*शराब घोटाला’ मामले ने रायपुर के पूर्व मेयर एजाज की डूबा दी नैया, बुरी तरह हारे पार्षद चुनाव*
छत्तीसगढ़ उजाला
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रायपुर (छत्तीसगढ उजाला)। नगरीय निकाय चुनाव को लेकर मतगणना संपन्न हो गई है। वहीं राजधानी के पूर्व मेयर एजाज ढेबर बुरी तरह से चुनाव हरे। प्रदेश में शराब घोटाले मामले ने रायपुर नगर निगम के पूर्व महापौर एजाज की नैया डूबा दी है। वे रायपुर नगर निगम से पार्षद का चुनाव बुरी तरह से हार गए हैं। बीजेपी की शानदार चुनावी रणनीति ने रंग लाई। बीजेपी ने शराब घोटाले के मामले को चुनाव में जोर-जोर से उठाया। इसे लेकर बीजेपी को सफलता भी मिली।
दरअसल, प्रदेश में शराब घोटाला मामले में पूर्व मेयर एजाज ढेबर के भाई अनवर ढेबर अभी जेल में है। इस मुद्दे को बीजेपी ने जोरों-शोरों से उठाया। जिसका नतीजा सामने आया है। बता दें कि कांग्रेस मेयर की टिकट कर एजाज को पार्षद का टिकट दिया था। मेयर होते हुए भी उन्होंने पार्षद की चुनाव नहीं जीत पाए। वहीं कांग्रेस ने पूर्व मेयर एजाज के पत्नी को भी पार्षद के लिए चुनावी मैदान में उतरा था, उन्होंने जीत हासिल की है।
जानें क्या हैं दो हजार करोड़ का शराब घोटाला
ईडी की जांच के मुताबिक, पूर्व कांग्रेस सरकार में उच्च स्तरीय अधिकारियों, निजी व्यक्तियों और राजनीतिक अधिकारियों वाला एक सिंडिकेट काम कर रहा था। छत्तीसगढ़ में शराब व्यापार में बड़े पैमाने पर घोटाला किया गया। साल 2019-22 में दो हजार करोड़ रुपये से अधिक काले धन की कमाई हुई। मनी लॉन्ड्रिंग मामला 2022 में दिल्ली की एक अदालत में दायर आयकर विभाग की चार्जशीट से उपजा है। पूर्व की कांग्रेस सरकार पर आरोप है कि सीएसएमसीएल (शराब की खरीद और बिक्री के लिए राज्य निकाय) से शराब खरीदने के दौरान रिश्वतखोरी हुई। प्रति शराब मामले के आधार पर राज्य में डिस्टिलर्स से रिश्वत ली गई और देशी शराब को ऑफ-द-बुक बेचा गया। ईडी के मुताबिक, डिस्टिलर्स से कार्टेल बनाने और बाजार में एक निश्चित हिस्सेदारी की अनुमति देने के लिए रिश्वत ली गई थी।
एफआईआर के मुताबिक अनिल टुटेजा, अरुणपति त्रिपाठी और अनवर ढेबर ने शराब घोटाला से मिले रकम को अपने परिवार वालों के नाम पर निवेश किया। टुटेजा ने अपने बेटे यश टुटेजा के नाम पर निवेश किया और त्रिपाठी ने अपनी पत्नी अपनी पत्नी मंजूला त्रिपाठी के नाम पर फर्म बनाया जिसका नाम रतनप्रिया मीडिया प्रइवेट लिमिटेड था। ढेबर ने अपने बेटे और भतीजों के फर्म पर पैसे निवेश किया।
जनवरी 2024 में हुई थी एफआईआर
एसीबी और ईओडब्ल्यू ने ईडी के पत्र के आधार पर जनवरी 2024 में एफआईआर दर्ज की है। ईओडब्ल्यू के दर्ज एफआईआर में अनिल टुटेजा, अरुणपति त्रिपाठी और अनवर ढेबर को शराब घोटाला का मास्टरमाइंड बताया गया है। एफआईआर में शामिल बाकी आईएएस और अन्य सरकारी ऑफिसर और लोग सहयोग किये थे। शराब घोटाला से होने वाली आमदनी का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं तीनों को जाता था। टुटेजा आईएएस ऑफिसर हैं, जब घोटाला हुआ तब वे वाणिज्य एवं उद्योग विभाग के संयुक्त सचिव थे। दूरसंचार सेवा से प्रतिनियुक्ति पर आए त्रिपाठी आबकारी विभाग के विशेष सचिव और छत्तीसगढ़ मार्केटिंग कॉर्पोरेशन के एमडी थे। वहीं अनवर ढेबर रायपुर के मेयर एजाज ढेबर के बड़े भाई और शराब कारोबारी है।
100 लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर
