वॉशिंगटन। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने तिब्बत विवाद का शांतिपूर्ण तरीके से हल निकालने के लिए रिजॉल्व तिब्बत एक्ट पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। चीन ने इस कानून को लेकर अमेरिका को चेतावनी दी थी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से इस कानून पर हस्ताक्षर न करने को कहा था। हालांकि बाइडन ने चीन के विरोध को दरकिनार कर रिजॉल्व तिब्बत एक्ट पर हस्ताक्षर करने का फैसला किया। 'रिजॉल्व तिब्बत कानून' में कहा गया है कि अमेरिका की नीति है कि तिब्बत मुद्दे को बिना किसी पूर्व शर्त के, बातचीत के जरिए शांतिपूर्ण तरीके से हल किया जाना चाहिए। यह कानून तिब्बत के बारे में चीन के झूठ से निपटने की कोशिश की गई है और चीन से तिब्बत के इतिहास के बारे में गलत और भ्रामक प्रचार बंद करने की भी मांग करता है। साथ ही यह कानून चीन के भ्रामक दावों से निपटने के लिए अमेरिका के विदेश विभाग को भी ताकत देता है। कानून में तिब्बती लोगों के अलग धार्मिक, भाषाई और ऐतिहासिक पहचान को परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है कि चीन की नीतियां तिब्बती लोगों को अपनी जीवन शैली को संरक्षित करने की क्षमता को दबाने की कोशिश कर रही हैं। तिब्बत के सर्वोच्च धर्मगुरु दलाई लामा ने बार-बार चीन से तिब्बती लोगों को स्वायत्ता देने की अपील की है और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत लोगों को आत्मनिर्णय लेने का अधिकार है। अमेरिका की संसद से जब यह कानून पारित हुआ था तो अमेरिकी नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने भारत आकर दलाई लामा से मुलाकात भी की थी। अमेरिकी संसद की विदेश मामलों की समिति के प्रमुख माइकल मैक्कॉल ने कहा कि यह कानून तिब्बत के लोगों को अपने भविष्य का प्रभारी बनाने में मदद करेगा।
चीन ने दी थी धमकी
चीन रिजॉल्व तिब्बत एक्ट का विरोध कर रहा है। चीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति से कहा था कि वह इस विधेयक पर हस्ताक्षर न करें। चीन के विदेश विभाग के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा था कि 'कोई भी ताकत जो शिजांग को अस्थिर करने या फिर चीन के दबाने की कोशिश करेगी, वह सफल नहीं होगी। अमेरिका को विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करना चाहिए। चीन अपनी संप्रभुता, सुरक्षा और अपने हितों के लिए सख्त कदम उठाएगा।' चीन तिब्बत को शिजांग कहकर संबोधित करता है। चीन ने इस साल अप्रैल में कहा था कि वह सिर्फ दलाई लामा के प्रतिनिधियों से बात करेगा न कि निर्वासन में चल रही तिब्बत सरकार से। चीन ने दलाई लामा की तिब्बत को स्वायत्ता देने की मांग भी खारिज कर दी है। चीन के तिब्बत पर कब्जे के बाद साल 1959 में 14वें दलाई लामा तिब्बत से भागकर भारत आ गए थे। उसके बाद से ही दोनों पक्षों में संबंध तनावपूर्ण हैं।