●सियासत●
(अनिल मिश्रा)
रायपुर छत्तीसगढ़ उजाला● छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांटे के मुकाबले का परिणाम तो जनता ने सुरक्षित रख दिया है। जनता के विवेक पर पूरा भरोसा है कि उसने अपने हक में अपनी सरकार चुनी है और तय तारीख तीन दिसंबर को जनता का फैसला सुना दिया जायेगा कि उसने किस दल के पक्ष में जनादेश दिया है। इस पर भी तब सियासी पंडित मंथन कर लेंगे कि जनता ने किस आधार पर चयन किया। अभी तो सब के सब इस गुणा भाग में व्यस्त हैं कि ईव्हीएम में किसकी किस्मत में क्या अंकित हुआ है। हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है कि ईव्हीएम के भीतर झांकने की फिजूल कोशिश करें। दावागीरों की आदत होती है कि बंद लिफाफों के मजमून भांप लेने का स्वांग करते हैं। कोई बूथ के बाहर लगे पंडालों की भीड़ देखकर परिणाम सुनाने लग जाते हैं। ऐसे अग्रिम परिणाम सही साबित नहीं होते। कोई मतदान के प्रतिशत के आधार पर ऐसे गणना करने लगता है, जैसे पंडितजी ग्रह नक्षत्र की स्थिति जानने पोथी पंचांग बांच रहे हों।
राजनीतिक दलों का अपना एक खास थर्मामीटर होता है, जिससे वे हर बूथ का टेम्परेचर जांच कर दावा ठोंक देते हैं। सत्ता में बैठे लोग तो खुशफहमी में ऐसे दावे करने से बाज नहीं आते की लगभग पूरी सीटें उनकी ही हैं। प्रतिपक्ष सहित विपक्ष को वे दस पंद्रह सीट से ज्यादा के लायक नहीं समझते। इस बार प्रचार के दौर में कांग्रेसी उत्साह हिलोरें मार रहा था कि अब की बार, अस्सी पार। फिर घोषणाबाजी के सुधार की तरह गिनती में भी सुधार हो गया। 75 के ऊपर से नीचे उतरने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तैयार नहीं हैं जबकि उनके उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव इस अंक ज्योतिष से बच रहे हैं। 15 साल राज करने के बाद पिछले चुनाव में भाजपा भी 65 के पार का पहाड़ा पढ़ रही थी। चुनावी नदिया के पार पहुंचना तो दूर 15 कदम में ही दम फूल गया और उसका फूल कांग्रेस के पंजे ने मसल दिया। लिहाजा, इस बार भारी मेहनत के बावजूद भाजपा बड़े बोल से तौबा कर रही है। हर कोई स्पष्ट बहुमत की भाजपा सरकार बनने का विश्वास व्यक्त कर रहा है। भाजपा की ओर से संख्या की बात पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह अवश्य कर रहे हैं तो उनका आकलन भी जरूर किसी पुख्ता आधार पर होगा। वे बेहद अनुभवी राजनेता हैं। उनके अनुमान पर जनता की मुहर लगी है या नहीं, यह अभी कोई विषय नहीं है।
ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल के चक्कर में किसी को उलझने की कोई जरूरत नहीं होती। जनता जानती है कि उसे क्या करना है और उसे यह बखूबी मालूम होता है कि उसने बहुमत के साथ क्या फैसला किया है तो फिर जनता के फैसले के सम्मान की खातिर उसे तय तारीख तक पर्दे में ही रहना चाहिए। ताकझांक ठीक है। इसे ऐसे समझें कि ब्याह के बाद ही दुल्हन की मुंह दिखाई की रस्म का रिवाज है। ये पोल, वो पोल, ढोल की पोल, ये सब सत्ता की दुल्हनिया को पहले ही देख लेने की फितरत के सिवा कुछ नहीं है। इससे हासिल कुछ नहीं होता। जनता अपना फैसला कई सारे पहलुओं को परखते हुए करती है। कई बार तात्कालिक कारण असर डाल देते हैं तो कई बार लुभावने वायदे फायदे की शक्ल में लुभा लेते हैं। जनता वक्त जरूरत के मुताबिक फैसला लेने में सक्षम है। कई बार लोकतंत्र का राजनीतिक मायाजाल में फंसना भी लोकतंत्र के लिए हानिकारक हो सकता है। इसलिए जनता चुनावी वादों के लालच से परे होकर सुदीर्घ भविष्य के लिए सरकार चुने तो राज्य की प्रगति और जनता की खुशहाली साथ साथ होती है।
अब बात की जाए, चुनाव में हुई बगावत की। क्योंकि यह बगावत की शमशीर तथा भीतरघातियों की छुरी कम खतरनाक नहीं होती। छत्तीसगढ़ में वैसे तो बगावत और भीतरघात कांग्रेस- भाजपा दोनों ही जगह चर्चित रही है लेकिन कांग्रेस में यह मर्ज लाइलाज सा नजर आया। जब इलाज होना चाहिए था, तब नहीं हुआ। अब मतदान के बाद हो रहा है। कांग्रेस अपने बागियों भीतरघातियों को दनादन नोटिस जारी कर रही है। कई निपट गए, कई निपटने वाले हैं। जो बड़े हाथ की छत्रछाया में सुरक्षित बच भी गए तो बाद में भारी असंतोष का कारण बनेंगे। कहते हैं कि डूबते को तिनके का सहारा! मगर राजनीति में डूबते हुए को सहारा देने वाले तिनके को अपने अंजाम की भी चिंता कर लेना चाहिए।
बात परिणाम पूर्व उन तथ्यों पर चल रही है जो परिणाम को यथाशक्ति प्रभावित कर चुके हैं, जिसके कारण ही संगठन अनुशासनात्मक कार्यवाही कर रहा है तो यह भी देखा जा सकता है कि कांग्रेस इस नकारात्मक असर से बच नहीं सकी है, इसलिए नतीजे आने के पहले ही समीक्षा हो रही है और कार्रवाई भी हो रही है। जिन्होंने बगावत की, वे तो सबके सामने हैं, कांग्रेस अपने भीतरघातियों को नोटिस थमाकर इन्हें भी सार्वजनिक कर रही है। लोग पूछ रहे हैं कि क्या इतनी ज्यादा बगावत व भीतरघात हो गई कि कांग्रेस नतीजे आने के पहले ही पार्टीद्रोहियों से छुटकारा पा रही है! फिर वही बात कि आने वाले परिणाम जो भी हों लेकिन 5 साल की सरकार में कांग्रेस आंतरिक तौर पर वहीं पहुंच गई जहां वह बीस साल पहले थी।