छत्तीसगढ

सत्ता में एक राज्य की नौकरशाही की चर्चा….साय सरकार के एक वर्ष की सत्ता क्या हो पाई सफल…..????

●छत्तीसगढ़ उजाला●

छत्तीसगढ़ में सत्ता के बदलने के बाद सभी को यह अहसास था की सरकार के साथ ही अफसरों के काम करने का तरीका बदलेगा पर साय सरकार में भी अफसरों पुराना ढर्रा बरकरार है।सत्ता के केंद्र बिंदु में नौकरशाही महत्वपूर्ण होती है।पर आज एक विशेष राज्य के नौकरशाह अपनी पकड़ बनाने में मजबूत नजर आ रहे है।आज छत्तीसगढ़ में इस राज्य की लॉबी ज्यादा ताकतवर दिख रही है।अपने लोगो को हर जगह बैठालने के काम मे लगी हुई है।सत्ता की चाभी अपने पास रखने का खेल बदस्तूर जारी है।अपने राज्य के ठेकेदारों को काम देने का काम चलाया जा रहा है।नई सरकार को आज एक वर्ष हो गए पर बदलाव की झलक न जनता को दिखी न ही पार्टी कार्यकर्ताओं को।अपनी मनमानी करने में ही लगे है।इनके राज्य के लोगो का जमावड़ा शासकीय विश्राम गृह के साथ ही बडी होटलों में भी नजर आ जायेगा।सत्ता का पूरा दारोमदार इसी नौकरशाही के ऊपर रहता है।मुखिया के यहाँ का आपसी विवाद भी अक्सर चर्चा में रहता है।

आज विपक्ष में बैठी कांग्रेस का कहना है कि इस सरकार के आने के बाद छत्तीसगढ़ अपराध का गढ़ बन गया है।साय सरकार ने छत्तीसगढ़ी लोगो के साथ न्याय नही किया।आज सरकार की अपनी मनमानी चरम पर है।विकास के सारे काम बंद पड़े हुए है।सरकार गली मोहल्लों में शराब परोसने के काम मे लग गई है।वही भाजपा के कुछ नेताओं का कहना है मुख्यमंत्री की सरलता का ये नौकरशाह बेजा फायदा उठाने में लगे है।किसी भी पार्टी कार्यकर्ताओं का कोई काम नही हो रहा है।मुख्यमंत्री से मिलने का समय नही मिल पाता।जनता के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच मे सरकार की छवि खराब हो गयी है।सरकार का जनसंपर्क विभाग भी सरकार की अच्छी इमेज बना पाने में असफल साबित हुआ है।सोशल मीडिया में सरकार की छवि एक कमजोर प्रशासक की बन गयी है।आज सरकार केवल कुछ अफसरों की हो गयी है।

कुल मिलाकर आज की स्थिति में साय सरकार का एक वर्ष का कार्यकाल किसी बड़ी उपलब्धि के बजाय असफल कहा जा सकता है।सरकार से कोई वर्ग संतुष्ट नजर नही आ रहा है।इन एक वर्ष में साय सरकार में मंत्रियों का आपसी विवाद भी काफी चर्चा में बना रहा।मंत्रियों के कहने के बाद अफ़सर काम नही करते है।एक मंत्री ने कलेक्टर से अपने लोगो के काम के लिए कहा उस अफ़सर ने साफ मना कर दिया।सचिवालय में बैठे ये नौकरशाही मंत्रियों का कॉल भी अटेंड नही करते है।पॉवर हब बनने के चक्कर मे इनका आपसी विवाद भी चर्चा में रहा।अब मंत्री जी अपनी समस्या किसको बताये।वही एक आदिवासी मंत्री की चर्चा भी राजनैतिक गलियारो में बहुत ज्यादा बनी रही। इसके साथ ही कलेक्टर कार्यालय में आगजनी के साथ ही पुलिस अफसरों की पिटाई का मुद्दा काफी गरम रहा।सत्ता के केंद्र में बैठकर प्रशासन को चलाने वाले यह नौकरशाह असफल कहे जा सकते है।अपने आपको पूर्व की सरकार में पीड़ित बताने वाले अपनी कहानी करने में लग गए।इनकी अपनी मंशा भी पार्टी के नेताओ को समझ मे आ गयी है।सत्ता के बदलते ही बदलाव की अपेक्षा रखने वाले पार्टी के कार्यकर्ता अब अपने आपको ठगा सा महसूस करने लगे है।अब उनको भी पूर्व की भूपेश सरकार सही लगने लगी है।आखिर ऐसी स्थितियों का जिम्मेदार कौन है।क्या भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को प्रदेश की बदहाल हालात से कोई सरोकार नही रह गया है।आज एक वर्ष के बाद भी आयोग मंडल का गठन क्यो नही हो पाया।आज भी दो मंत्री पद खाली पड़े हुए है।इसके पहले कभी भी ऐसी सत्ता नही थी जो आज है।

Anil Mishra

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