भोपाल । मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने परिवहन विभाग के जिन बैरियर (चेक पोस्ट) को बंद करवाया है वे सरकार के लिए सफेद हाथी बनकर रह गए थे। सूत्रों का कहना है कि परिवहन विभाग के अधिकारी सरकार को कमाई को सबसे बड़ा साधन बताकर जिन बैरियरों पर वाहनों से अवैध वसूली करवाते वहां से सरकार को कोई विशेष राजस्व नहीं मिलता था। ऊपर से इन बैरियरों पर होने वाली अवैध वसूली से मप्र सरकार की देशभर में फजीहत होती थी।
गौरतलब है कि परिवहन विभाग सरकार के कमाऊ विभागों में से एक है। इसलिए यह विभाग अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए चारागाह बन गया है। परिवहन के बैरियर पर अवैध कमाई का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुलिस विभाग के एडीजी और स्पेशल डीजी स्तर तक अधिकारी-कर्मचारी परिवहन में नौकरी के लिए लालायित रहते हैं। सूत्रों का कहना है कि इस विभाग में आने के लिए मोटी रकम देनी पड़ती है। इसलिए अधिकारियों-कर्मचारियों ने बैरियरों को अपनी अवैध कमाई का जरिया बना लिया था।
राजस्व में बड़ी सेंधमारी
परिवहन विभाग के अवैध वसूली के जिन बैरियर का मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बंद करा दिया है उन परिवहन बैरियर ने केवल ट्रक चालकों को ही नहीं लूटा, शासन के राजस्व में भी बड़ी सेंधमारी की। 2010-12 में परिवहन विभाग के जिन बैरियर से हर साल शासन को 150 से 180 करोड़ रुपये तक राजस्व मिलता था, अवैध कमाई के फेर में वह घटकर 75 से 90 करोड़ रुपये प्रति वर्ष तक ही रह गई। पड़ोसी राज्यों से सटी मध्यप्रदेश की सीमाओं पर जिन परिवहन चेकर्पास्ट को राजस्व चोरी रोकने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था, मोटे अर्थदण्ड से बचने के लिए ट्रांसपोर्टर और विभागीय अधिकारी की सहमति से यहां घूसखोरी शुरू हो गई। 30 साल पहले अवैध वसूली का जो खेल सौ-दो सौ रुपये से शुरू हुआ था, एक साल पहले तक उसकी कीमत 2000 से 3000 रुपये तक पहुंच गई। ट्रांसपोर्टर का दर्द जब असहनीय हो गया, कुछ ने तो ट्रंसपोर्ट कारोबार भी बंद कर दिया, तब मप्र में इस जबरन अवैध वसूली को पूरी तरह बंद कराने की रणनीति बनी और ट्रांसपोर्टर की कड़ी चेतावनी के बाद मप्र के इन चेकपोस्ट को बंद करने का निर्णय हो सका। कई ने पैसे और राजनीतिक पकड़ से परिवहन विभाग में प्रतिनियुक्ति भी कराई।
अधिकारियों-कर्मचारियों की बेहिसाब कमाई
परिवहन विभाग में अवैध वसूली और कमाई का आकलन इसी से किया जा सकता है कि परिवहन विभाग में पदस्थ रहे परिवहन आयुक्त से लेकर आरक्षक तक की चल व अचल संपत्तियां करोड़ों और अरबों में हैं। ये सपत्तियां मप्र के बड़े शहरों भोपाल, ग्वालियर, इंदौर, जबलपुर में भी हैं और मप्र के बाहर भी हैं। ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सीएल मुकाती का कहना है कि वर्ष 2012 से 2015 तक परिवहन बैरियर से शासन को लगभग 150 करोड़ राजस्व मिलता था। वर्ष 2015-16 के बाद निरंतर सडक़ पर वाहन संख्या बढ़ती गई। 2012 से अब तक यह दो गुना हो गई है। लेकिन राजस्व बढऩे के स्थान पर निरंतर घटता गया। क्योंकि परिवहन अधिकारी और कर्मचारियों की अवैध वसूली निरंतर बढ़ती गई। सूचना का अधिकार में हमें राजस्व वसूली और बैरियर संचालन पर खर्च की जानकारी नहीं दी जा रही है।
अवैध वसूली के कई तरीके
वर्ष 2000 के पहले जिन ट्रकों के क्षमता से अधिक भरे होने पर रिश्वत के रूप में सौ-दो सौ रुपये रिश्वत तक लिए जाते थे, 2001 में यह रिश्वत 500 रुपए तक पहुंच गई। सडक़ों पर ट्रकों की संख्या बढ़ी, इनके फेरे भी बढ़े, तो नई तरकीब निकाली गई। मप्र की सडक़ों से गुजरकर दूसरे राज्यों में प्रवेश और वापसी करने वाले हर ट्रक-डम्पर से महीने में एक बार एंट्री फीस के रूप में अवैध वसूली जाने लगी। वाकायदा चक्कर और चक्कों की संख्या के हिसाब से 1000 से 2000 रुपये तक के अलग- अलग रंग के कूपन तैयार किए गए। ठीक 30 दिन में कूपन डिस्चार्ज हो जाता था। इसके बाद फिर से एंट्री फीस देकर नया कूपन बनवाना पड़ता था। जिनके पास कूपन नहीं होता था, उन्हें एक बार में ही 500 रुपये तक रिश्वत देनी पड़ती थी। इस व्यवस्था से ट्रांसपोर्टर और वसूलीखोर दोनों संतुष्ट और फायदे में रहते थे, नुकसान सिर्फ शासन के राजस्व का होता था। 2015-16 के बाद सडक़ पर ट्रकों की संख्या तेजी से बढ़ी तो एंट्री फीस में और भी इजाफा हुआ। कूपन व्यवस्था को खत्म कर दिया गया। प्रत्येक चक्कर में हर ट्रक से प्रत्येक बैरियर पर एक से डेढ़ हजार रुपये की वसूली शुरू हो गई। ओवरलोड भरे ट्रक से वसूली को धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर दो- तीन हजार रुपये तक कर दिया गया। इतना ही नहीं खाली निकलने वाले ट्रक से भी प्रत्येक चक्कर में एक हजार रुपये तक की वसूली की जाने लगी।