छत्तीसगढ

*सियासत* ये तो होना ही था *कांग्रेस के भीतर बदलाव का वक्त आ गया…*

●सियासत●

(अनिल मिश्रा)

रायपुर छत्तीसगढ़ उजाला। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की चुनावी हार के बाद अंदरूनी रार ठन गई है। जिसका डर था बेदर्दी, वही बात हो गई। ये तो होना ही था। कांग्रेस की हार और हार के बाद आपसी तकदार की बुनियाद भूपेश बघेल सरकार के ढाई साल पूरे होने के बाद आए घटनाक्रम, भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस सरकार के राजस्व मंत्री और सरकार के आखिरी समय में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम द्वारा भरी विधानसभा में अपनी ही सरकार पर डीएमएफ घोटाले के आरोप, कोल परिवहन, शराब घोटाले, 22 विधायकों की टिकट कटने, चुनाव के तीन चार महीने पहले संगठन और सत्ता में बदलाव ने लिख दी थी। मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे टीएस सिंहदेव को सरकार के अंत समय में उप मुख्यमंत्री बनाना भी निरर्थक साबित हुआ। बल्कि इससे कांग्रेस में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई। सिंहदेव के निपटने या शायद उन्हें निपटाने में भी एक हद तक कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान का हाथ हो सकता है। महादेव एप्प ने रही सही कसर पूरी कर दी। भूपेश सरकार को भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण का केंद्र साबित करने में भाजपा ने सारी ताकत झोंक रखी थी। उस सरकार के खिलाफ आक्रोश का दायरा देखिए कि उप मुख्यमंत्री सिंहदेव, गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, संसदीय कार्य मंत्री रवींद्र चौबे, पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अकबर, खाद्य मंत्री अमरजीत भगत, नगरीय प्रशासन मंत्री शिव डहरिया, पीएचई मंत्री रुद्र गुरु, आदिवासी कल्याण मंत्री मोहन मरकाम, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सांसद दीपक बैज, विधानसभा उपाध्यक्ष संतराम नेताम भी चुनाव हार गए।

अपनी ही सरकार के समय भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले जयसिंह भी निपट गए तो इनके साथ कुछ अलग कारण हो सकता है। कांग्रेस में जमकर बगावत हुई। हार के बाद सारे कारण खुलकर सामने आ रहे हैं। समीक्षा करने की कोई जरूरत ही नहीं है। टिकट से वंचित किए गए बृहस्पत सिंह कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी कुमारी सैलजा को हटाने की मांग कर रहे हैं तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने उन्हें नोटिस थमा दिया। जयसिंह भी मुखर हैं तो हो सकता है कि उन्हें भी नोटिस पहुंच जाए। हार के बाद अपने इस्तीफे के सवाल पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज कह चुके हैं कि सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया। अब देखें कि सामूहिक नेतृत्व के सबसे ज्यादा चमकदार चेहरे भूपेश बघेल की सरकार गिर गई, दूसरे बड़े चेहरे सिंहदेव, तीसरे बड़े चेहरे ताम्रध्वज भी हार गए। अकेले महंत ही चुनाव जीते हैं। ऐसे में महंत का कहना है कि कांग्रेस को कमजोर करने वालों की पार्टी में कोई जरूरत नहीं है। वैसे कुछ रोज बाद कांग्रेस में बड़े बदलाव हो सकते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के पहले तक हर हार के बाद कांग्रेस में प्रभारी और प्रदेश नेतृत्व बदलता रहा है।

पिछले चुनाव में छत्तीसगढ़ कांग्रेस में पीएल पुनिया और भूपेश बघेल की जोड़ी चमत्कारी साबित हुई। लेकिन इस बार चुनाव नजदीक आए तो भाजपा ने अनुभवी रणनीतिकार ओम माथुर को तैनात किया तो कांग्रेस ने पुनिया की विदाई कर कुमारी सैलजा को छत्तीसगढ़ कांग्रेस सौंप दी। मगर यह प्रयोग विफल रहा। कांग्रेस में इन दिनों जो चल रहा है, भाजपा उसका पूरा आनंद ले रही है। उसके प्रदेश प्रवक्ता केदार गुप्ता कह रहे हैं कि भूपेश बघेल सरकार के चुनाव हारते ही अब कांग्रेस के दिग्गज नेता अपनी सरकार के फटे हुए ढोल की पोल खोल रहे हैं। अपनी पार्टी पर आरोप लगा रहे हैं। आईएएस, आईपीएस ऑफिसरों के नाम लेकर आरोप लगा रहे हैं। मंत्री रहे जयसिंह अग्रवाल ने नाम लेकर कहा है कि किन अफसरों ने जनता का दोहन किया, भ्रष्टाचार किया। वहीं काम किया, जहां भ्रष्टाचार करने का आसान अवसर हो।

विनय जायसवाल अपने सह प्रभारी पर पैसे के लेनदेन का आरोप लगा रहे हैं तो बृहस्पत सिंह बता रहे हैं कि प्रदेश प्रभारी ने क्या-क्या किया। गंभीर प्रकार की जो शिकायतें सामने आ रही हैं, वह जनता के लिए पहले से ही चिंतन का गंभीर विषय थीं। कांग्रेस की सरकार ने लूट खसोट का कैसा तरीका अपनाया, यह कांग्रेस के नेता ही बयां कर रहे हैं। यह पार्टी डूब चुकी है। अब जनता को इस पार्टी से हमेशा के लिए संभल कर रहना चाहिए। उनका कहना है कि कांग्रेस के पूत के पांव पालने में ही दिखने लगे थे। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनते ही भूपेश बघेल की सरपरस्ती में माफिया राज के अंकुर फूटे और देखते ही देखते छत्तीसगढ़ विकास की पटरी से उतरकर हर तरह के माफिया की गिरफ्त में आ गया।

पांच साल में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ को उसके जन्म के पूर्व की स्थिति में पहुंचा दिया। कांग्रेस को उसके कर्मों का फल जनता ने दे दिया है। भाजपा को छत्तीसगढ़ के निर्माण और विकास के बाद अब पुनर्निर्माण का जनादेश मिला है क्योंकि कांग्रेस के कुशासन में छत्तीसगढ़ का विकास अवरुद्ध हो गया था तो भ्रष्टाचार कैसे फल फूल रहा था, यह कांग्रेस के नेता ही खुलकर कबूल कर रहे हैं। अब भाजपा तो कांग्रेस को जली कटी सुनाएगी ही। मगर जहां तक कांग्रेस के मौजूदा हालात की बात है तो सामूहिक नेतृत्व तितर बितर हो गया है। पिछली बार ‘वक्त है बदलाव का’ नारा देने वाली कांग्रेस के भीतर ही बदलाव का वक्त आ गया है।

Anil Mishra

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