भोपाल : मानव स्वास्थ्य में पशु स्वास्थ्य का अहम योगदान है। पशु पक्षियों का स्वास्थ्य बिगड़ने पर इसका प्रतिकूल प्रभाव मानव पर भी पड़ता है। मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में तो हर रोग के लिए विशेषज्ञ है, परंतु पशु स्वास्थ्य का दायरा सीमित है। जितना ध्यान मानव स्वास्थ्य पर दिया जा रहा है उतना ही पशु स्वास्थ्य एवं पर्यावरण स्वास्थ्य के प्रति भी सजगता होनी चाहिए, तभी हम समग्र स्वास्थ्य की बात कर सकते हैं। वाइल्डलाइफ हेल्थ पर भी पूरा ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। बर्ड फ्लू (एवियन इन्फ्लूएंजा) पर 2 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में ये विचार भारत सरकार के पशुपालन आयुक्त अभिजीत मिश्रा ने व्यक्त किए।
प्रमुख सचिव, पशुपालन एवं डेयरी विभाग, गुलशन बामरा ने कहा कि अभी पशु चिकित्सा के क्षेत्र में काफी चुनौतियां हैं, जिन्हें हमें दूर करना है। वर्ल्ड बैंक और भारत सरकार पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा एक बेहद सार्थक संगोष्ठी एवं पर परिचर्चा आयोजित की गई है, जिसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इस वैज्ञानिक परिचर्चा के निष्कर्ष निश्चित रूप से पशु स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण साबित होंगे।
पी. सी. सी. एफ., वाइल्ड लाइफ डॉ. अतुल श्रीवास्तव ने कहा कि पशुओं का इलाज बेहद चुनौती पूर्ण है। मनुष्य तो अपनी बीमारी और परेशानी बता सकता है लेकिन पशुओं के लक्षण देखकर ही बीमार का इलाज करना होता है। उन्होंने पशुओं के पंजीयन की भी आवश्यकता बताई। कार्यशाला में वर्ल्ड बैंक की वरिष्ठ कृषि अर्थशास्त्री डॉक्टर हीकूईपी, प्रमुख वैज्ञानिक डॉक्टर चंद्रधर तोष ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यशाला में बर्ड फ्लू से संबंधित वैज्ञानिक परिचर्चा की गई। साथ ही पशुओं में होने वाली अन्य नई बीमारियों और जुनेटिक डिजीज के परिपेक्ष में भी वन हेल्थ के विषय पर गहन चर्चा की गई। कार्यशाला का आयोजन वर्ल्ड बैंक और पशुपालन एवं डेयरी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है।
कार्यशाला में असम, उड़ीसा, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, दिल्ली आदि राज्यों के पशु विशेषज्ञ एवं वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ उपस्थित हुए। वर्ल्ड बैंक के विशेषज्ञ, राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग अनुसंधान प्रयोगशाला के वरिष्ठ वैज्ञानिक, राज्यों के पशुपालन एवं डेयरी विभाग एवं स्वास्थ्य विभाग अधिकारी, राष्ट्रीय स्तर की स्वास्थ्य संस्थानों के अधिकारी, वन विभाग तथा वन्य प्राणी विभाग से संबंधित अधिकारी तथा अन्य रोग अनुसंधान प्रयोगशालाओं के अधिकारी आदि शामिल हुए।