ईडी ने शराब और कोयला घोटाला मामले में दो पूर्व मंत्रियों, विधायकों सहित 100 लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज कराई थी। इनमें भूपेश सरकार में आबकारी मंत्री रह चुके कवासी लखमा, मंत्री मरजीत भगत, पूर्व विधायक, गुलाब कमरो, शिशुपाल, बृहस्पत सिंह, चंद्रदेव प्रसाद राय, यूडी मिंज, विधायक देवेंद्र यादव के नाम शामिल हैं। इनके अलावा 2 निलंबित आईएएस (समीर विश्नोई, रानू साहू), रिटायर्ड आईएएस ऑफिसर और कांग्रेस कोषाध्यक्ष समेत अन्य के नेताओं के नाम शामिल हैं।
‘कवासी लखमा को हर महीने मिलते थे दो करोड़ रुपये’
शराब घोटाले केस की जांच में ईडी ने अब तक कई खुलासे किए हैं। ईडी के वकील सौरभ पांडेय ने कवासी की पहली पेशी पर दावा करते हुए कहा था लखमा को हर महीने दो करोड़ रुपये कमीशन के तौर पर मिलते थे। उन्हीं पैसों से उन्होंने कांग्रेस भवन और अपना अलीशान घर बनवाया है। 36 महीने में प्रोसीड ऑफ क्राइम 72 करोड़ रुपए का है। ये राशि उनके बेटे हरीश कवासी के घर के निर्माण और सुकमा कांग्रेस भवन के निर्माण में लगाई गई है। गिरफ्तार अरुणपति त्रिपाठी और अरविंद सिंह ने पूछताछ में बताया था कि पूर्व मंत्री कवासी लखमा के पास हर महीने कमीशन जाता था। शराब कर्टल से हर महीने लखमा को 50 लाख रुपए मिलते थे। 50 लाख रुपए के ऊपर भी डेढ़ करोड़ रुपए और दिया जाता था। इस तरह 2 करोड़ रुपए उन्हें हर महीने कमीशन के रूप में मिलता था। 36 महीने के घोटाले के हिसाब से मंत्री को 72 करोड़ रुपये मिले हैं। आबकारी विभाग में काम करने वाले ऑफिसर इकबाल खान और जयंत देवांगन ने बताया कि वे पैसों का जुगाड़ कर उनको भेजते थे। कन्हैया लाल कुर्रे के जरिए पैसों के बैग तैयार कर सुकमा भेजा जाता था। जगन्नाथ साहू और इनके बेटे हरीश लखमा के यहां जब सर्चिंग की गई डिजिटली सबूत मिले थे। इस डिजिटल सबूत की जब जांज की गई तो मालूम चला कि इस पैसे का उपयोग बेटे हरीश का घर बनवाने और सुकमा में कांग्रेस भवन बनवाने में किया गया है। इतना ही नहीं लखमा ने जांच में भी पूरी तरह से सहयोग नहीं किया। जो सबूत हैं उन्हें नष्ट करने की कोशिश हो सकती है।
28 दिसंबर 2024 को ईडी ने लखमा और उनके बेटे के यहां मारा था छापा
ईडी ने 28 दिसंबर 2024 को पूर्व आबकारी मंत्री लखमा के रायपुर के धरमपुरा स्थित बंगले पर दबिश दी थी। पूर्व मंत्री की कार की तलाशी ली गई थी। कवासी के करीबी सुशील ओझा के चौबे कॉलोनी स्थित घर और सुकमा में लखमा के बेटे हरीश लखमा और नगर पालिका अध्यक्ष राजू साहू के घर पर भी रेड मारी थी। ईडी के छापे के बाद लखमा ने कहा था कि घोटाला हुआ है या फिर नहीं, मुझे इसकी जानकारी नहीं है। मैं तो अनपढ़ आदमी हूं, अधिकारी ने मुझे जहां साइन करने को कहते थे, मैं वहां कर देता था।
तीन बार पूछताछ के बाद हुई थी गिरफ्तारी
ईडी ने लखमा को 15 जनवरी 2025 को गिरफ्तार किया था, लेकिन उससे पहले दो बार 8-8 घंटे तक उनसे पूछताछ की गई थी। लखमा के बेटे हरीश लखमा से भी ईडी ने पूछताछ की थी।
ऐसे खुला राज!
ईडी की चांच में पता चला कि टेंडर दिलाने के एवज में कंपनी के मालिक से कमीशन लिया गया था। इस मामले में जब कंपनी के मालिक विधु गुप्ता को ईडी ने अरेस्ट किया तो उसने कांग्रेस सरकार में सीएसएमसीएल में एमडी अरुणपति त्रिपाठी, रायपुर महापौर के बड़े भाई शराब कारोबारी अनवर ढेबर और अनिल टुटेजा का नाम लिया। जब ईडी ने इन तीनों आरोपियों को गिरफ्तार किया, तो मामले में और भी खुलासे हुए। फिर साल 2024 में कांग्रेस विधायक और पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा का नाम सामने आया। ईडी की जांच में पता चला है कि लखमा को शराब घोटाले से पीओसी (प्रोसीड ऑफ क्राइम) से हर महीने कमिशन मिलता था।