धर्म

*दृष्टिकोण अच्छा है, तो दृष्टि न हो तब भी भगवान अवश्य मिलेंगे- स्वामी रामस्वरूपाचार्य* 0 *नीति और धर्म के साथ चलने से सफलता जरूर मिलेगी।*

शैलेन्द्र उपाध्याय की रिपोर्ट

कवर्धा। जगतगुरू रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामस्वरूपाचार्य जी महाराज ने कहा कि जीवात्मा, परमात्मा के मध्य यदि बाधक बन रहा है, तो एक आंख को सजा दी। दृष्टि और दृष्टिकोण अधिक महत्वपूर्ण होता है। दृष्टिकोण अच्छा है, तो दृष्टि न हो तो भी भगवान अवश्य मिलेंगे।

स्वामी रामस्वरूपाचार्य महाराज ने कहा कि भगवान जब राजा बलि के पास वामन अवतार में तीन पग भूमि दान मांगने आए थे, तब शुक्राचार्य ने राजा को दान देने से मना किया था। जब वे नहीं माने, तो कमंडल के जलमार्ग में जाकर बैठ गए। जल नहीं निकलेगा, तो संकल्प नहीं होगा और दान भी नहीं होगा। लेकिन भगवान ने शुक्राचार्य की एक आंख को सजा दी थी। सूरदास जी की दृष्टि नहीं थी। लेकिन उनका दृष्टिकोण अच्छा था। इसलिए उन्हें भगवान मिले। भगवान श्रीकृष्ण सूरदास के हृदय में बैठ गए। सूर की वाणी कोई सामान्य वाणी नहीं थी। उसमें देवी सरस्वती विराजमान थी और हृदय में श्रीकृष्ण। इसलिए उनकी वाणी और रचनाओं में भगवान के बाल चरित्र का सजीव वर्णन मिलता है। उसे पढृते समय ऐसा लगता है कि जैसे भगवान का वह अलग अलग स्वरूप् हमारे नेत्रों के सामने ही परिलक्षित होने लगता है।

स्वामी जी ने कहा कि जीवन में दृष्टिकोण सत्संग देता है।पाप अपराध कर रहे हैं, वे अंधे हैं क्या ? नहीं उन्हें भी दिखाई दे रहा है। पापी को दृष्टि मिलती है, जबकि पुण्यात्मा को पवित्र दृष्टि के साथ दृष्टिकोण भी मिलता है। एक राजा था, जिसके पास दृष्टि है और साथ में पवित्र दृष्टिकोण भी है। जबकि दूसरा राजा है, जिसके पास दृष्टि है, लेकिन पवित्र दृष्टिकोण नहीं है। इसलिए वह भगवान को शत्रु की भाव से देखता है। रावण और कंस ऐसे दो राजाओं में हैं।

नीति और धर्म को साथ लेकर चलो, तो सफलता जरूर मिलेगी। नहीं तो गहरे पानी में डूब जाओगे। थाह भी नहीं मिलेगा। नजर को जनकपुर की तरह बनाना होगा। उन्होने कहा कि जगत्माता सीता की स्वयंवर का समय था। जिसमें राजा जनक ने प्रतिज्ञा की थी कि जो कोई भी धनुष तोडे़गा, उसके साथ वे बिना विचार किए अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे। इस स्वयंवर में दूर दूर के 10 हजार राजा महाराजा आए थे। रावण भी अपने सहयोगी बाणासुर के साथ आया था। रावण को देखते ही जनकपुर में हाहाकार मच गया। रावण जैसे शक्तिशाली और बलशाली राजा को देखकर अन्य राजाओं की घिग्घी बंध गई और स्वयं पराजय स्वीकार कर लिए। रावण ने देखा कि धनुष के ऊपर भगवान शंकर बैठे हैं। उसने सोचा कैलाश पर्वत की तरह उठा लूंगा। तब भगवान ने कहा कि यह धनुष नहीं है, माता जानकी की प्रतिष्ठा है। तुमने हाथ लगाया, तो तीसरा नेत्र खुलेगा। तू भस्म हो जाएगा। बाणासुर ने कहा हम तो यहां विवाह करने आए थे, भस्म होने नहीं। यहां से जाने में ही भलाई है। अभिमानियों का सरदार रावण ने जब हार स्वीकार कर लिया, तो सभी अभिमानी भी हार स्वीकार कर लिए। वे मन ही मन हंस रहे थे। हार में भी हार पहनेंगे।

