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अब आम जन से उठने लगी मध्य प्रदेश में तीसरे दल की मांग – अतुल मलिकराम (राजनीतिक रणनीतिकार)

अब आम जन से उठने लगी मध्य प्रदेश में तीसरे दल की मांग – अतुल मलिकराम (राजनीतिक रणनीतिकार)

तकरीबन आठ करोड़ की आबादी किसी एक दल के विचारों से मेल कैसे खा सकती है! और विचारों का यही विरोधाभास प्रदेश में तीसरे दल की मांग या दूसरे दल के रूप में तीसरे दल की तलाश कर रहा है।

देश का हृदय कहे जाने वाले मध्य प्रदेश के दिल में नई राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं जाग्रत हो रही हैं, जिसने तीसरे दल के रूप में एक नई मांग का स्वरुप ले लिया है। अपनी स्थापना से लेकर अब तक लगभग 68 वर्षों के राजनीतिक इतिहास में प्रदेश में दो ही प्रमुख पार्टियों का बोलबाला रहा है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी और यही दोनों पार्टियाँ सत्तारूढ़ होती रही हैं। यूँ तो शुरूआती दौर में देश के अन्य राज्यों की तरह एमपी में भी कांग्रेस का ही शासन लम्बे समय तक कायम रहा लेकिन पिछले दो दशक में बीजेपी ने मध्य प्रदेश की राजनीति में एक अलग मुकाम हासिल किया है और लगातार सत्ता पर कब्ज़ा जमाए रखने में कामयाब रही है। हालाँकि पिछले लगभग सात दशकों से इन दो दलों के सियासी चक्र में घूम रही मध्य प्रदेश की जनता अब किसी नए बदलाव और विचार का स्वागत करने के मूड में नजर आ रही है, और इस धारणा को बल देने में केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल (एस) महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

प्रदेश में एक अर्से से बीजेपी का शासनकाल निश्चित रूप से मतदाताओं का पार्टी पर पूर्ण विश्वास दर्शाता है, और यही वो कारण है जो लगातार राज्य में कांग्रेस की कमर तोड़ने का काम कर रहा है। हालांकि कांग्रेस पार्टी ने पिछले कुछ आम व विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर अपनी वापसी की उम्मीद जरूर जगाई है लेकिन मध्य प्रदेश की जनता ने फिलहाल कांग्रेस को एक साइड पटक रखा है, जिसकी बानगी हालिया लोकसभा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन में देखी जा सकती है। जब कांग्रेस के दिग्गज नेता भी अपना किला ढहने से नहीं बचा पाए, और पार्टी को सभी 29 सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा। 2023 के विधानसभा चुनावों में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला जब कांग्रेस को 230 में से महज 66 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। इस लिहाज से देखें तो एमपी की जनता ने कांग्रेस को फिलहाल जंग के मैदान से बाहर ही रखने का फैसला किया है। यानी मतदाताओं के पास मतदान का कोई विकल्प ही नहीं बचा है, बची है तो सिर्फ एक पार्टी भारतीय जनता पार्टी, लेकिन जाहिर सी बात है कि तकरीबन आठ करोड़ की आबादी किसी एक दल के विचारों से मेल कैसे खा सकती है! और विचारों का यही विरोधाभास प्रदेश में तीसरे दल की मांग या दूसरे दल के रूप में तीसरे दल की तलाश कर रहा है।

उदाहरण के लिए यूं तो मध्य प्रदेश 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 2018 के मुकाबले 8 प्रतिशत अधिक यानी 48.55 प्रतिशत वोट मिले लेकिन समझने वाली बात ये कि लगभग 51 फीसदी लोग ऐसे हैं जो बीजेपी की विचारधारा से सहानुभूति नहीं रखते हैं। ऐसे मतदाता या तो कांग्रेस खेमे के हैं या केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाली बहुजन समाज या समाजवादी पार्टी जैसी अन्य पार्टियों और निर्दलीयों के समर्थन में हैं। चूँकि मध्य प्रदेश में कांग्रेस मरणासन स्थिति से गुजर रही है और सुश्री मायावती या अखिलेश यादव की पार्टियां अपना जमीनी आधार खो चूँकि हैं ऐसे में उत्तर प्रदेश के दलित, कमीरों और कुर्मी पटेलों में अपना वर्चस्व स्थापित कर, प्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी अपना दल (एस), मध्य प्रदेश की पहली पसंद बनकर सामने आई है। अब सवाल ये है कि केंद्र और यूपी में बीजेपी की सहयोगी अपना दल (एस) आखिर मध्य प्रदेश में कैसे किसी करिश्में को अंजाम दे सकती है?

हमने कई मंचों और मौकों पर अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल को सत्तारूढ़ बीजेपी के फैसलों पर अपना पक्ष निडरता से रखते देखा है। भले वह शिक्षक भर्ती में आरक्षण नियमों के उन्लंघन का मामला हो, आउटसोर्सिंग का मुद्दा हो या जातिगत जनगणना की वकालत करना हो, अनुप्रिया ने साफ़ किया है कि उनके द्वारा दलित, शोषित, वंचित और युवा वर्ग की आवाज सत्ता के साथ भी और सत्ता के बाहर भी, दोनों ही परिस्थितियों में जारी रहने वाली है।

उनके इस तेवर ने यूपी से एमपी तक उनकी साख में चार चाँद जोड़े हैं और उन्हें पीडीए की प्रमुख अगुआ के रूप में प्रोजेक्ट किया है। वहीं मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों के पूर्व से ही उनकी पार्टी ने प्रदेश में 1 करोड़ से अधिक लोगों को जोड़ने के लिए सदस्यता अभियान चलाकर, एमपी में भी अपनी पैठ जमाने के संकेत दिए थे। जिसके बाद लगातार प्रदेश में विभिन्न गतिविधियों के आयोजन होते रहे हैं, जो इस ओर इशारा करता है कि पार्टी फिलहाल भले मुख्यरूप से सामने नहीं आ रही है लेकिन पर्दे के पीछे उसकी तैयारियां जोरों पर हैं। अभी हाल ही में यूपी और एमपी की कार्यकारणियों को भंग कर, अपना दल (एस) ने एक बार फिर नए सिरे और रणनीतिक ढंग से आगे बढ़ने पर जोर दिया है।

जाहिर है मध्य प्रदेश का एक बड़ा जन समूह पिछड़े, दलित वर्ग से आता है और अपना दल (एस) के लिए अपने राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनने के सफर को आगे बढ़ाने में यहाँ का मतदाता एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। वहीं पार्टी द्वारा सभी जाति-वर्गों पर समान रूप से ध्यान देने की रणनीति ने सवर्ण समेत अन्य वर्गों को भी पार्टी की ओर आकर्षित किया है। ठाकुर, ब्राह्मण से लेकर मुस्लिम और सिख तक, पार्टी के विशेष पदों पर देखे जा सकते हैं। ऐसे में यदि यह कहा जाए कि अपना दल (एस) ने बीजेपी-कांग्रेस से एक कदम आगे बढ़कर निष्पक्षता और समानता की राजनीति का रास्ता चुनकर, मध्य प्रदेश का मन पढ़ा है और जनता के समक्ष अपने नाम का एक मजबूत विकल्प पेश किया है तो गलत नहीं होगा।

Anil Mishra

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