छत्तीसगढराज्य

*छत्तीसगढ़ हरियाली का प्रतीक प्रदेश का पहला हरेली तिहार; गेड़ी, रहचुली झूला बिन अधूरा है ये त्योहार*

छत्तीसगढ़ उजाला

उजाला डेस्क 

छत्तीसगढ़ में आज हरेली का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है। समय बदलता है लेकिन परंपराएं जीवित रहती हैं। हरेली तिहार में हवाई झूलों के दौर में भी रहचुली झूला की परंपरा छत्तीसगढ़ के लोग याद रखते हैं जो उन्हें अपने ग्रामीण अंचल और पुरखों से जोड़ती है। हरेली के पावन अवसर पर रहचुली झूले पर चढ़ते हैं और याद करते हैं कि मनोरंजन के माध्यम बदले हैं मनोरंजन नहीं बदला है। इस अवसर पर लोग रहचुली का आनंद लेते है। गेड़ी पर चढ़कर चलते हैं। सीसी रोड से पहले के दिनों में जब ग्रामीण सड़कें मानसून की उफान में कीचड़ में तब्दील हो जाती थीं तब गेड़ी सबसे सुरक्षित जरिया होता था ताकि कीचड़ से बच सकें। हरेली के मौके पर बारंबार गेड़ी चढ़कर सावन मास के उत्साह को जाहिर किया जाता है।

क्या होता है हरेली तिहार
हरेली तिहार पर कृषि यंत्रों की पूजा की जाती है। पशुधन की पूजा की जाती है। प्रदेश के किसान इसे धूमधाम से मनाते हैं। हरेली के मौके पर बैल भी सजते हैं और बैलगाड़ी भी सजती है। अपने पशुधन के सम्मान के लिए, उनकी पूजा के लिए यह बड़ा पर्व होता है। खेती किसानी की तैयारियों के बीच धरती माता के अभिवादन का यह त्योहार है।

गेड़ी दौड़ जैसी होती हैं कई प्रतिस्पर्धाएं 
इस त्यौहार से ही प्रदेश में खेती-किसानी की शुरूआत होती है। इस दिन किसान खेती-किसानी में उपयोग करने वाले कृषि यंत्रों की पूजा करते हैं और घरों में माटी पूजन होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में गेड़ी के बिना हरेली तिहार अधूरा है।

हरेली के मौके पर ग्रामीण खेल भी यादगार होते हैं। गेड़ी दौड़ जैसी कई प्रतिस्पर्धाएं होती हैं। परंपरागत छत्तीसगढ़ी खेलों का जादू इस दिन उफान पर होता है। मुख्यमंत्री निवास में भी इसकी पूरी तैयारी की गई है। पिट्ठूल, भौरा जैसे खेल विशेष आकर्षण का केंद्र रहेंगे। साथ ही परंपरागत छत्तीसगढ़ी पकवान चीला, खुरमी, ठेठरी, अइरसा आदि का भी  आनंद लेंगे।  इस मौके पर सबसे खास लोक संस्कृति से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन है। राऊत नाचा, करमा नृत्य आदि छत्तीसगढ़ के परंपरागत नृत्यों का आयोजन होगा। इस अवसर पर विविध लोकगीतों की प्रस्तुति भी होगी।

प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का त्योहार है हरेली
हरेली त्योहार प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का त्योहार है। सावन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरेली पर्व मनाया जाता है। हरेली का आशय हरियाली ही है। वर्षा ऋतु में धरती हरा चादर ओड़ लेती है। वातावरण चारों ओर हरा-भरा नजर आने लगता है। हरेली पर्व आते तक खरीफ फसल आदि की खेती-किसानी का कार्य लगभग हो जाता है। छत्तीसगढ़ में हरेली हर जगह अपनी विशिष्ट सुंदरता और विशिष्ट रूपों तथा तरीकों से मनाई जाती है। प्रदेश का हर अंचल अपनी सांस्कृतिक सुंदरता के साथ अपने को व्यक्त करता है।

