाले खुद को पूरी तरह निश्चिंत बताते हैं। उनका दावा है कि “सब मैनेज है”—यही वाक्य अब सबसे बड़ा सोचनीय विषय बन चुका है। सवाल यह है कि अगर सब कुछ मैनेज है, तो आख़िर जुआ खिलाने वालों को किसका संरक्षण प्राप्त है?
जंगल जैसे दुर्गम इलाके का चयन करना भी संयोग नहीं माना जा रहा। माना जा रहा है कि इस स्थान का चुनाव इसलिए किया गया है ताकि पुलिस और प्रशासन की नजरों से बचते हुए यह अवैध खेल बेरोकटोक चलता रहे। स्थानीय लोगों का कहना है कि जुए के कारण क्षेत्र में असामाजिक तत्वों की आवाजाही बढ़ गई है, जिससे शांति और कानून-व्यवस्था दोनों पर खतरा मंडरा रहा है।
अब सवाल साफ हैं—
क्या प्रशासन को इस अवैध जुए की जानकारी नहीं है?
अगर जानकारी है, तो अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
और यदि कार्रवाई नहीं हो रही, तो संरक्षण देने वाले चेहरे कौन हैं?
यह मामला अब सिर्फ जुए का नहीं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही और कानून के पालन का बन चुका है। जनता की निगाहें अब जिला प्रशासन और पुलिस पर टिकी हैं कि वे कब इस अवैध गतिविधि पर शिकंजा कसते हैं और जंगल में चल रहे जुए के इस खेल का पर्दाफाश करते हैं।
क्योंकि जब कानून जंगल में खो जाए, तब सवाल सिर्फ अपराध का नहीं—न्याय का होता है।

प्रशांत गौतम

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