बगैर कॉलेज आए डिग्री ले गए बिहार, राजस्थान, छग के विद्यार्थी
बगैर संबद्धता के विजय लक्ष्मी नर्सिंग कॉलेज में हो गई परीक्षा
जबलपुर। क्या जिन विद्यार्थियों ने कभी कॉलेज का मुंह भी न देखा हो वे कोई डिग्री डिप्लोमा ले सकते हैं। आश्चर्यजनक किंतू इस बात को प्रदेश की एक यूनिवर्सिटी ने सच कर दिखाया हैं। जिसमें नर्सिंग जैसे विषयों के जबलपुर या प्रदेश के नहीं बल्कि बिहार, राजस्थान और छत्तीसगढ़ से आए उन छात्रों को भी डिग्री दे दी गई जो सिर्फ परीक्षा देने मप्र आते थे। दलालों के माध्यम से दूसरे राज्यों के विद्यार्थी नर्सिंग कॉलेजों में प्रवेश लेते थे। वह सिर्फ परीक्षा देने के लिए आते थे। इनमें सबसे अधिक बिहार के होते थे। कालेज संचालक इनसे मनमाना पैसा वसूलते थे। सीबीआई सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मप्र आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय (एमपीएमएसयू) से संबद्ध ऐसे एक दो नहीं बल्कि कई कॉलेज हैं जहाँ पर यह कथित घोटाला हुआ। सूत्रों के अनुसार प्रदेश में सर्वाधिक विवादित नर्सिंग कॉलेज ग्वालियर का विजय लक्ष्मी नर्सिंग कॉलेज बताया जा रहा हैं जहां संबद्धता न होते हुए भी हालहीं में विद्यार्थियों की परीक्षाएं एमपीएमएसयू प्रबंधन ने ले ली। इस मामले में एमपीएमएसयू प्रबंधन के साथ परीक्षा नियंत्रक डॉ. सचिन कुचया की भूमिका अत्यधिक संदेहास्पद नजर आ रही हैं। जो इतनी बड़ी गड़बड़ी के बावजूद मौन धारण कर बैठ गए हैं।
एमपीएमएसयू कार्यपरिषद ने किया था संबद्धता के लिए अमान्य
एमपीएमएसयू की कार्यपरिषद की बैठक में ग्वालियर के विजय लक्ष्मी कॉलेज ऑफ नर्सिंग की बीएससी की 40 सीटों में 20 सीटें बढ़ाकर 60 सीटें करने और पीबीबीएससी में 50 सीटों का नया कोर्स प्रारंभ करने का प्रकरण आया था। कार्य परिषद सदस्य द्वारा 31 जनवरी 2023 की लाइव रिव्यू भी किया गया। विजय लक्ष्मी कॉलेज ऑफ नर्सिंग ग्वालियर के संबंध में कार्यपरिषद कार्यपरिषद सदस्य द्वारा बैठक में विदित कराया गया कि महाविद्यालय से संबद्ध गालब सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, चितौरा रोड, ग्वालियर की मान्यता सीएमएचओ द्वारा निरस्त की गई है। कार्य परिषद सदस्य द्वारा कार्य परिषद बैठक के दौरान सीएमएचओ से दूरभाष पर इस बात की पुष्टि की गई। इसके साथ ही कार्यपरिषद के संज्ञान में यह भी आया कि महाविद्यालय में जीएनएम कोर्स का संचालन किया जा रहा है। उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार महाविद्यालय को वर्तमान में शासकीय अस्पतालों से भी संबद्धता प्राप्त नहीं है। अत: संबद्ध अस्पतालों में बैड संख्या कम होने की दशा में उक्त महाविद्यालय को संबद्धता हेतु अमान्य किया गया।
