आपातकाल के दौर में राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ दमनात्मक कार्यवाही, सरकार बदलते ही मीसाबंदियों को अब रुकी पेंशन की जगी आस
छत्तीसगढ़ उजाला
बिलासपुर (छत्तीसगढ़ उजाला)। छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार आते ही मीसाबंदियों में अब अपनी रुकी हुई पेंशन की आस जग गई है। प्रदेश में वर्तमान में 750 मीसाबंदी या उनके स्वजन हैं, जो उनकी जगह पेंशन के पात्र हैं। भाजपा के शासनकाल में इन्हें पेंशन मिलती थी। 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद एक साल तक तो पेंशन मिली, लेकिन इसके बाद रोक लगा दी गई। मीसाबंदियों ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की तो कोर्ट ने फैसला मीसाबंदियों के पक्ष में ही सुनाया, लेकिन राज्य सरकार ने इसे चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। तब से मामला विचाराधीन है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में यह विकल्प भी है कि राज्य सरकार चाहे तो इसे वापस ले सकती है।
आपातकाल के दौर में राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ दमनात्मक कार्रवाई हुई थी। तब मीसा कानून के तहत कई लोगों को जेल में डाल दिया गया था। इससे इनका करियर व कारोबार चौपट हो गया था। छत्तीसगढ़ में भाजपा शासनकाल के दौरान इन मीसाबंदियों को लोकतंत्र सेनानी नाम देते हुए जयप्रकाश नारायण सम्मान निधि के तहत पेंशन शुरू की गई। इनकी दो श्रेणी बनाई गई, जिसमें 10 हजार और 25 हजार रुपये प्रतिमाह पेंशन दी जाती थी। वर्ष 2018 में छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन होने के बाद कांग्रेस सरकार ने मीसा बंदियों को दी जा रही पेंशन पर रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ पेंशनरों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने मीसा बंदियों के पक्ष में फैसला सुनाया। हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी (स्पेशल लीव पिटिशन) दायर की है। यह याचिका लंबित है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता भारत गुलाबानी का कहना है कि राज्य सरकार चाहे तो सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी को विड्रा कर सकती है। विड्रा करने के बाद मीसाबंदियों को पेंशन भुगतान का आदेश जारी कर सकती है।