
●छत्तीसगढ़ उजाला●
प्रदेश भाजपा नेतृत्व का न जाने ऐसा क्यों हाल हैं समझ से परे हैं ,जहां बात हो रही थी डबल ट्रिपल इंजन सरकार की वो भी जनता ने बनवा दी पर बुलेट की गति तो क्या कच्छप की गति में हम सभी लग रहे हैं ; हाल में चल रहे स्थापना दिवस पखवाड़ा में एक पूर्व कद्दावर मंत्री महोदय ने अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए कहा था कि ,यदि संगठन और नेतृत्व मिलकर काम करेंगे तो ये सरकार गुजरात की तरह 25 वर्षों तक बनी रहेगी ,ये कथन सत्य होना चाहिए परंतु तभी संभव होगा जब नेतृत्व इच्छाशक्ति संपन्न होगा; कुछ पूर्व विधायकों के दंभ भरने से आज राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री जी भी उन्हें विस्तार के लिए मना नहीं पा रहे हैं जिसका सीधा असर प्रदेश के समुचित विकास और कानून व्यवस्था पर पड़ रहा हैं कई विभागों में तो हाल के काम, जो व्यवस्था अनुसार हो जाने चाहिए वो आज भी नए मंत्री जी की बाट जो रहे हैं , ऐसा लगता हैं मानो माननीय मुख्यमंत्री जी से भी बड़ा कद प्रदेश के कुछ नौकरशाहों का हैं जो उनके द्वारा स्वीकृत, अनुमोदित करने के बाद भी मंत्रालय में वो फाइलें धूल खा रही हैं ,क्या माननीय मुख्यमंत्री जी को यह अवज्ञा नहीं लगती ?
इसी तरह अभी गौरवशाली बस्तर पंडूम का आयोजन करके , नक्सलवाद से मुक्त तस्वीर दिखाई गई देख कर अच्छा लगा कि माननीय गृह मंत्री जी के लक्ष्य और उनकी दृण इच्छाशक्ति का परिपालन हो रहा हैं पर ये स्मरण रखते हुए कि उन्हें आगे की परियोजनाओं में स्थानीय गांव वालों को सहभागिता देना हैं न कि केवल देश के औद्योगिक घरानों के द्वारा संसाधनों का दोहन करना हैं।ऐसे बहुत से सवाल है जिसको मनन करने की आवश्यकता हैं.कहीं हम महतारी वंदन की दर बढ़ाकर इस मुगालते में तो नहीं की जनता बस यही चाहती हैं और हम कहीं श्रीलंका की तर्ज पर आगे बढ़ते चले जाएं। अगर संगठन में दायित्व सवा साल बाद दिए गए तो मंत्री परिषद को पूरा होने में समय क्यों लग रहा हैं.कहीं न कहीं सत्ता में आने के बाद भी भाजपा फैसले लेने में देर कर रही हैं.मंत्रिमण्डल में दो मंत्रियों का फैसला नहीं ले पाना भी यही बात चरितार्थ करता हैं.कई मर्तबा हल्ला होता है कि इस दिन मंत्रिमण्डल का विस्तार सुनिश्चित हैं.पर इस बड़े मामले पर संगठन और सत्ता की किरकिरी जनता के सामने हों रही हैं. ऐसी क्या मजबूरिया हैं और यदि मजबूत नहीं तो विस्तार के लिए वक्तव्य नहीं देने चाहिए कि कभी भी घोषणा हो सकती हैं.
इस तरह से बृहद अकल्पनीय बहुमत प्राप्त सरकार उपहास की पात्र बनती हैं। निश्चित ही साय सरकार ने कांटो का ताज पहना था ,खाली राजकोष के बाद भी उन्होंने बहुत सी योजनाओं को सुचारू क्रियान्वयन किया. जिसमें किसान बंधुओं को बोनस ,महतारी वंदन की नियमित किस्त पर इन सबके साथ ही बहुत सारी भर्तियां अपनी बांट जो रही हैं.चाहे शिक्षा हो चाहे स्वास्थ्य सभी आवश्यक हैं । इन सबके लिए विष्णु का सुशासन ही चाहिए परन्तु सुदर्शन चक्रधारी विष्णु स्वरूप में तभी ये सुशासन धरातल पर दिखेगा अन्यथा जनता के मनोभावों को बदलते देर नहीं लगती हैं.अब सत्ता के साथ संगठन को भी चिन्तन करने की आवश्यकता है.ऐसा न हो कि अगले चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ जाए.