आईएनसी के नियमों के शिथिलीकरण के बाद खुले कॉलेज
मप्र के नर्सिंग कॉलेजों में बिहार, राजस्थान व छग के विद्यार्थी लेते थे प्रवेश, सिर्फ परीक्षा देने आते थे यह मापदंड इंडियन नर्सिंग काउंसिल (आईएनसी) से अधिक सरल कर दिए गए, जिससे बड़ी संख्या में कॉलेज खुले। एमपीएमएसयू से लेकर स्थानीय स्तर पर जिला प्रशासन के अधिकारियों ने भी विजय लक्ष्मी कॉलेज सहित इस तरह के अन्य कॉलेजों की कभी जांच नहीं की। कॉलेजों में गड़बड़ी सन 2018 से बढ़ी। राज्य सरकार ने इंडियन नर्सिंग काउंसिल (आईएनसी) की जगह अपने मापदंड निर्धारित किए।
अधिकांश लेते थे जीएनएम कोर्स में प्रवेश
विजय लक्ष्मी नर्सिंग कॉलेज सहित अन्य नर्सिंग कॉलेजों में तय मापदंडों के साथ तो मजाक हुआ ही, ऐसे विद्यार्थियों को भी यहां से डिग्री, डिप्लोमा मिल गई जिन्होंने कभी कालेज का भवन तक नहीं देखा। फर्जी तरीके से संचालित इन कालेजों में प्रवेश के लिए सबसे अधिक विद्यार्थी बिहार, राजस्थान और छत्तीसगढ़ से आते थे। इनमें अधिकतर जीएनएम डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश लेते थे।
वर्ष 2018 से बढ़ी गड़बडिय़ों
बताते हैं एमपीएमएसयू प्रबंधन से लेकर स्थानीय स्तर पर जिला प्रशासन के अधिकारियों ने भी इस तरह के कॉलेजों की कभी जांच नहीं की। कॉलेजों में गड़बड़ी वर्ष 2018 से बढऩा शुरु हुई जब राज्य सरकार ने आईएनसी की जगह अपने मापदंड निर्धारित किए। यह मापदंड आईएनसी से अधिक सरल कर दिए गए, जिससे बड़ी संख्या में कॉलेज खुले। मप्र नर्सिंग काउंसिल ने मानक पूरा नहीं करने वाले कॉलेजों को भी मान्यता दे दी।
मनमाने शुल्क पर एडमीशन, डकार जाते थे स्कॉलरशिप
सूत्र बताते हैं कि नियमों के शिथिलीकरण के बाद छात्रवृत्ति के नाम पर राशि डकारने आदिवासी जिलों में कई कॉलेज खुले। प्रदेश में वर्ष 2020-21 के बाद से नर्सिंग कॉलेजों की बाढ़ सी आ गई। गड़बड़ी का ऐसा खेल चला कि कॉलेजों के जो पते दिए गए थे, वहां कहीं स्कूल तो कहीं और कुछ काम होता मिला। आदिवासी जिलों में इस दौरान खूब कॉलेज खुले। कारण, एससी-एसटी विद्यार्थियों को मिलने वाली छात्रवृत्ति थी। नर्सिंग के अलग-अलग कोर्स में एक विद्यार्थी को 30 हजार से 40 हजार रुपये प्रतिवर्ष छात्रवृत्ति मिलती है। इसके फेर में आदिवासी जिलों जैसे बैतूल, बड़वानी, खरगोन, धार आदि जिलों में खूब कॉलेज खुले। सीबीआई ने अपनी जांच में जिन 66 कालेजों को अनुपयुक्त बताया है, उनमें पांच बैतूल और तीन धार के हैं। इसी तरह उपयुक्त बताए गए कॉलेजों में सात बड़वानी के हैं। आदिवासी क्षेत्रों में अधिक कॉलेज खोलने की दूसरी वजह यह भी रही कि इन आदिवासी जिलों में नर्सिंग कॉलेज के विद्यार्थियों की सरकारी अस्पतालों में क्लीनिकल ट्रेनिंग की आसानी से अनुमति मिल जाती है।