स्वामी जी ने कहा कि हम सभी अपने गांव और नगर को जनकपुर बनाना है। कवर्धा को जिन लोगां ने कबीरधाम किया है। वह आज सार्थक हो गया। कामदगिरि भगवान की परिक्रमा करने लोग दूर दूर से जाते हैं। वही भगवान आज किसी न किसी रूप में कबीरधाम आ गए हैं। इससे बड़ा सौभाग्य और क्या होगा। यह सौभाग्य गणेश तिवारी और नेहा तिवारी तथा उनके सहयोगियों से मिला है। छग के कोने कोने से यहां आए और रूद्र महायज्ञ की परिक्रमा कर श्रीमद्भागवत और श्री रामकथा श्रवण करें।

*असुरों को मारने के लिए भगवान अवतरित नहीं होते- स्वामी राजीवलोचन दास जी महाराज*

0 *घर के भीतर स्त्री और बाहर पुरूष को सम्मान मिलता है।*

कवर्धा। श्री रुद्र महायज्ञ, श्रीमद्भागवत ज्ञान सप्ताह, श्री रामकथा, योग शिविर के पांचवें दिन व्यासपीठ स्वामीश्री राजीव लोचन दास जी महाराज ने कहा कि कंस आदि असुरों को मारने के लिए भगवान का अवतार नहीं होता।ये तो अपने स्वाभाविक आयु जीकर के वैसे भी मरण धर्मा जीव हैं। फिर भगवान के अवतार का मूल कारण क्या है? यह एक विचारणीय विषय है।

श्री गणेशपुरम में गणेश तिवारी द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत ज्ञान सप्ताह के पांचवे दिन स्वामी राजीवलोचन दास जी महाराज ने कहा कि गौएं उपनिषद के अनुसार विश्व जनपद में एक करोड़ गायों की सेवा होती हो, उस जनपद में स्वयं भगवान या फिर उनके समान महापुरुष का अवतरण होता है। जिस समय भगवान श्रीकृष्ण ब्रज मण्डल में अवतरित हुए, उस समय लगभग 9 लाख गौएं नंदबाबा के कोष्ठ में थी। इस दृष्टि से देखा जाए, तो लगभग एक करोड़ से ऊपर गौ पालन मथुरा जनपद में हो रहा था और आश्चर्य का विषय होना चाहिए कि उस समय कंस जैसे असुर का शासन था। इस दृष्टि से विचार किया जाए, तो भारत के हर जिले में केवल 2 लाख गौएं का पालन पोषण होता था। लेकिन अब भारत के शासन में पदस्थ मुख्यमंत्री एवं प्रधानमंत्री विचार करे तो उनका शासन कंस से भी निकृष्ट सिद्ध होगा। इसलिए प्रकृति को धारण करने वाली गौमाता की रक्षा के लिए भगवान का जन्म हुआ।उक्त प्रसंग सन्त राजीव लोचन महाराज ने उदधृत किया।

स्वामी जी ने कहा कि कभी बेशकीमती और महत्वपूर्ण वस्तुओं को अधिक सुरक्षा करनी होती हैं। इसलिए माताएं घर पर रहती हैं और घर भी उनका होता है। माताओं के पास गृह मंत्रालय होता है। इसीलिए स्त्री को गृहणी कहते हैं। घर की जिम्मेदारी और संचालन जितनी कुशलता के साथ माताएं करती हैं,उतनी कुशलता के साथ पुरूष नहीं कर सकते। उसी प्रकार बाहर का काम पुरुष अधिक कुशलता के साथ करते हैं। स्त्री घर के भीतर और पुरुष घर के बाहर रहकर अधिक सम्मानित होते हैं।

कथा का स्वामी राजीवलोचन दास जी महाराज, स्वामी नरेन्द्र देव, आयोजक गणेश तिवारी, श्रीमती नेहा तिवारी, पूर्व विधायक मोतीराम चंद्रवंशी, डॉ. गोवर्धन ठाकुर, डॉ. पवनकुमार मिश्रा, कैलाश चंद्रवंशी, गुलाब साहू, शिवकुमार चंद्रवंशी, जलेश शुक्ला, संतोष ठाकुर, ऋषि मिश्रा, गिताशरण गुप्ता, मोहन तिवारी, संतोष चंद्रवंशी, प्रताप चंद्रवंशी, गोपीदास मानिकपुरी सहित हजारों की संख्या में श्रद्धालु गण ने रसास्वादन किया।

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