भोपाल। मप्र में भाजपा कोटे की खाली पड़ी एक राज्यसभा सीट के लिए कई नेता दावेदारी कर रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुना से लोकसभा सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई मप्र की राज्यसभा सीट पर जल्द ही चुनाव की घोषणा हो जाएगी। विधानसभा में सदस्यों की संख्या के हिसाब ये सीट भाजपा के ही खाते में जाने वाली है। पिछले दो राज्यसभा चुनाव में जिस तरह भाजपा ने कैंडिडेट्स के चेहरों को लेकर चौंकाया है, उसी तरह इस एक सीट पर भी फैसला लिया जा सकता है।
जातीय समीकरणों को साधने इस बार सामान्य को मौका दे सकती है भाजपा
भाजपा सूत्रों का कहना है कि इस एक सीट के लिए जातीय समीकरण ध्यान में रखकर ही उम्मीदवार तय किया जाएगा। इसी साल फरवरी में हुए राज्यसभा चुनाव में भाजपा ने दलित, ओबीसी और महिला कार्ड खेला था। इस बार ठाकुर या ब्राह्मण कोटे से यह पद भरा जा सकता है यानी सामान्य वर्ग के चेहरे को राज्यसभा भेजा जा सकता है। इसके लिए बीजेपी प्रदेश संगठन की तरफ से दो नाम तय किए गए हैं। इनमें से एक कांतदेव सिंह और दूसरा नाम मुकेश चतुर्वेदी का है। दोनों प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के करीबी माने जाते हैं। इसके अलावा केपी यादव का भी नाम चर्चा में है क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चुनाव के दौरान यादव को बड़ी जिम्मेदारी देने के संकेत दिए थे।
गौरतलब है कि मप्र के 5 राज्यसभा सांसदों का कार्यकाल 2 अप्रैल को समाप्त हुआ था। इनमें भाजपा के चार- धर्मेंद्र प्रधान, डॉ.एल मुरुगन, अजय प्रताप सिंह और कैलाश सोनी थे जबकि कांग्रेस से एक- राजमणि पटेल शामिल थे। भाजपा ने चार सीटों में से तीन पर जातिगत फॉर्मूला लागू किया था। ओबीसी से बंसीलाल गुर्जर, दलित समाज से उमेश नाथ महाराज और महिला कोटे से माया नारोलिया को उम्मीदवार बनाया और राज्यसभा में भेजा जबकि डॉ. मुरुगन को केंद्रीय नेतृत्व ने फिर से मप्र के कोटे से राज्यसभा में भेजा था।
ये हैं दावेदार
भाजपा सूत्रों का कहना है कि जातीय समीकरण के हिसाब से अब ठाकुर या ब्राह्मण को मौका दिया जा सकता है। इस बार कई दावेदार हैं। इनमें प्रदेश उपाध्यक्ष कांतदेव सिंह का भी नाम है। कांतदेव सिंह को विंध्य क्षेत्र में जमीनी पकड़ होने का फायदा मिल सकता है। यदि भाजपा किसी क्षत्रिय को राज्यसभा भेजती है तो कांतदेव प्रबल दावेदार हैं। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के नजदीकी कहे जाते हैं। उज्जैन संभाग के प्रभारी का दायित्व भी संभाल चुके हैं। नगरीय निकाय चुनाव में उन्हें सिंगरौली का प्रभारी बनाया गया था। वहीं प्रदेश उपाध्यक्ष मुकेश चतुर्वेदी का भी नाम चर्चा में मुकेश चतुर्वेदी की भिंड इलाके में पकड़ मजबूत है। वे ब्राह्मण कोटे से प्रबल दावेदार हैं। चतुर्वेदी 2013 में अपने भाई राकेश चतुर्वेदी के साथ कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए थे। उनके पिता चौधरी दिलीप सिंह चतुर्वेदी 1980 में भाजपा से विधायक रहे थे। मुकेश 1999-2004 तक भिंड नगर पालिका के अध्यक्ष और 2013 में मेहगांव विधानसभा सीट से विधायक रहे हैं। 2020 में मेहगांव सीट पर हुए उपचुनाव में उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार ओपीएस भदौरिया को जिताने में अहम भूमिका निभाई थी। तीसरा नाम पूर्व सांसद केपी यादव का है। केपी यादव पहले कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ थे। उन्होंने 2018 में मुंगावली सीट से विधानसभा चुनाव का टिकट मांगा था। टिकट नहीं मिलने पर केपी यादव ने कांग्रेस छोडक़र बीजेपी जॉइन की। बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें गुना सीट से टिकट दिया और उन्होंने कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया को मात दी। 2020 में सिंधिया खुद बीजेपी में आ गए। बीजेपी ने इस बार यादव का टिकट काटकर गुना से सिंधिया को मैदान में उतारा। लोकसभा चुनाव के दौरान अशोकनगर की एक सभा में पहुंचे केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा था कि केपी यादव को बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी। यादव पिछले कुछ दिन से भोपाल और दिल्ली में सक्रिय देखे जा रहे हैं। इन तीनों नेताओं के अलावा राज्यसभा उम्मीदवार के तौर पर कोम्पेल माधवी लता का नाम भी चर्चा में है। वे केंद्रीय नेतृत्व की पसंद हैं। कोम्पेल माधवी लता उस समय सुर्खियों में आईं, जब उन्हें हैदराबाद सीट से एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ बीजेपी ने टिकट दिया। हालांकि, वे तीन लाख से ज्यादा वोट से हार गईं। इस चुनाव में भाजपा ने दक्षिण भारत में माधवी लता को एक नए चेहरे को रूप में प्रमोट किया था।