राजनीति

मुसलमानों पर मनमोहन की सफाई, क्या बीजेपी का दावा कर दिया मजबूत, इनसाइड स्टोरी

नई दिल्ली: आम चुनाव का सियासी शोरगुल आज आखिरी फेज की वोटिंग के बाद थम जाएगा। अबकी बार किसकी सरकार, यह 4 जून को पता चलेगा। जनता ने अगले पांच सालों के लिए किसपर भरोसा किया है, इसका खुलासा उसी दिन होगा। लेकिन इससे पहले, पूरे चुनाव के दौरान एनबीटी ने आपके लिए देश का मिजाज समझाने के लिए पूरी शिद्दत से अपनी भूमिका निभाई। हमारे रिपोर्टर देश के अलग-अलग हिस्से में पूरे चुनाव में घूमते रहे और ग्राउंड जीरो से सियासी माहौल के बारे में आप को बताते रहे। नतीजों से पहले पेश है इस पूरे चुनावी समर की अंतिम ग्राउंड रिपोर्ट, जिसमें देश के तमाम हिस्सों का सार छिपा हुआ है। हमारे रिपोर्टरों ने देश के अलग-अलग राज्यों-शहरों में जो देखा, जो समझा, पेश है उसकी रिपोर्ट

​असम बेअसर, केरल ने बनाई दूरी, हिमाचल में अग्निवीर मुद्दा

केरल में ज्यादातर लोगों ने देश के खराब होते माहौल की बात की और इस वजह से BJP से दूरी बनाने के संकेत दिए। तिरुवनंतपुरम में लोगों ने BJP कैंडिडेट राजीव चंद्रशेखर की तारीफ की लेकिन ज्यादातर ने यह भी कहा कि अगर वह निर्दलीय लड़ते तो ज्यादा वोट मिलते। 2021 में केरल विधानसभा चुनाव के वक्त जहां लोग राज्य की लेफ्ट सरकार के कामों की तारीफ कर रहे थे और पहली बार लेफ्ट सरकार को लगातार दो बार सत्ता मिली। लोकसभा चुनाव में माहौल बदल गया। लेफ्ट पार्टी के काडर के अलावा ज्यादातर लोगों ने लेफ्ट सरकार की आलोचना की और कहा कि उनके काम से खुश नहीं है। इस नाराजगी का असर दिख सकता है। अयोध्या में राम मंदिर का जिक्र करने वाले लोग मिले। हालांकि, यह डर भी दिखा कि कहीं केरल का सांप्रदायिक सौहार्द खराब न हो।

असम में जिस तरह CAA विरोधी आंदोलन हुआ था उससे यह संभावना जताई जा रही थी कि इसका असर चुनाव में दिख सकता है लेकिन असम में इसका असर नहीं दिखाई दिया। ज्यादातर लोगों ने स्थानीय मुद्दों की बात की। राज्य सरकार से नाराजगी नहीं दिखी और लोग इंफ्रास्ट्रक्चर के काम से खुश दिखे। युवाओं ने यहां पानी की दिक्कत से लेकर प्रदूषण बढ़ने तक का जिक्र किया। उम्मीदवारों के बारे में लोग बात तो कर रहे थे लेकिन ज्यादातर का मानना था कि वे प्रधानमंत्री चुनने के लिए वोट देंगे। कुछ लोगों ने निर्माण के कामों में करप्शन की शिकायत की, लेकिन बदलाव की बात करने वाले लोग कम ही मिले। हिमाचल प्रदेश में हमीरपुर से कांगड़ा और मंडी तक सब जगह मोदी की ही बात सुनाई दी। बेरोजगार और सेना की तैयारी करते युवा मिले। ज्यादातर युवाओं ने खुलकर कहा कि वे फिर से मोदी को पीएम देखना चाहते हैं। उनमें ऐसे लोग भी थे जो बेरोजगार हैं और महंगाई भी झेल रहे हैं। हालांकि सेना की तैयारी कर रहे युवाओं में सेना में भर्ती की स्कीम अग्निपथ को लेकर नाराजगी दिखी। उन्होंने चुनाव में किसका साथ देंगे इस पर चर्चा करने के बजाय कहा कि किस तरह अग्निवीर स्कीम युवाओं के साथ भेदभाव करती है। महिलाएं ज्यादातर मोदी के पक्ष में बात करती मिलीं।

महिलाओं का है समर्थन
केरल में देश के खराब माहौल की बात। लोगों में सौहार्द बिगड़ने का डर
असम में CAA का असर नहीं। पानी-प्रदूषण की लोगों ने शिकायत की
हिमाचल प्रदेश में अग्निवीर स्कीम को लेकर युवाओं में नाराजगी
हिमाचल में महिलाएं मोदी के समर्थन में बात करती दिखीं

