मध्यप्रदेशराज्य

मदरसों में पढ़ रहे 9,417 हिंदू बच्चे

एनसीपीसीआर अध्यक्ष बोले-सरकार सभी को सामान्य स्कूल भेजे, जानें मामला

भोपाल। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो के एक बयान ने मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार को सीधे कटघरे में खड़ा कर दिया है। एनसीपीसीआर के अध्यक्ष कानूनगों ने कहा कि प्रदेश सरकार मदरसों में पढऩे वाले हिंदू बच्चों को सामान्य स्कूलों में भेजे।
उन्होंने कहा मध्य प्रदेश का स्कूल शिक्षा विभाग इस ओर बिल्कुल उदासीन है, उनसे हमें कोई भी सकारात्मक उत्तर नहीं मिला है। उन्होंने कहा- शिक्षा विभाग को इस दिशा में सक्रयिता से काम करना चाहिए, बच्चों को धर्म के चश्मे से देखना बंद करना चाहिए। सभी बच्चों को समान शिक्षा मिले इस दिशा में काम करना चाहिए।  बाल अधिकारों के संरक्षण के संबंध में आयोजित बैठक में एनसीपीसीआर अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा कि शिक्षा विभाग के अनुसार मध्य प्रदेश में 1,755 मदरसे पंजीकृत हैं। इनमें 9,417 हिंदू बच्चे पढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि मप्र मदरसा बोर्ड स्थापना अधिनियम कहता है कि मदरसा वो संस्थान होंगे जहां धार्मिक इस्लामिक शिक्षा दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धार 1 मदरसा को शिक्षा के अधिकार के दायरे से बाहर रखती है।

 

हिंदू बच्चों को मदरसों में भेजना अक्षम्य काम

एनसीपीसीआर के अध्यक्ष कानूनगों ने बताया कि इन मदरसों में जो शिक्षक हैं वो बीएड-डीएड क्वालीफाई नहीं हैं। इन संस्थानों में आरटीई अधिनियम के तहत जरूरी बेसिक डेवलपमेंट की कमी है। यहां सुरक्षा के इंतजाम भी नहीं हैं। ऐसे में बड़ी संख्या में बच्चों को वहां रखना एक अपराध है और हिंदू बच्चों को मदरसों में भेजना एक अक्षम्य काम है। इसमें तत्काल सुधार की आवश्यता है। मैं मध्य प्रदेश सरकार से आग्रह करता हूं कि मदरसों में पढऩे वाले हिंदू बच्चों को बाहर निकालने की कार्रवाई करें।

 

 मदरसा बोर्ड को फंड देना…

एनसीपीसीआर के अध्यक्ष कानूनगों ने कहा कि मदरसों का बुनियादी ढांचा आरटीई अधिनियम के अनुरूप नहीं है। आरटीई अधिनियम के तहत स्कूल स्थापित करना सरकार का काम है। उन्होंने कहा कि मदरसा बोर्ड को फंड देना गरीब बच्चों को उनके शिक्षा के अधिकार से वंचित करने जैसा है। हिंदू बच्चों को मदरसों से निकालकर सामान्य स्कूल में भेजा जाए। साथ ही, जो मुस्लिम बच्चे गैर-पंजीकृत मदरसों में पढ़ रहे हैं, उन्हें सामान्य स्कूलों में भेजा जाना चाहिए।

News Desk

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