ये होती हैं रश्में 
छत्तीसगढ़ के गांव में अक्सर हरेली तिहार के पहले ही गेड़ी घरों में बनना शुरू हो जाता है। त्यौहार के दिन सुबह से ही तालाब के पनघट में किसान परिवार, बड़े बजुर्ग बच्चे सभी अपने गाय, बैल, बछड़े को नहलाते हैं। साथ ही खेती-किसानी, औजार, हल (नांगर), कुदाली, फावड़ा, गैंती को धोते हैं। इसके अलावा घर के आंगन में मुरूम बिछाकर पूजा के लिए सजाते हैं। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों को धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ के चीला का भोग लगाया जाता है। अपने-अपने घरों में अराध्य देवी-देवताओं के साथ पूजा करते हैं। गांवों के ठाकुरदेव की पूजा की जाती है।

रच-रच की ध्वनि ही गेड़ी का आनंद
हरेली तिहार के साथ गेड़ी चढ़ने की परंपरा अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग सभी घरों गेड़ी का बनाया जाता है। परिवार के बच्चे और युवा गेड़ी का जमकर आनंद लेते है। गेड़ी बांस से बनाई जाती है। दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाई जाती है। एक और बांस के टुकड़ों को बीच से फाड़कर उन्हें दो भागों में बांटा जाता है। उसे नारियल रस्सी से बांध़कर दो पउआ बनाया जाता है। यह पउआ असल में पैर दान होता है  जिसे लंबाई में पहले कांटे गए दो बांसों में लगाई गई कील के ऊपर बांध दिया जाता है। गेड़ी पर चलते समय रच-रच की ध्वनि निकलती हैं, जो वातावरण को औैर आनंददायक बना देती है। इसके साथ ही शाम को युवा वर्ग, बच्चे गांव के गली में नारियल फेंक और गांव के मैदान में कबड्डी आदि कई तरह के खेल खेलते हैं। बहु-बेटियां नए वस्त्र धारण कर सावन झूला, बिल्लस, खो-खो, फुगड़ी आदि खेल का आनंद लेती हैं।

करते हैं गेड़ी की पूजा 
हरेली के दिन बच्चे बांस से बनी गेड़ी का आनंद लेते हैं। पहले के दशक में गांव में बारिश के समय कीचड़ आदि हो जाता था उस समय गेड़ी से गली का भ्रमण करने का अपना अलग ही आनंद होता है। गांव-गांव में गली कांक्रीटीकरण से अब कीचड़ की समस्या काफी हद तक दूर हो गई है। हरेली के दिन गृहणियां अपने चूल्हे-चौके में कई प्रकार के छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाती है। किसान अपने खेती-किसानी के उपयोग में आने वाले औजार नांगर, कोपर, दतारी, टंगिया, बसुला, कुदारी, सब्बल, गैती आदि की पूजा कर छत्तीसगढ़ी व्यंजन गुलगुल भजिया व गुड़हा चीला का भोग लगाते हैं। इसके अलावा गेड़ी की पूजा भी की जाती है।

इन व्यंजनों का चखते हैं स्वाद
हरेली के दिन गृहणियां अपने चूल्हे-चौके में कई प्रकार के छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाती हैं। इन व्यंजनों में ठेठरी, खुरमी, चीला, फरा,मुठिया, धुसका, चांउर रोटी अंगाकर, बफौरी सादा, चउँसेला, चांउर रोटी पातर, बफौरी मिक्स दाल आदि पकवान शामिल होते हैं। बच्चे, जवान, बूढ़े, महिलायें सभी इन पकवानों का स्वाद चखते हैं। हरेली त्योहार का आनंद लेते हैं।

हरेली के दिन एक पेड़ मां के नाम लगाने का आह्वान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक पेड़ मां के नाम लगाने का आह्वान देश की जनता से किया है। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री साय ने हरेली के दिन एक पेड़ मां के नाम लगाने का आह्वान किया है ताकि अपनी जननी और जन्मभूमि दोनों के प्रति प्रदेश के सभी नागरिक अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर सकें।

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