आध्यात्मिक नगरी मिर्जापुर शिव और शक्ति का केंद्र है. विंध्य पर्वत पर मां विंध्यवासिनी के रूप में साक्षात शक्ति विराजमान हैं . वहीं, बूढ़ेनाथ महादेव के रूप में भगवान शिव भक्तों का कल्याण कर रहे हैं. सावन माह में महादेव के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. बूढ़ेनाथ मंदिर का जुड़ाव काशी विश्वनाथ मंदिर से है. भगवान शिव काशी में भक्तों का कल्याण करते हैं और मिर्जापुर में आकर आराम करते हैं. सावन माह में हजारों की संख्या में भक्त यहां दर्शन पूजन करते हैं.
मिर्जापुर के टेढ़ीनीम के पास प्राचीन बूढ़ेनाथ मंदिर स्थित है. चेतसिंह विलास में मंदिर का जिक्र और काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ाव काउल्लेख किया गया है. मंदिर के पुजारी महंत योगानंद गिरि ने बताया कि यह मंदिर अत्यंत प्राचीन मंदिर है. यह तब से है, जब मिर्जापुर गिरजापुर हुआ करता था. मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ दिन में काशी में निवास करते हैं. रात्रि में आराम करने के लिए मिर्जापुर आते हैं. भगवान शिव ने मिर्जापुर को शक्ति के रूप में स्थापित करके अपना घर बनाया. वहीं, काशी को दुआर बनाकर भक्तों का कल्याण करते हैं.
बदल गए दोनों मंदिरों के नाम
महंत योगानंद गिरी ने बताया कि काशी विश्वनाथ मंदिर को विश्वेश्वर और बूढ़ेनाथ को वृद्धेश्वरनाथ के नाम से जाना जाता था. हालांकि बाद में दोनों जगहों के नाम बदल गए. उन्होंने बताया कि भक्त भगवान शिव के दरबार में करुणा भाव से आते हैं तो उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है. प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से भक्त दर्शन के लिए धाम में पहुंचते हैं. बाबा बूढ़ेनाथ के दर्शन के लिए भक्त गंगा जल, धतूरा, फूल व दूध इत्यादि लेकर आते हैं.
दूर-दूर से आते हैं भक्त
भक्त खुश्बू पांडेय ने बताया कि यह काफी प्राचीन मंदिर है. गंगा घाट पर स्नान करने के बाद भक्त दर्शन पूजन करते हैं. दर्शन मात्र से ही भक्तों को मनोवांछित फल मिलता है. शिवरात्रि के साथ ही सोमवार को भी काफी भीड़ उमड़ती है. हम 7 वर्षों से दर्शन के लिए आ रहे हैं. भक्त नम्रता सिंह ने बताया कि यह काफी पुराना और ऐतिहासिक मंदिर है. कई वर्षों से दर्शन के लिए आ रहे हैं. कमलेश कुमार ने बताया कि भगवान बूढ़ेनाथ का काफी महत्व है. यहीं वजह है कि दूर-दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं.
नेपाल व कश्मीर के राजा ने दान दिया था घंटा
बाबा बूढ़ेनाथ के मंदिर में अष्टधातु के 2 बड़े-बड़े घंटे मौजूद हैं, जिसे कश्मीर और नेपाल के राजाओं ने दान दिया था. मंदिर को स्वर्ण व रजत से सुशोभित किया गया है. वृद्धेश्वर महादेव मंदिर का अलग-अलग रूपों में श्रृंगार किया जाता है. पूरे मंदिर पर अद्भुत नक्कासी की गई है.