कांवड़ यात्रा के दौरान क्यों लगाए जाते हैं ‘बोल बम बम भोले’ के जयकारे, किस तरह निकालते हैं ये, जानें इसकी मान्यता
श्रावण मास में श्रद्धालु शिव भक्ति में डूबे रहते हैं. कई भक्त अपने घर पर तो कई शिवालयों और मंदिरों में जाकर पूजा और भजन कीर्तन करते हैं. वहीं इस महीने में कांवड़ यात्रा भी आपने देखी होंगी. जब शिव भक्त गंगा नदी या किसी पवित्र नदी के जल को कांवड़ में भरकर भगवान शिव के मंदिर में लाकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं. कांवड़ यात्रा के दौरान शिवभक्त पैदल यात्रा करते हैं और चलते समय ‘बोल बम बम भोले’ मंत्र के जयकारे लगाते हैं. क्या आप जानते हैं कि शिव भक्त इस मंत्र का जाप क्यों करते हैं और इसका क्या अर्थ है. यदि नहीं तो चलिए जानते हैं, इस मंत्र का अर्थ और जाप करने का कारण भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से.
इस प्रकार से निकाली जाती है कांवड़ यात्रा
आपको बता दें कि कांवड़ यात्रा सदियों से निकाली जा रही है. इस यात्रा के लिए श्रद्धालु केसरिया रंग के कपड़े पहन कांवड़ लेकर निकलते हैं. कांवड़िए खास तौर पर गंगा नदी के लिए निकलते हैं या फिर किसी पवित्र नदी के जल के लिए. इस यात्रा को पैदल ही पूरा करना होता है.
पूरी होती है मनोकामना
भगवान शिव की भक्ति पाने के लिए कांवड़िए गंगा जल को भरकर कांवड़ में रखते हैं. इसके बाद कांवड़िए पैदल ही अपनी यात्रा को पूरा कर करने वापस आते हैं. यात्रा के दौरान जो भी पवित्र, प्रसिद्ध मंदिर और नदी मिलते हैं वहां से यात्रा प्रारंभ कर भगवान शिव को जल अर्पित किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि कांवड़ यात्रा से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं.
क्यों लगाते हैं ‘बोल बम बम भोले’ का जयकारा
इस यात्रा के दौरान पैदल चलते हुए कांवड़ियों को आपने ‘बोल बम बम भोले’ का जयकारा लगाते हुए भी सुना होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि, जयकारा लगाने से यह यात्रा शिवमय हो जाती है. वहीं मान्यता के अनुसार, ‘बोल बम बम भोले’ मंत्र ब्रह्मा, विष्णु, महेश और ओमकार का प्रतीक है. ऐसा भी माना जाता है कि जयकारा लगाने से यात्रा पूरी करने में किसी तरह की वाधा नहीं आती. साथ ही लगातार जयकारा लगाने से भक्तों में उत्साह और जोश उत्पन्न होता है.