छत्तीसगढ

जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी,नक्सलियों व बडे अपराधियो के लिये अलग जेल बनाने की है जरूरत,कई जेलों में प्रभारी सम्हाल रहे जिम्मेदारी:

प्रदेश की जेलें कैदियों से भरी हुई है ठसाठस, 14 हजार की क्षमता में 18 हजार से ज्यादा बंदी को जेलों में रखा गया है।

●रायपुर छत्तीसगढ़ उजाला●

प्रदेश के सभी जिलों में कैदियों और बंदियों के लिए भी सरकार को सोचने की आवश्यकता है।जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों को रखे जाने की स्थिति को देखते हुए बहुत कुछ किये जाने चाहिए रायपुर,दुर्ग, बिलासपुर,अम्बिकापुर,जगदलपुर की जेलों में बंदियों की संख्या बहुत ज्यादा है।जेल के अंदर रहने वाले कैदियों के बारे में भी सोचने की आवश्यकता है।जेलों को हमारे यहाँ सुधार गृह के रूप में जाना जाता है।पर क्या जेल प्रशासन कैदियों को सुधारने का काम बखूबी कर पा रहा है इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है।जेल में रहने के दौरान कैदियों को काउंसलिंग करवाने की जरूरत है।जो कि बहुत जरूरी है।जेलों में वसूली करने की बाते हमेेेशा सामने आती है।अधिकांश जेलों में ओवर क्राउडिंग की स्थिति को देखते हुए नया जेल बनाने का प्रस्ताव बहुत पहले ही बनना था। इस समय छत्तीसगढ़ के 33 जेलों की क्षमता 14,143 कैदियों की है। लेकिन, इनमें 18,442 सजायाफ्ता कैदियों और विचाराधीन बंदियों को रखा गया है।सेंट्रल जेल रायपुर की क्षमता 1586 भी कैदियों की है, लेकिन यहां 3,076 कैदी और बंदियों को रखा गया है।

प्रभारी जेल अधीक्षक सम्हाल रहे है जेलों की जिम्मेदारी●

रायपुर जेल में आज तक नियमित रूप से जेल अधीक्षक की नियुक्ति नही की गई है।जेल डीआईजी तिग्गा को जेल सुपरिटेंडेंट का चार्ज दिया गया है।जेल अधीक्षक रहते हुए तिग्गा के काफी किस्से भी है।दुर्ग और बिलासपुर में अधीक्षक रहते हुए कई आरोप इनके ऊपर लगे थे।डीआईजी बनकर रायपुर जेल में आते ही नामी गिरामी कैदियों की विशेष सेवा इनके द्वारा की गई थी।इस बात की चर्चा काफी हुई थी।चर्चा तो यह भी थी कि ईडी के मामले बंद अपराधियों को विशेष सुविधा इनके द्वारा की जाती थी।रायपुर सहित प्रदेश की कई जेलों में प्रभारी बैठे हुए है।प्रदेश के जेलमंत्री को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।

जमानतदार नही मिलने के कारण वर्षों से जेल में रहने को मजबूर कैदी…●

राज्य सरकार को प्रदेश के हर जिले में जेल बनाने की आवश्यकता है।आज भी कई जगहों में जेल ही नही बनी है।जेलकै में दियों की संख्या को कम करने की दिशा में काम करने की भी जरूरत है।जेल में बंद कैदियों में ऐसे कैदियों की संख्या बहुत ज्यादा होगी जिनके मामले सामान्य है पर उनके पास जमानत के लिए पेपर नही है।या फिर उनके पास कोई जमानतदार नही है।ऐसी स्थिति में जेल में बड़ी संख्या बनी हुई है।जेलों में कैदियों को अच्छे खाने भी नसीब में नही है।इस पर सरकार को एक जांच कमेटी बनाकर जांच करवानी चाहिए।जेल के खाने व कैदियों को दी जाने वाली सुविधाओं की नियमित जांच की जानी चाहिए।इन कैदियों के मामलों की जांच करके सरकार अपनी गारन्टी में इनको जेल से बाहर कर सकती है।इससे जेल में बंद कैदियों की संख्या को भी कम किया जा सकता है।

●खूंखार नक्सलियों व बडे अपराधियों के लिए स्पेशल जेल बनाने की आवश्यकता●

इसी तरह दुर्ग सेंट्रल जेल में 2006 की क्षमता के मुकाबले 2031, बिलासपुर सेंट्रल जेल में 2290 की क्षमता के बाद भी 2870, अंबिकापुर के 1320 क्षमता वाले जेल में 2013 कैदियों को रखा गया है। वहीं जगदलपुर के 1451 की क्षमता वाले जेल में 1462 कैदियों को रखा गया है। अन्य जेलों में भी क्षमता से अधिक कैदी रखे गए हैं।आज इनकी संख्या बढ़ते जा रही है।नक्सलियों सहित बड़े मामले में बंद कैदियों के लिए सरकार को स्पेशल जेल बनाने की आवश्यकता है।हाई सिक्योरिटी वाली जेल के अंदर इनको रखने की आवश्यकता है।सुरक्षा की दृष्टि से भी यह करना बहुत जरूरी है।इन कैदियों को आम कैदियों के साथ रखने से सरकार ने आज तक गलतियां ही की है।इनके नजदीक आने से आम कैदी भी इनसे प्रभावित हो सकता है।सरकार को इस मामले में गहन रूप से विचार करना चाहिए।शहर के अंदर से जेलों को बाहर करने की भी आवश्यकता है।इन मामलों पर सरकार व जेल प्रशासन को त्वरित कार्यवाही करने की जरूरत है।

Anil Mishra

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