3800 Km के सफर में बदलाव की भी बात
जम्मू-कश्मीर से ट्रेन में चढ़ी और 3800 किलोमीटर की दूरी तय करने में 72 घंटे लगे। इस दौरान ट्रेन जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, यूपी, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु यानी कुल 12 राज्यों से गुजरी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी मैंने इस रूट पर इसी ट्रेन में सफर किया था। उस वक्त लोग अपनी समस्याएं बता रहे थे, लेकिन उसके बाद खुलकर नरेंद्र मोदी का समर्थन कर रहे थे। इस बार बदलाव की बात करने वाले लोग भी काफी मिले। बेरोजगारी सबसे अहम मुद्दे के तौर पर सामने आया। हालांकि ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी, जिन्होंने बेरोजगारी से लेकर महंगाई तक सभी दिक्कतें बताईं लेकिन उम्मीद भी मोदी से ही की। जम्मू-कश्मीर के युवा 2019 की तरह ही इस बार भी राहुल गांधी के पक्ष में बातें करते मिले। मोदी का समर्थन करने वाले लोगों ने देश का नाम रोशन किया, इंटरनैशनल इमेज सुधारी, इकॉनमी ग्रोथ, इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट जैसे पॉइंट्स गिनवाए। विरोध करने वालों ने बेरोजगारी और महंगाई का जिक्र किया। फ्री राशन एक बड़े फैक्टर के तौर पर दिखा।
 

​संस्कृति और अस्मिता से बढ़कर कुछ भी नहीं

साउथ के दो राज्य आंध्र प्रदेश और तेलंगाना और पूर्व का राज्य ओडिशा तीनों ही राज्यों के दौरे में जो सबसे अहम चीज नजर आई वह है अपनी संस्कृति और अस्मिता के लोगों को जबरदस्त लगाव। शायद इसकी वजह है ओडिशा और आंध्र प्रदेश में क्षेत्रीय दलों का लगातार सत्ता में रहना। तेलंगाना में महज छह महीने पहले ही क्षेत्रीय पार्टी BRS सत्ता से दूर हुई है। तेलंगाना में कांग्रेस-‌BJP के बीच टक्कर में जीत टिकी है कि BRS का वोट बैंक किस तरफ जाता है। कांग्रेस को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानकर BRS काडर BJP के प्रति नरम रुख रख रहा है। इसके पीछे एक वजह पूर्व सीएम के. चंद्रशेखर राव की बेटी के. कविता का ऐंगल भी माना जा रहा है। तेलंगाना में राम मंदिर और मोदी बड़े मुद्दे बने और जमीन पर मुस्लिम बहुल इलाके में ध्रुवीकरण की कोशिश काम करती दिखी। आंध्र और ओडिशा में लोकसभा के साथ असेंबली चुनाव भी हैं। इस कारण राष्ट्रीय मुद्दों से ज्यादा स्थानीय और प्रांतीय मुद्दे चुनाव की दिशा और दशा तय करते दिखे। आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ YSR कांग्रेस के सामने TDP, BJP और पवन कल्याण की जनसेना पार्टी गठबंधन ने चुनाव लड़ा। यहां विकास बनाम लोकप्रिय योजनाओं के बीच लड़ाई दिखी।

आंध्र की सियासत में अहम रोल निभाने वाले तीन अहम समुदायों रेड्डी, कोपू और कम्मा के बीच सियासी समीकरण बदला। एक-दूसरे के धुर विरोधी कोपू और कम्मा गठबंधन के चलते साथ आए और उनका मुकाबला YS जगनमोहन रेड्डी से है। विकास को लेकर जगन सरकार की किसानों और हथकरघा बुनकरों से जुड़ी नीतियों से नाराजगी दिखी तो राजधानी का मुद्दा विकास और भावना दोनों ही स्तरों पर लोगों के बीच असंतोष की वजह बनता दिखा। असल लड़ाई टीडीपी और YSR कांग्रेस के बीच है। ओडिशा में पूरे चुनाव के केंद्र में अगर कुछ दिखा तो वह सीएम नवीन पटनायक। करीब ढाई दशक से सीएम पटनायक भगवान जगन्नाथ के बाद उड़िया समाज के बीच दूसरा सबसे बड़े अस्मिता के प्रतीक के तौर पर सामने आते दिखते हैं। बड़ी संख्या में पलायन, विकास सूचकांकों में पिछड़ना और भ्रष्टाचार का मुद्दा जैसी तमाम चीजें पटनायक की लोकप्रियता के सामने कमतर लगीं। असेंबली चुनाव में उन्हें हटा पाना मुश्किल दिखता है।

ध्रुवीकरण के साथ बेरोजगारी और महंगाई
•तेलंगाना को छोड़ा तो आंध्र प्रदेश और ओडिशा में हिंदुत्व और राम मंदिर को लेकर वैसा क्रेज नहीं दिखा
•तेलंगाना में कुछ हद तक ध्रुवीकरण काम करता दिखाई दिया, जबकि बाकी राज्यों में हिंदू-मुस्लिम जमीन पर नहीं था।
•जमीन पर बेरोजगारी और महंगाई का मुद्दा प्रखर है।
•क्षेत्रीय अस्मिता और पहचान सबसे महत्वपूर्ण। उनके साथ कोई समझौता बर्दाश्त नहीं

News Desk

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